पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०१

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गाथा-गाथिन २६८ देवने उसको ४र्थ शास्त्र-जैसा उल्लेख किया है । यथा - उपदेशादि विद्यमान थे। पोछे को अपने प्रजाकारियों १म सूत्रान्त, २य गेय, ३य व्याकरण, ४र्थ गाथा, ५म (ब्राह्मणां) को अनिष्टमे निष्क ति और जरदस्त धर्मावलम्बि उदान, ६४ निदान, ७म अवदान, प्म इतिवृत्तक, ८म यांका मङ्गल करनेवाला हो रक्षित हुई। होग माहब और आतक. १०म वैपुल्य, ११श अतधर्म, १२ उपदेश। भो बतलात कि वह गाथाए सामवेद-जैमी हो वह ऋग् इमसे समझा जाता कि उम ममयको गाथा शिक्षणीय वेदका अंश होती हैं। ब्राह्मणों ने उन्हें यत्न करके रखा वस्तु थी। और पारमियान बिगाड़ दिया है। वेष्ट माइबके अनु- पारसिक जाति ( पारमियों ) के धर्म ग्रन्थमं 'गाथा' , मानमें ई० मे १२०० वत्सर पूर्वको महापुरुष स्पीतम शब्दका उल्लेख मिलता है । उममें ५ गाथाए हैं- जीवित रहै। गाथा उसी समयकी रचना है। १ अहनवतो, २ उष्टवै तो, ३ म्येन्ता मन्य . ४ बहुग्वषथ्। वैदिक काल हिन्दू धर्म मे पारसिक धर्म का विरोष और वरिष्ठोमटो। यह गाथाए' छोटे छोटे पर्दाका सम्पर्क रहना जेमा ममझ पड़ता है। दोनों के आदि गन्यों- रचनामात्र हैं। उममें प्रार्थना, गान, स्तोत् और मनो- में देव और असुर लोगो को कथा है। फिर भी यह देव- विज्ञान सम्बन्धीय नानाविध कथा लिखित हुयो है। ताओं और वह असुरों के उपामक हैं । यजुर्वदमें आमगे भागमकत वा पालि भाषाको गाथाए' भी वैमी हैं। नामक कोई कन्द दृष्ट होता है। यथा -गायत्रो आसगे, वह पारमियाम गोत हुआ करती हैं। उनके धार्मिक उषिक आसुरी, पति आसुरो । जन्द अवस्ताको गाथा ग्रन्य जन्दअवस्तामें भी बह तसी गाथाएं हैं। फिर भी में उमका प्रचुर प्रयोग देखते हैं। जन्द अवस्ता अहरों पारमो जन्द अवस्तार्क मभी शब्द गानकी तरह स्वर लगा वा असुरों का धर्म है । गायत्रो आमगे अहनाबैतो, करके पढ़ते हैं। उनको गाथा रचना हमारो वैदिक उपिणक आसगे बहग्वषथ, और पक्ति आसुरोछन्द ऊम्त- रचनाके ही अनुरूप है। छन्दोबद्ध ग्रथित होत भी उम- बैतो और स्पैन्ता मन्य गाथामें मिलता हैं । ममझ के शेष अक्षरीका अनुप्रास नहीं मिलता। उपयु ता ५ नहीं पड़ता कि घटनाक्रममे व मा मादृश्य लगा होगा। गाथावां में प्रत्येक स्वतन्त्र प्रकार छन्दमें रचित हई है। वरं अनुमित होता कि यजर्वदको गाथा ऋषिया को अहन तो गाथाको प्रत्येक नाकमें ४८ वर्ण है। वह मममी बझो थी। जन्दअवम्ताग्रन्थम हिन्द दंवदं वयों ३ पक्तियो में विभक्त है। प्रत्यं क पक्तिमें १६ वर्ण लग कं बह तम नाम और वीदिक शब्द पाये जाते हैं। ___पाचात्य विहान् यह सभी दंख करके अनुमान लगात ___ पारसिकोको विश्वास है कि गाथाम' ७ अध्याय होते कि भारत जानमे पहले हिन्दू और पारमो एक समाज- हैं। देवता उस गाथाको गति थे। स्यौतम जरयुस्त्र- मुक्त ही थे। की ध्वानयोगमें वह देवताओंक पाससे मिल गयो । पारसिक गाथाम एकश्वर धम मतका उल्लख है। अस्तवती गाथा उन्हों ने अपने आप बनायी थी । उस गाथाकार ( स० पु. ) गाथां करोति क अण | १ गाथा- प्रत्यक पतिमि ५ अक्षर हैं। वह छन्दोबद्ध वैदिक कारक, गाथारचयिता, श्लोक रचनवाना। गायक गान- तिष्ट भ छन्दसे बहुत मिलतो है। सन्ता मैन्य गाथा- वाला। का छन्द प्रायः विष्ट के अनुरूप हो है। प्रथम दोनों गाथानो ( मं० त्रि० ) गातव्य, गानक योग्य । ( मायण ) गाथाओं की अपेक्षा इममें श्लोकों की भरया बहुत कम है गाथान्तर (म० पु०) एक कल्पका नाम । ब्रह्माक महिन- फिर ४थी बह खष) और ५वी वहिष्टो इष्टी नामक का चतुर्थ दिन । गाथा श्लोकों की मख्या और भी अल्प देख पड़ती है। गाथिका ( स० स्त्री० ) गाथा स्वार्थ कन् । टाप तत - म्य निकके संस्कृताधापक मार्टिन होग अनुमान इत्वञ्च । स्तुतिके निमित्त श्लोक । करते कितनी हो गाथाएं रही, जो पीछेकी लुप्त हो गयौं। गाथिन (स'० पु०) गाथिनो ऽपत्यम् गाथि-अग । १ साम- उन सभो रचनामों में स्पोतम जरवस्त्र के मतामत और वैद। २ गायकका अपत्य । ३ तच्छात्र। . .