पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३११

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गायकवाड. ३०१ प्रस्तुत थे । फतेहसिंहने पेशवाको अभिसन्धि भली भां त बड़ोदा राजाके पूर्वतन मन्त्री रावजी अप्पाजोने आनन्द समझ ली थी। वह जानते थे-पेशवा किमी ममय रावको सहायता करके कानोजी रावके हाथसे मरकारी उन्होंको आक्रमण करके विपर्यस्त कर डालेंगे। १७७२। खजाना निकाल लिया था । उभय पक्षों में मग्राम होने ई०को उन्होंने बम्बईमें अंगरेज सरकारके पास सन्धिका लगा। रावजीकी और उनके भाई बाबाजी, उनके प्रस्ताव करके भेजा । किन्तु विलायतके कोर्ट अब डिरेक अधीन गुजराती अश्वारोही दल और मात हजार अरबी मन उक्त प्रस्ताव पर अपनी असम्मति प्रकाश की थी। मेना थी। उस समय मङ्गल पारिख और सामएल परन्तु १७७३ ई० १२ जनवरीको भडोचर्क गजस्व विचर नामक दो कारिन्द जयादा मूद पर रुपया दे उक्त सम्बन्धमें एक मन्धि हो हो गयो।। सेनादलको पालन करते थे। मिपाही तनखाह पाने पर उधर नारायण रावके प्राणविनाशक बाद राघब अपना देना चुकाते थे । सुतगं वह कारिन्दों के विशेष पशवा ह ए और गोविन्द रावको 'मेन खास खेल्न' वशीभूत रहे । यह दोनों कारिन्द बाबाजोको पोर उपाधि मिन्ना था । इम बार गोविन्द रावका माहम बढ़ रहनसे आनन्द रावका हो पक्ष बलवान् ह.अ । उधर गया। वह फतेहमिहके हाथमे बडोदा गज्य निकाल कानोजीका पक्ष भो नितान्त महायशून्य न था। उनके लन गुजगतका चले थे । वहां पहचते ही गोविन्द पिटव्य मनहार राव कररी नामक स्थानकै जागीरदार गवन बडोदा अवरोध किया। राघवन नरोत्तमदाम रई । उन्होंने यह प्रतिशत होने पर कानोजीका पत्त नामक किसी व्यक्तिको गोविन्दरावकी प्रोग्से सरतक लिया कि कानोजी राजा होने पर उनकी बाकी मालगु- दक्षिण प्रदेशांका गजस्व चुकानको रख लिया था। जारी छोड़ देंगे और आग कोई कर न लेंगे उन्होंने प्रवि फतेहमिंद्र जा करके उमको पकड़ लाये । राघव उपोसे लम्ब हो स न्य सङ्गठन करके बडोदा राजा अाक्रमण गोविन्द रावक माथ घरा डालन में मिल गये । इधर किया। आनन्दरावकी ओरमे रावजोन अनन्योपाय हो पतिद्धामनन होलकर और मंधियाकी फौज ले करके करकं बम्बईको अंगरेज गवन मेगटको लिख भेजा- राघवकी फौज पर हमला किया था । राघव पराजित हो मन्न हार रावके विपक्षमें यदि अंगरेज साहाय्य करें तो कर भाग खड़े हुए। गोविन्द राव खगड़े गव प्रभृतिने हम ५ दल अंगरेजी फौजका खर्च देनको तैयार है। प्रथमतः कप्परवन और फिर पहलानपुरको पलायन बम्बईके शासनकर्ता डनकन साहबने इस पर भारत- कर आत्मरक्षा की। अखोरको राघवने अंगरेजों का गवन मे गटकी अनुमति मांगी थी। परन्तु बहत टिनों महारा पकडा । फतेहसिक गायकवार देग्यो । १७८० ई० २० अपेक्षा करने पर भी जब कोई मतामत न मिला, तो जनवरीको फतेहमिहके साथ एक मन्धि हई। पोछे अखौरमें उन्हों ने मेजर अलगजेण्डर वाकरको सेनापति उमर्क बातिल ठहरने पर १७८२ ई०को दूसरी सन्धि को बना १६०० सिपाहियोंके साथ रवाना किया और उनको गयो । १७८८ ई० ११ दिसम्बरको फतेहमिहके मरने कह दिया, पहले वह निबटारकी चेष्टा करेंगे, निब- पर दामाजो के अपर पुत्र मानाजी राज्यभार ग्रहण करके टारका सुभीता न पड़नसे रावजीके साथ मल हार रावसे पहलेकी तरह सभाजीके नाम पर राजा चलाने लगे। लड़ेगे। मल हार रावने भी गतिकको समझ बम १७५३ ई. अगस्त मासको उनके मरने पर पूर्वोक्त करके प्रथमतः बहुत भयभोत जेसे बन गये और अधि- गोविन्दगव गायकवाड़ बड़ोदाके सिंहासन पर बैठे कन स्थानों को छोड़ देने पर तैयार हुए। शान्तिको थे। १८००ई०के सितम्बर महोंने गोविन्द राव भी मर बात चल रही थो कि मल हार रावने एकाएक १७ गये। गोविन्द रावके ११ पुत्र रहे। उनमें जाष्ठपुत्र मार्च को अंगरजी फौज पर प्राक्रमण किया । परन्तु पानन्द राव सिंहासनारूद ह.ए । किन्तु उनमें वैसी बुद्धि अन्तमें उन्होंको पराजित हो करके भागना पडा। इस न थो। महजमें ही गोविन्द रावके दूसरे पुत्र कानोजो लड़ाई में अंगरेजों के ५० भादमी मारे गये । फिर राव राजाको सभी क्षमता अपने हाथमें लेने लगे। मत हार राष चुपके चुपके बाबाजीका कितना ही सेना-