पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३१७

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गायत्री जमा नाम पड़ता है। यह त्रिसन्धयाको पवित्र भावमें । ३ जो मविता सूर्य देव हम लोगोंको ममम्त कम में गायत्री जपरुप उपामना करने पर वाध्य हैं । यह नियम | प्रेरण किया करत, हम उन्हों' जगतप्रसविता द्योतमान वर्ण त्रयम चिरदिनमे चलता है। इमका कोई ठिकाना य देवर्क मबको प्रत्यक्ष, उपास्य तथा पापनाशक तेजो- महीं, कौन ममयको किम महात्मान प्रथमतः वह निगम मगडलकै ध्यान रहते हैं। चलाया। प्रत्येक वदिक मन्त्रका कोई न कोई ऋषि ४ अथवा भगें शब्द का अर्थ अब है। जो सविता होता है किमो किमो पद्धतिकारके मतमें वेदमन्त्र हमारो धोतिको प्रेरण करत, हमें उन्हों मवितादेवक अनादि होते भी जो ऋषि मर्व प्रथम जिम मन्त्र हारा प्रमादमे प्रशमनीय अनादिरूप फल मिलते हैं। कोई कार्य करके चरिताये हया, अपने मन्त्रका ऋषि (ऋ* २०६९।१० भाप्य, माम उत्तर हा१०१ भाषा) कहलाया। गायत्रीमन्त्र के ऋषि विश्वामित्र है। इम ५ द्योतमान प्रेरक. अन्तयामी, विज्ञानानन्दस्वभाव स्थल पर उनके मतानमार कहना पड़ेगा कि विश्वामि- हिरण्यगर्भ वा आदित्यरूप उपाधिधारो ब्रह्म के प्राथ नीय; न ही मबम पहले उमको जप करके मिद्धि पायो। पाप तथा ममारवन्धननाशक तेजको चिन्ता करते हैं। वंदक टोकाकार माय गाचार्य ने ऋग व दभाष्य को। वह मविता हमारी बुद्धि मत्कर्मानुष्ठानको प्ररण करते भूमिकामें लिखा है कि युगान्तको इतिहासादिक माथ हैं। ( नमनयम हिना ३३५ महीधर ) ममम्त वंद अन्त हो जाता। ऋषियांक उमको इसका कोड करके गायत्रीको और भी अनेक प्रकार प्राप्तिके लिये तपस्या करने पर ईश्वर अनुग्रहसे फिर व्याख्या सुन पड़ती है। कोई कालोपत्त, कोई विष्णु निकल आता है । इस प्रकार वंद पूनार प्रकाशित और कोई शिवपक्षमें भी उसकी व्याख्या करता है। होता है युगान्तको वेद अन्तहित होने पर जो ऋषि गायत्री उपामनाप्रणालो-मनुके मतानुमार गायत्री म प्रयम उमको पाता, उमका हो ऋषि कहलाता मन्त्रमें दोक्षित होनम उपासक पुनर्जन्म पाता है। उम है । ( क क १११ भाषा ) अतएव मायणक मतानुसार भी __ जन्ममें आचार्य पिता और मावित्री हो माता है। गायत्री मबम पहले न मही, डमी युगमें पहले पहल विश्वामित्र. ___ और तत्प्रतिपाद्य ब्रह्मकी अभदचिन्तामे उपामना करनी ने ही गायत्री मन्त्र पाया था उसके जप करनको प्रणालो- पड़ता है। याज्ञवल्काके मतमं प्रणव ॐ और व्याकृति को चलाया था। ( भूभुवःम्वः ) योग करके गायत्री उपामना करनी ___ गायत्री मन्त्रक प्रतिपाद्य अर्थात् गायत्री मन्त्र हाग चाहिये। विष्णुधर्मोत्तरमें लिखा है कि पञ्चकर्म न्द्रिय, वर्णित होनवान्न हो इमकी देवता हैं और इममे । पञ्चज्ञानन्द्रिय, पञ्चविषय, पञ्चभूत, मन, बुद्धि, आत्मा ओर उन्होंको उपासना की जाती है। उपनिषदकै मतमे गायत्री प्रक्लति २४ पदार्थीको गायत्रोके चतुर्विशति अक्षरांमें यथा रूप उपाधिधारी ब्रह्म ही उसके प्रतिपाद्य हैं। गायत्रीम कम चिन्ता करते हैं। अग्नि, वायु, मर्य, विद्य त्, यम, उन्होंकी उपासना होती है । सभी वैदिक उपामनाराम वरुण, हत्पत, पजना, इन्द्र, गन्धर्व, पूषा, मत्रावरुण, गायत्रीको उपामना थेठ है। (कान्दाग्या उप० २४१९।१) त्वष्टा, वामव, माकत, सोम, अङ्गिरा, विश्वदेव, अश्विनी गायत्रीका अर्थ - कुमार, प्रजापति, मर्व देव, रुद्र. ब्रह्मा और विष्णु यथा- १ जो सविटदेव हमारा कर्म ( कम न्द्रिय अथवा क्रम गायनीस्थ २४ अक्षरोंक अधिपति है। जपकालको धर्मादि विषय बुद्धि ) प्रेरण करते हैं. हम उन्हीं मर्वा- इनकी चिन्ता करनी पड़ती है। प्रणवको ईश्वर भावना स्तर्यामो, जगतस्रष्टा, परमेश्वर, मबर्क सेवनीय, अविद्या करते हैं। तथा तत कार्यनाशक और परब्रह्मस्वरूप ज्योतिको चिन्ता करते हैं। ___ काशीखण्ड में गायत्रीका विषय इस प्रकार लिखा है- ____२ हम सवित्रदेवताकी अविद्या और तत् कार्यनाशक अष्टादश विद्याधाम मामांसा प्रधान है । मीमांमामे उन ज्योतिको चिन्ता करत, जो हमारी कर्म वा धर्माटि तर्कशास्त्र, तर्कशास्त्रमे पुराण, पुराणसे धर्म शास्त्र और विषय वृद्धिको चलाते रहते हैं। धर्म शास्त्रसे वेद बड़ा होता है। वेदों में फिर उपनिषद