पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३

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हिन्दी विश्वकोष धीय। श्रीजतीन पोरका प (षष्ठ भाग) कि (स. विधिक रम् । पड़िक| नामक बिसी राजाने इन्द्र के पादेशले उस की पावाद करके खाडवी नामकी कोई पुगैबसायोनी। (हिं. स्त्री.Lोज, तीन पोरको पसी वाजवीपुरीने गुबगरिमामें इस समयकी समय जोसे घिरा मा । जैसे-वनास- पुरियोंसे बेहता पायो । खाडी १. योजन खाड़ी । २ प यह सूखा होता पौर ३० योजन विस्तृत चो। दिन दिन सदनों , बड़ाई भी बढ़ने लगी। एक एक बार सारामा इक ठाटारसमे पतली पर उनके अधीन हो औ समीपक अपना अधिकार सार्क अन्याय चाचरण भी पसाया था। थोड़े दिनों ही उनसे सब लोग बिगड़ पड़े । सुदर्शनी काशिराज विजयसे मदिखापन करके उनको अपना मच्ची बसावा था । काङ्गराजने प्रकाश मिलने पर नके पनिष्ट करने की चेष्टा की । सुदर्शन या गुप्त संवाद पाकर उनसे बने खास बड़ाम नबीर प। काशीरामने पायोपुरी सूट वर तोड़ यो भाव, टुकड़पन। हासी। फिर इन्द्रने जाकर काशीराब बहाया चोरी शेज। उस खानमें पोछेको एक बन रहा। इसमें देवार बार बाति, वाक। म सुखसे विचरण करते थे। सदमने उमापौर काय । (पू.) पाना डावसापुरी बनायौं। उनकी सासि किमिशान बन बाब नो-होकर नियम जमिवयने पास एक तथा मासको समया दो बार प्रक्षाको पर्व तसा वीय दर्शन सी बनका नाम सामने दोनों .बाबरने