पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३१०

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गायकवाड़ साहाय्य पहुचाया था। पेशवाने इसीसे उनको विश्वास- पर वह लौटा दिये जावेंग। इसके पीछे दामा जीके राज्य घातकता पूर्वक पकड़ रखा । शेषमें गुजरातको बाकी कानमें टूमरी कोई बड़ी घटना नहीं हुई। मालगुजारी १५ लाख रुपया देनेको स्वीकृत होने पर शत पूरी होते न होते ही वह मर गये। उनकै ३ - • पेशवान उन्हें छोड़ दिया। उसी समय यह भी लिखा रही। प्रथमाके गर्भ से गोविन्दराव, द्वितीयार्क होनावर पढ़ी हुई--राज्यका जो अधिकार है और जहां उमका | सभाजी तथा फतेहसिंहजी और रतीयाके गभसे माइनको अधिकार होगा, उमके आयका प्राधा भाग पेशवाको जी नामक पुत्रने जन्म लिया था। इन लड़कोंमें हितोया , देना पड़ेगा। काठियावाड़में गायकवाड़ने जो स्थान | के गर्भ जात सभाजी राव सर्वज्य ठ रहे। पिताके मृत्य - अधिकार किये थे, दूमरे वर्ष पशवाने उसका कितना कालको प्रथमाके गर्भजात गोविन्दराव पूनामें कैद भुगते हो अंश ले लिया। गाबकवाड़ पेशवाको मन्य माहाय्य थे। वहां उन्होंने पेशवा मधुरावको बहु मूल्य उपढीकन- करन पर भी प्रतिशत हुए। फिर पेशवा और गायक- से तुष्ट करके और पूर्ववत् सन्धिके अनुमार कार्य करने वाडका मिलित मन्य ले करक राघव गुजगत अधिकार पर स्वीकृत हो उनमे अपने नामपर राज्य करनेको अनु. करने चले थे। १७५५ ई०को अहमदाबाद दिल्ली के मति ली। उन्हें 'सेन खाम खेल' उपाधि भी मिला था । शामनसे पृथक हआ। पेशवा और दामाजी दोनोंने गोविन्दरावकी इस उपलक्षमें ५०४८/9xma निम- उसका राजस्व बांट लिया था । किन्तु राज्यका अधिकांश लिखित रीतिसे देना पड़ा- पेशवार्क हाथ लगा। गत वर्ष का कर ५२५००१) १७६१ ई० ७ जनवरीको अहमदशाह अबदालोके | १७६८ ई०को अनुपस्थितिका दण्ड २३३५०००) साथ पानीपतमे जो लड़ाई हुई, महाराष्ट्र पक्षमें दामाजी सेन खास खेल्नको उपाधिके लिये ने अपना मैन्य ले करके विलक्षण वीरत्व देखाया था। नजराना और जागीर २१०००००) ने इस युधमें कितने ही महाराष्ट्रवीर धराशायी हुए और | हिसाब खाते ... ... १०००००० दामाजी अल्पसंख्यक मैना ले करके घरको लौट पड़े। मुकुन्द काजीको अतिरिक्त कर देने पर २६६३०, उमी ममयसे वह फिर अधिक युद्धविग्रहमें न लगे, अपने राज्यको ही रक्षा करते रहे। इमो समय उन्होंने गुज- नकद मोना ... ३७१५ रातको उत्तरदिक्क बधानपुरको छोड़ करके समस्त स्थान जुवान् मर्द खॉके पाममे अधिकार किया और ईडर कुल ... ... ५०८४८१४॥ के राठौरवशीय राजाओं को करद बना लिया। इसी इधर फतेहसिंहन बुद्धिहीन बड़े भाई मभाजीका प्रकार दामाजी एक पराक्रान्स नरपति हो गये। पेशवा | बडोदेके सिंहासन पर बैठा करके राजकार्य परिचालनका मधुरावके मेनापति रघुनाथ राव या राघवन अपने प्रभुके भार अपन हाथमें लिया और पेशवाको राजो करने के विपक्ष में अस्त्रधारण किया था। दामाजीने राघवको लिये पूना गमन किया। उसी समय मधुरावके वशमें सहायता करनेके लिये अपन पुत्र गोविन्दरावको समैना | विवाद उपस्थित हुआ था। लोभम पड़ करके पेशवाने भेज दिया। दोनों पक्षों में घमासान लड़ाई हुई, किन्तु सभाजीका अधिकार स्वीकार कर लिया और 'सेन खाल अन्तमें राघव हार गये। पेशवाने गोविन्दरावको पकड खेल' उपाधि दे करके फतेहसिंहको उनका अधीनस्थ बना रक्खा था। फिर दामाजोको ५२५००० रु. दे करके दिया। इससे गोविन्दरावके साथ उनका झगड़ा लगा पेशवाम मन्धि करनी पड़ी। वह शान्तिक समय ३००० था। फतेहसिंहने मधुरावसे कहा कि गोविन्दराव सम्भ- और युद्धक समय ४००० अश्वारोही देने पर स्खोकत हुए।। वत: युद्धका उद्योग करेंगे। सुतरां जो सैन्य उस समय एतदव्यतीत कई एक प्रदेश भो पेशवाने अधिकार कर पेशवाके पास रहा, गुजरातमें रखना अच्छा था और लिये । यह ठहर गया कि २५४०००० रुपया और मिलने उसके खर्च को वह वात्सरिक ६७५००० को ५०५२६३०)