पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२९६

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२६४ गाणपत-गाण्डीव यो में संक्रमण किया था। कालके प्रबल बेगमें इस सम्प्र | गाणपत्य (सं० त्रि०) गणपतिरुपास्योऽस्य ण्यः । १ गणेश दायका ह्रास होते भी हिन्दू लोगों में गणपतिको ऐमो | का उपासक । २ गणपति सम्बन्धीय । (को०) ३ गण- उपामना चलती और भक्ति मिलती है। वास्तविकपक्ष में | पतिका भाव। गायत्त देखा। कोई सन्देह नहीं कि वह सम्प्रदाय अपर मम्प्रदायों को गाणिक ( मंत्रि०) गणवेत्ति अधीत वा उकथादित्वात तरह बलवान् था। ठक् । गणसूत्रादि पाठक । २ गणसूत्रादि वेत्ता। ३ गम "बामि गापपता न मानानि व पवान च। सूत्रकुशल। साधनानि मौराणि चान्चावि यानि कानचिना गाणिक्य ( मं० लो०) गणिकानां वेश्यानां मम हः गणिका श्रुतानि तानि देवेश त्वद वकवानि:सतानि च ( मार ) घञ् । मणियार्थाणात काम । पा ४३० वात्तिक । गमिका- गाणपत सम्प्रदायके मसमें गणपति हो परब्रह्म हैं।। समूह, वेश्याका झुड। समस्त जगत् गणेशसे उत्पन्न हुआ, गणेशमें स्थित है और | गाणितिक ( म० त्रि. ) गणित शास्त्र वेत्ति ठक । गणेशमें ही लोन हो जावेगा । गणशाथर्वशीर्ष प्रभृति | १ गणितशास्त्रवेत्ता, गणितशास्त्र जाननवाला।२ गणित- पनिबदमे भी "तत्त्वमसि" आदि वाक्योंसे गणेशको ही संबन्धीय। वर्णना की गयी है। गणेश-ब्रह्मा, विष्णु, शिव प्रभृति गाणिन ( मं० पु०-स्त्रो०) गणिनाऽपत्यादि गमिन्-अण। सब देवताओं के हा अधिपति, गुणत्रयातात, अवस्था- इनो न लोप: । गाथिविदा कधिगाणपपिमय। 480१६५ वयशून्य, देवयरहित और त्रिकालके अधिकारी हैं। १ गणोका अपत्य । २ गणीका छात्र । वह मभी प्राणियों म लाधारमें अवस्थिति करर्स हैं। गाण्डव्य ( सं० पु.) गण्डोरपत्य। गर्गादित्वात् यञ् । मणेशको ३ शक्तियां हैं। उन्हीं के द्वारा गणराज जगत्को | गण्ड का अपत्य, गण्ड का वंशज। राष्टि, पालन और नाश किया करते हैं। वह मगुण गाण्डव्यायन ( मं० पु. ) गगडोयु वापत्य गण्ड घञ, ततः और निर्गुण भेदसे दो प्रकार हैं। योगो मगुण गणपति | फ। गगड का यवा अपत्य । की उपासना करते हैं। उस उपासनाम अविवेक नष्ट हो | गागडव्यायनी ( सं० स्त्रो० ) गडोरपत्य स्त्री गड यञ् । जाता और बादको उपामक मुक्ति पाता है। मर्थव लोहितादिक सन्त भाः । पा४।१।१८। गण्ड का स्त्री अपत्य, - (गशवर्ष शाष ५०..) कन्या । - गाणपत उपामक थात वा शवकी तरह गणपतिमन्त. गाण्डि ( मं० स्त्री० ) गड-इन् । ग्रन्थि, गिरह। में दोक्षित होता है। गणपति उनके इष्टदेव हैं। चिर- गाण्डिव ( मं० पु० क्लो० ) गण्डिग्रन्थिरस्थास्ति वः । गाल- जीवन वह गणेशको ही उपासना किया करते हैं। वे जगात संज्ञायाम पा ५॥२ ११० । १ अर्जुनके धनुषका नाम । किमी अपर सम्प्रदायके प्रति ईर्था का दूसरे देवताका ( भारत १९९६४) पहले पहल ब्रह्माने इस धनुषको हेष नहीं रखते, साथ ही अपने इष्टदं व गणेशको भक्ति निर्माण कर प्रजापतिको दिया, प्रजापतिने इन्ट्रको, इन्द्र में अधिक लीन रहते हैं। गगीशका मन्त्र “ॐ गं" है। ने मोमको एवं सोमने वरुणको प्रदान किया था। सत् + गाणपत लोगों को इमी मन्त्रको दीक्षा दी जाती है। पश्चात् अग्निनं वरुणसे प्रार्थना कर यह धनुष अर्जुनको ने गणेशके उपासकोंमें भी सन्ध्या प्रादिका विधान है।। दिलाया था। (भारत १.२२५ प.) २ धनुष मात्र। "एक नाय विधी वक्रतुगमाय धीमहि । तन्ना दना प्रचदशात' | गाण्डिवी ( मं० पु० ) गांडिवोऽस्यास्ति इनि। १ पर्जुन । गणेशकी गायत्री है। गमीशके मन्त्रमें ऋषि गणक, | २ अर्जुनवृक्ष, पाकका गाछ। निचद गायत्री छन्दः और देवता गणपति हैं। उपासना- | गाण्डो ( सं० स्त्री०) गाडि-डीए । गाडि देखो। की अन्यान्य प्रणालियां अपरापर देवताओंके ममान हैं। गागडोर (सं.वि.) गण्डोरस्य दंगण्डोर-अगा। शाक- गाणपतो के मतमें मृत्यु कालको गणेशको चिन्ता करते | विशेष, शमठ नामका माग । करत प्राण छोड़नेवाला मुक्ति पाता है। | गाण्डीव (सं० पु० को०) गामडी ग्रन्थिर स्वास्ति गांडी-वः । __ (गणगौला) गन । । १ पर्जुनका धनुष । .