पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३००

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REC गाथा रतन बिमति, वचन और लिङ्ग ही विक्कत हो गया है। किन्तु हो मकता है। इस नियमके अनुसार निम्नलिखित प्राकत भाव पदोंक प्रतति, विभक्ति, वचन और लिङ्ग प्रभृति मभी शब्द सिद्ध होते हैं:- पंश विक्षत है-किमीका संस्कृत के माथ कोई सम्बन्ध गाथाका प्राकृत संस्कृत महौं। वैसा ही देख करके पूर्वोक्त भाषातत्त्ववेत्तावाने उसको एक नयी भाषा बना लेनको चेष्टा की है। अभुजिय आभुज्य (किमो किमोन उसको विकत संस्कृत जैसा भी ठहराया अकम्पिय आकम्पा है।) परन्तु इन मतोंमें किमोका पक्षपाती हुवा नहीं वियह व्य ह जाता । वस्तुतः गाथाकी भाषा संस्कृत मिश्रित प्राकृत पटुमानि पद्मानि इत्यादि । है। उसको कोई स्वतन्त्र नयी भाषा मान नहीं मकते। "मोत्वमवापयो: ।” (प्राक तलव व २ २१) उमका जो अंश मंस्कृत व्याकरणके अनमार मि हो मकता अव ओर अप उपमाँ के स्थानमें प्रकार होता है। । और प्रतति, विभक्ति, वचन वा लिङ्गशर्म कोई व्यतिक्रम यथा. आमद्य, पोकहित्वा । नहीं पड़ता--मस्शत है। इमो प्रकारमे जो प्रकृति, विभक्ति "वयोरिदुती " ( प्राकृत पा.१) प्रभृति अंशोंमें वा मम्प र्ण रूपमे विकत आती-प्राक्कत या यकार और वकारक स्थानमें यथाक्रम इकार और अपभ्रश कहलाती है र उकार आदेश होता है । यथा --जनयन्ति, जनन्ति , दर्शयन्ति, दर्गन्ति ; उपयन्ति, उपन्ति इत्यादि। गायाक रचनाएं देव पड़तों, जिनका थोड़ा अश मस्कृत अनक अशीमें हिवचनक स्थान पर बहुवचनका प्रयोग पौर थोड़ा हिन्दी या कोई दूमरी भाषा है। गाभाका जो अंश संस्कृत नहीं ठहरता, प्राकृत भाषा व्याकरणा- देव पड़ता है। प्राकृत भाषामें हिवचन नहीं होता, उसका जगह बहुवचन लगता है- भुमार बनता है। दृष्टान्त स्वरुप गाथाके कई पटीको "बित्व महत्व म( प्राकृत व. २१२) माधनप्रणाली प्रार्जत व्याकरणके अनुमार नीचे प्रदशित "कचिद् व्यत्ययः” (प्राकृतल पण १।४) सूत्रके अमुमार स्थान स्थान पर लिङ्गका व्यत्यय भी दुपा करता है । यथा--- । चण्डप्रणीत “आर्ष प्राक्तलक्षण" नामक प्राकृत व्याक- देवा:, देवाणि इत्यादि। रणका स्वरविधामके "स्वरोऽयो यस्य (२।४९) चतुर्थ सूत्रका अर्थ संस्कृतयोनि, मस्कतसम और देशी है। ( इसमें इस स्थल पर अनावश्यक समझ करके और अधिक सस्कतयोमि प्राकत मम्वतसे किमी अंश पर बिगड़ नहीं लिखा । गाथाके संस्कतिको छोड़ करके दमरा सभी 'करके बनता है। ) प्राकृत भाषाम मस्तके किमी अश प्राकृत व्याकरण अनुसार माधित हो सकता है। अतएव उक्त गाथाको भाषाको मस्क त मिला हुवा प्राक्कत - स्वरस्थान पर दूसरे स्वरका आदेश होता है । इमो कहना हो उचित है। नियमके अनुसार गाथा में व्यवहत नीचे के शब्द संस्क तसे निकले हैं- इसका नियय नहीं, वह कितने समयकी पुरानी गाथार्म व्यवहत प्राकृत संस्कृत है। भाषाको सृष्टिक पोछे मानवने जब व्याख्या करना रोदमान रदमान मोखा, गाथा बनी होगी। उसके बाद स्वर और लयक करोथ संयोगसे इसको क्रमश: उवति हुई। बुद्धदेव अपने आप गई गाथा पढ़ते थे। धर्म विषयके सूत्राने पद्यमें ग्रथित हो मय मया करके गाथा नाम धारण किया। बौड प्रधान काश्यपन उदरि उदरे। इत्यादि कहा था कि भिक्षुलोग सूत्रान्स, विमय, अभिधर्म प्रति - "योगस्येवरागमो मध्य । ( ल .) याद रखें या भूल जायेंगे। क्योकि उनकी गाथा न थी। - इच्छानुसार सयोगके मध्य किसी एक स्वरका पागम पाठकको अपराहमें स्तुकी गाथा पढ़नी चाहिये। बुद्ध-