पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

.. गान्धारि-गान्धिक मान्धान ( मं० पु० ) गन्धमेव अण गांधमृच्छति ऋइन् ।। दिन कुन्तीको सूर्यतुल्य मन्तानको उत्पत्ति सुन कर १ गांधारदेश । गांधारस्य तई शवामिनृपस्यापता । गान्धारी दुःखित हुई और अपने गर्भको यत्नपूर्वक निपा- २गांधारदेशोय नृपतिका अपता, गांधारदेशक गजको तित किया, उसमे लौह मदृश कठिन मांमपिण्ड निकला। सन्तान। उसन उम मांपिगडको फेंक देनकी इच्छा को, उमी ! "गांधारिभिर समधाम: पाय दु:।' (भारत ८५४७०) ममय व्यामने आकर जिज्ञासा की और गान्धारोन समस्त गान्धारिका ( मं० स्त्रो०) गान्धार-कन्टाप अत इत्वम् । मच्ची बातें कह सुनायी। व्यामजी बोले कि-इम मांम- मादक द्रव्यविशष, गांजा। गांधारी देखा। पिण्डको एक शत वृतपूर्ण कुम्भमें रख छोड़ो। ऐमा करने गान्धारी ( मं० स्त्री० ) गान्धारस्य अपत्य स्त्री इत्र डोप । पर बाङ्ग निक गिरहके मदृश पृथक पृथक एक सौ भाग १धृतराष्ट्रराजपनो, धृतराष्ट्रको स्त्रो। यह राजा मुबल उमम प्रकाश हुए और यथाममय एक शत पुत्र हो गये की कन्या तथा दुर्योधनादिको माता थो । गान्धारोने ज्य ठानुक्रममे उनके नाम इस तरह है-दुर्योधन, दुःशा- शिवजीको आराधना करक शत पत्र प्राप्त किये थे। महा मन, दुःमह, दुःशन्न, जलमन्ध, मम, सह, विन्द, अनु. भारतम लिखा है जब भोमन सुना कि गान्धागेको शत विन्द, दुईर्ष सुवाह, दुष्यधर्षण, दुर्मर्षण, दुर्मुख, दुष्कर्ण, पुत्र लाभका वर मिन्ना है तो उन्होंने शीघ्र ही सबन्नक कर्ण, विविंशति, विकर्ण, मन्न, मत्व, सुन्नोचन, चित्र, उप- निकट दृत प्रेरण किया। सुबलन विचार कर देखा कि चित्र, चित्रात, चारुचित्र, शरामन, टु यद्यपि वर अन् है तो भी कुलख्याति प्रभृतिक अनुमार विवत्स, विष्टानन, ऊर्णनाभ, सुनाभ. नन्द, उपनन्दक, उन्हींको कन्या देना उचित है। जब गान्धारोने सुना चित्रवाण, चित्रकर्मा, सुवर्मा, टुवि मोचन, अयोवाहु, किशनगष्ट अन्ध हैं एवं पिता मातान उन्होंको सम्प्रदान महावाह, चत्राङ्ग, चित्रकगडल, भोमवेग, भौमवल. करनेको इच्छा को है तो उसने एक वस्त्र लेकर उमको वलाकी, वलवईन, उग्रायुध, भोमकर्मा, कनकायः, दृदा- कई गुना करके अपनी आँखर्क ऊपर बान्ध लिया। इस युध, दृढ़वर्मा, दृदक्षत्र, मोमकीर्ति, अन दर, दृढ़मन्ध, जरा- तरह उन्हो न पतिव्रता धर्म की पराकाष्ठा प्रदर्शन को थो मन्ध, मत्यवन्ध, मदःसुवाक, उग्रश्रवाः, उग्रसेन, मेनानी, ___२ अजमरको कन्या। ३ नाड़ीविशेष, एक नाड़ीका टुष्पराजय; अपराजित, कुण्डशापो, विशालाक्ष, दुराधर, नाम। “का पृष्ट न, गांधारी ।" ( तन्त्र ) ४ जिनक एक शामन दृढ़हस्त, सहस्त, वातवेग, सुवर्चा:, आदित्यकेतु, वह्वाशी, देवताका नाम। ५ लताविशेष, यवास। ६ लताविशेष, नागदत्त, अग्रयायो, कवची, निषङ्गी, कुण्डी, कुण्ड- दुरालभा, धमामा । ७ पार्वतीको एक सहचरीका नाम । धार, धनुईर, उग्र, भीमरय, वीरवाहु, अलोलुप, अभय, (भारत ३।११ १०) ८ गायत्री। (देवो भागवत १४४४४०) रौद्रकर्मा, दृढ़रथ अनाधृष्य, कुण्डभेदी, विरावो, दोघनो- ८कल्टकारी, भट कट या। चन, प्रमथ, प्रमाथी, दीघरोम, वीर्यवान्, दीर्घवाहु, महा- मान्धारीतनय (सं० पु०) गान्धार्यास्तनयः. ६-तत् । १ दुर्यो | वाहु, वुचारु, कनकध्वज, कुण्डाशी और विरजा । गान्धार। अनादि स्त्रियां टाप । २ दुधिनादिको भगिनी, दुःशला। को शत पत्रके अतिरिक्त दुःशला नामकी एक कन्या भी महाभारतमें गान्धारीमे दुर्योधनादिका उत्पत्ति विव-| थी। र इस प्रकार लिखा है-"एक ममय व्यास क्षुधा और | गान्धारय ( म० पु० ) गांधार्या अपत्य ढक् । दुर्योधनादि। : मातर मोगान्धारी के निकट उपस्थित हुए। गान्धारोने | स्त्रियां ङोप । गांधारयो, गांधारीकी कन्या, दुःशला। परितष्ट किया। दम पर व्यासने कहा कि वर गान्धिक (सं. १०) गंधो गंधद्रव्य', पण्यमस्य ठक । मांगो। गान्धारोन स्वामी के अनुरूप शत पुत्रके लिये १ गंधर्वाणक । गन्धर्वापक देखी। २ लेखक । केट- प्रार्थना की, व्यामने भो मनीनोत वर स्वीकार किया । विशेष, एक कोडाका नाम । (क्ली०) स्वार्थे ठक्४ गंध: बो दिन अनन्तर धृतराष्ट्रसे गान्धारीको गर्भ रहा किन्तु द्रव्यमात्र । दोपर्व पर्यन्त कोई सन्तान भूमिष्ठ नहीं हुई । एक | 'पल्याना माधिक पस्य। (पवतन्त्र)