पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२९८

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२८५ गावसाद -गाथा गात्रसाद (सं० पु० ) १ शरीरावसाद । २ पिप्तरोग। ग्रन्थों में पद्यांश व्याकरण शुद्ध और गाथा वा गद्यांश गावस्पश ( म० पु० ) गात्रस्य स्पर्श : ६-तत् । अङ्गस्पर्श, | अशुद्ध संस्कृतमें पृथक् रीतिसे क्यों रचित हुआ ? यह शरीरका कुना। नहीं कहा जा मकता कि गद्यांश अशुद्धियो से रहित है, गावानुलेपनी ( म० स्त्री० ) गात्रमनुलिप्यते यया करण | घटना क्रमसे लेखककी अनवधानतासे छूट जैसा गया ल्य ट -डीप । अनुलेपनर्तिका, सुगन्धि द्रव्यसे शरीरका | मालूम पड़ता है। दूमरी बात यह कि गद्यांशको भाषा लेपन। पाण्डित्यपूर्ण और जटिल है। कर्ताकी क्रिया अपने स्थान- गात्रावरण ( म क्लो० ) गात्रमा वृणोति, श्रा--स्य । को छोड़ करके बहुत आगे दृष्ट होती है। किन्तु गाथा वर्म, कवच। की भाषा उसके मम्प र्ण विपरीत है। इसकी भाषा गात्रोत्सादन ( म० लो० ) गात्रानुलेपन । नितान्त सरल होती है। वाक्य छोटे छोटे आये और गात्रिका ( म० स्त्रो०) गात मज्ञायाँ कन्टाप, अत | उन्ही में भाव बह त अच्छी तरह खोल करके दिखलाये इत्वम् । गमछा, तौलिया। है। गाथाकी भाषा मरल कथाका आजोगुण और गाथ (म त्रि०) ग-थन् । १ गान । २ स्तोत्र । ( माय) | कल्पनाका पार्थक्य प्रचुर है। कविता सरल अनुष्ट प्मे गाथक ( म० त्रि. ) गायति ग गान थकन् । गायक, | शार्दूलविक्रीड़ित प्रभृति नानाप्रकार छन्दोंमें रचित ह ई गानवाला। है। विशेष अनुधावन करनेसे प्रतीत होता कि रचना- गाथपति ( स० वि० ) गाथायाः पतिः ६-तत् । वाकपति, को मिष्ट करनके लिये शब्दों को स्थान स्थान पर बढ़ा स्तोत्रपालक रुद्र। दिया है। यथा - माथा ( सं० स्रो० ) गै-थन् टाप् । उधिषिगानि भाखन् । सण मस्कृत भाषा गाथाको भाषा २४.१ स्तुति । २ प्राचीन कालको एक प्रकारकी रचना नच नाच जिसमें लोगांके दानपत्रादिका वर्णन होता था। ३ श्लोक सच मोच विशेष, किसी प्रकारका न्द । इममें स्वरका नियम नहों प्रयात: प्रयातो चलता आर सुननमें गद्य ज़मा लगता है । ४ गीत । रुदमान रोदमान ५ कोई मात्रावृत्त। जिमर्क प्रथम तथा तृतीयम बारह, हितोयमें अट्ठारह और चतुर्थपादमें १० मात्रा लगात, गाथा स्मितमुखी स्मितामुखि इत्यादि वन्द बतलाते हैं। इसोका नाम आर्या है। ४ प्राकत कहीं पर स्वरोका मोच करनेमे एमा बन गया है- भाषा। संस्कृत प्राकत मिश्रित श्लोक। याम यामि बौडीकी ग्रन्थावलों में गाथा जैसे अनक श्लोक दृष्ट होते भावि हैं। लशावतार, तथागतगुधक, ललितविस्तरप्रभृति मिथ्याप्रयोग मिथ्यप्रयोग इत्यादि। ग्रन्योंकी रचनाका कुछ अंश गद्य और कुछ पद्य कही तो स्वर और व्यञ्जन एकबारगी हो परित्यक्त है। गद्यांशको भाषा याकरण शुद्ध मंस्कृत है, किन्तु पद्यमें कुछ मंस्कृत अशुद्धियां मिलती हैं। उमौम इस नर्मास विषयमें बहुतसो पालोचना हई, गाथा वा पद्यांश अश प्रणिध्यायन्ति प्रणिध्यन्ति इत्यादि संस्कृत अथवा कोई स्वतन्त्र भाषा है। संस्कृत भाषा किसी किसो स्थल पर सन्धि वा युक्त वर्णको बांट सिखनको वसो भूल क्रमागत समानभावमे ही नहीं करके सरल और सुमिष्ट बनानेकी चेष्टा को गयो है- सकती। एकही शब्दको बार बार अशुद्धि दृष्ट होनमे ग्बानो गिलानो बहुतसे लोगों ने उसको स्वतन्त्र भाचा-मा निर्देश किया स्त्री है। परन्तु बात तो या सक्षितविस्तर प्रभृति वोडा किलेश ताः भवि नमे