पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०९

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गाम्भीर-गायकबाड गाम्भीर ( स० वि० ) गम्भोर-प्रत्र । गम्भीरद्वारा नि त । दामाजी गायकवाड़से इम वशको उत्पत्ति है। गाम्भीर्य ( म. ली. ) गभोरस्य भावः, गभीर यत्र । वह महाराष्ट्रगज माह के अधीन कर्म करते थे। उनके १ अगाधत्व, गभीरता, गहरा । मेनापति खगडे राव धाबाई बालापुरके युद्ध में इनका ___“ममुद्र इन गम्भाय ( गमायण ११.१८) वीरत्व देख करके मन्तुष्ट हुए और इनको पदोनति करन- २ अविकारित्व, विकारका अभावपन । के लिये राजाको अनुरोध किया । उसीके अनुमार "निरस्त गाम्भौयं मातपय कम । ( माध) इन्हीं न हितोय मनापतिका पद और 'शमशेर बहादर' मात्विकगुणविशष । भय, शोक, क्रोध और हर्षादि । उपाधि पाया था। दामाजीक मरने पर उनके भ्रात- हाग कोई 'वकार नहीं होने को गांभीय कहते हैं ष्प त्र पिन्नाजी राव गायकवाड़ पद पर अभिषिक्त हुए। "विकागमहनार क्रोधवादिष। खगडु रावक पुत्र बाम्बम्गव धाबाड़े और पिलाजा भावेषु नापन्नभान्न नदगाम्भीर्य मिति स्म तम् ॥"( माहित्यदर्प) दोनॉन मिल करके अन्यान्य महाराष्ट्र मामन्तों के साथ ४ अचापल्य, दृढ़ता, ध य ।। "गागीय मनोहर वपु. (२५० ३।३.) पेशवाक विरुद्ध युद्धयात्रा की थी। १७३१ ई०को गाम्मन्य ( म० त्रि. ) गामिव मन्यते वश ततः अम । बड़ोदा नगरके निकट एक न्नड़ाई हुई। उममें वाम्बक जो अपनको गोतुल्य ममम । गव पराजित ओर निहत ह,ए। पेशवान उनके शिशु गाय । म पु० ) ग भाव घञ । १ गान । मन्तान यशोबन्त रावको मेनापतिके पद पर नियक्त ____ "यथाविधानन पठन् मम गायमविच तम।” (याज्ञवल्का) कारक पिलाजो गायकवाड़को पहले हो जैसा महकारी गाय (हिं० स्त्री०) १ गो, इमके नरको मॉड वा बैल कहत मेनापति बना 'मेन खाम खेल' उपाधि दिया और यशो- हैं। २ बहुत मोधा सादा मनुष्य । वन्त रावक प्रति गुजरातका ममम्त कार्यभार अर्पण गायक ( म त्रि. ) गानकर्ता गानेवाला। किया। शर्त यह थी कि राजत्वका प्राय: अर्धाश पेशवा- ""तथा गाया गायका: ।- (भारत १३१५३ भ.) को देना पड़ गा। उम ममय दिलीक बादशाह इम गायकमव-कमाइयांकी एक जाति। ये मताग और प्रदेशकै कई एक राज्यों का कर पेशवाको देते थे। महाबलेश्वर में पाये जाते हैं। कहा जाता है कि ये उन्होंने पिलाजीको कम च्य। करकं योधपुरराज अभय- हाबमो गुलाम तथा कावुल पठानक वशज हैं जिन्हें मिहको उम पद पर बैठा दिया। डमी झगड़े में पिलाजी हैदर अन्नीने महिमुरमें गाय और भ म कतल करनक गायकवाड़ने मम्राटक विरुद्ध अस्त्र धारण किया और लिये 'नयुक्त किया था ये १८०३ ईमें जनरल वेलेस्ली उनको मेनाओं को युद्ध में परास्त करके अनक स्थानों पर और १८१८ ईमे भर थोमम मनरोके माथ दाक्षिणात्यम अधिकार कर लिया। अभयमिहन देखा कि पिलाजी आये थे । ये आपसमें हिन्दुस्थानी भाषा और दूमरकं लोगों के प्रिययात्र रहै, उनका लड़ाई में जोतना महज न साथ मराठी बोलते हैं। ये बहुत कुछ यहांर्क मुमन- था। यह विवेचना करकं १७३२ ई०को गोपनमें दस्य, मानोंसे मिलते जुलते हैं। ये परिश्रमी, क्रोधो और झग हाग उन्होंने पिलाजीको मरवा डाला। फिर उनके पत्र डान होते हैं । इन्हें शराब पीनकी आदत अधिक है। दामाजो गायकबाड़ बनाये गये। उधर सेनापति यशो गायकबाड ---वडोदाक राजवंशका उपाधि या नाम। वन्त राव वयःप्रास होत भी कार्यभारवहनको असमर्थ जो राजा रहता, इमी नामसे अभिहित हुआ करता है। थे। उमोमे गायकवाड़ घरान पर भी कह भार डाला 'सेन खाम खेल शमशेर बहादुर' एनका दूमरा उपाधि गया । १७३२ ई०की पिन्नाजोक भाई महाजोन बड़ोदा है। फिर १८७७ ई० १ जनवरीकी दिल्लोके दरबारमें नगर अधिकार किया। उमी ममयमे उक्त नगर गायक इन्हें 'फरजन्द खाम दौलत इङ्गलिशिया' उपाधि भी वाड़ वशको राजधानी बना हुआ है। ताराबाईने जब मिला था। अंगरेज सरकार गायकवाड़ को २१ तापोंकी अपने पौत्र मताराके राजाको बालाजी बाजीगव पेश- सलामी देती है। | वाको अधीनतासे छुड़ाया, दामाजी गायकवाड़ने उन्हें