पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२८८

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२८६ गाजीपुर के बीचसे गङ्गा बहती और उसके दोनों ओर विशेष vey Reporte. XII. p. 98.) ६२. को जब उर्वरा भूमि देख पड़ती है। इसका उत्तरांश सरयू और चोन-परिवाजक युएनच्याङ्ग यह प्रद श देखने आये, गोमती नदीके बीच पड़ता है। उक्त दोनों नदियां जिन्ने बौद्ध और हिन्दू दोनों का प्रादुर्भाव रहा। उन्होंने लिखा के पश्चिम भागमं जा करके मिल गयी हैं। दक्षिण भाग है कि 'चेनचु' राजाको सीमा चारों ओर १६५ काम में कर्मनाशा और गङ्गा है। इसका उत्तरांश दक्षिणांश है। ( Cunninghan's ncient, Geography of को अपेक्षा ऊंचा है। हम उच्च भाग पर छोटी छोटी India, p. 439, ) गङ्गातीर पर उसकी राजधानी स्थापित नदियोंन प्रवाहित हा करके पार्श्वस्थ भूमिको कृषि है। अधिवामीवर्ग ममृद्धिशाली तथा भूमि उर्वरा है। कार्योपयोगी बना दिया है। निम्न भूमिमें करायन नाम- युएनचुयांग जाने पीछे हिन्द ऑन युद्ध करके को एक मही होती है। उसमें पानी न देनमे भो रबी बौडाको देशमे निकाला था। उमी ममय भर नामक तयार हो सकती है। यहां मुमलमानों में सुत्रियों को पराकान्त लोगांने यहां अपना आधिपत्य फेलाया । उत्तर- संख्या अधिक है। इस जिले में कई नगर बसत हैं। पथिममें जब मुसलमान अपना राज्य बढ़ान लग ब्राह्मण स्थानीय प्रवाद रीमा है कि यहां गाधि नामक किमी और राजपूत भाग करक भर जातीय राजाओं के हो राजाका गाधिपुर दुग बना था। उन्होंने गानोपुरनगर । आश्रयमं आ पई । वह। धरे धीरे इन राजाओं के पास- भी स्थापन किया। किन्तु वर्तमान गाजीपुर नाम मुमल से जमीन ले करके पीछेको जमीन्दार बन गये। ११८३ मानीका रखा हुआ है। पहले उमको गजपुर कहते थे । ई०को कुतुब-उद्दीनन उत्तर-पथिम प्रान्तम बङ्गाल्न जो हो-इसमें मन्दह नहीं कि वह अति प्राचीन नगर तक मुमलमानो राज्य फैला दिया। यह प्रान्त मी अवश्य है। शहरकी बगलम नदी किनारे मट्टोके भीतर अनेक को उनके राजाका अन्तभक्त हुआ। कहते हैं कि १३३० पुरातन इष्टक तथा मृणमय पात्र और स्थान स्थान पर बहुत ईमें सम्राट मुहम्मद तुगल के समय ममजद नामक पुगतन खोदित शिलालिपिया देख पड़ता हैं। भितरौ किमो मामन्तन गाजीपुरके राजाको रणमें मार डाला । नामक ग्राममें समुद्रगुप्त समयकी शिलालिपि निकली सम्राटने खुश हो कर इन्ह' 'गाजो' उपाधि और है। उन्होंने कनौज तक अपना राजा बढ़ाया था। यहां । निहत राजाका राजा दिया था। इन्हीं मसऊदने उमका पर मिले हुए समस्त मूल्यवान् स्तम्भी और शिलालिपियों- नाम गाजीपुर रखा। १३८४मे १४७६ ई. तक यह मे समझ पडताकि ई०से बहुत पहले बुद्धदेवके समयको प्रदेश जौनपुरके सरको राजाओं के अधीन रहा मडकी सैयदपुरसे बक्सर तक समस्त प्रदेश समृदिशाली रहा। राजवंश दिल्लोके लोदी वशीय बादशाहोंकी अधीनता ईशामे २५० वर्ष पहले प्रसिद्ध अशोक राजाके राजत्व मम- परित्याग करके स्वाधीन बना था । १५२६ ६०को सम्राट यको इस देशर्म बौद्ध धर्म फैला। अशोक राजाके निर्मित बावरने यह प्रदेश अधिकार कर लिया। फिर बकम- प्रस्तरस्तम्भ और स्त प देखे जाते हैं। चौथोसे ७वीं ई. रको लड़ाई में शेरशाहने हुमायुको हरा इसको हस्त- शताब्दी तक मगधक गुप्तवंशने यहाँ राजत्व किया उस गत किया अकबर के ममय यह स्थान मुगलकि अधि. वंशीय राजाओं के बनाये हुए स्तम्भ तथा मुद्रादि स्थान कार पर इलाहबाद सूबमें लगता था। उमके वाद इसकी स्थान पर मिलते हैं। गाजीपुरमे ६॥ कोस दक्षिण जमु. लखनऊक नवाबने अपने राजा अवध मिलिया। निया तहसील के लाटिया नामक क्षुद्र ग्राममें ५०० फुट १७३८ ई०को नवाब शहादत खाँने शेख अब्दुल्ला नामक लम्ब और २०० फुट चौड़े टके टूटे स्त पकी पश्चिम भोर किसी व्यक्ति को इसका शामनकर्ता बनाया था। यहां पत्थरका एक खम्भा है। ( Fulrer's Monumental पर उन का बनाया हुआ चेहलम ला ४० स्तम्भयुक्त भवन), Antiquitics and Inscriptions, p. 232 ) किसी इमामबाड़ा, मसजिद, ' प्रामहष्ट से, किला और नवाब किसी मुद्रा और शिलालिपिमें श्रीगुप्तकलुलेन्द्र का नाम बाग नामक उधार वधमान है । ( Funrer's Mo. मिला है। ( Cunninghams Archaelogical Sur- numental Antiqu tc. p.283.) नवाबबागव