पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३१८

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गायत्री प्रधान है परन्तु गायत्री उपनिषद्से भी बहुत अष्ठ हैं। सुन्दरी कन्या दूध और दही बेचने जातो थो। देवराज गायत्रीसे अधिक और कोई मन्त्र नहीं। बह वेदमाता उमको पकड़ लाये । महाविष्णकै आदेशमे ब्रह्माने और ब्राह्मणप्रमवकारिणी हैं। जो व्यक्ति उनका गान उमके माय गान्धर्व विवाह किया था । उन्होंका करता, विघ्नवाधाओंसे बचता रहता है । इमोमे उन्हें नाम गायत्री है। गायत्रीका वर्ण शुभ्र, दो हाथ, एक गायत्री कहते हैं। मविटदेव ही इस मन्त्रक वाच्य हैं। हाथमें कोई मृगाह और दसरमें पद्म है। उनमा ऊरु- गायत्रीके हो प्रभावसे राजर्षि काशिकने ब्रह्मर्षि पद और य अतिशय त्रिगान, परिवेय वमन रक्तवर्ण, वनस्थल एक जगतमृष्टि करनेको शक्तिको पाया था। गायवोको पर मनोहर मुकाहार, कण में कुण्डल और मस्तक पर उपामना करनमे मब कुछ हो मकता है। ब्रह्मा, विष्णु, नानाविध रत्नक्ति मुकुट है ! वाहाण नोग पकग्में महे वर प्रभृति मभी गायत्रीम्वरूप हैं। वद वा अनन्त नान करके गायत्री जपने पर अमत् प्रतिग्रजनित पापमे शास्त्रपाठमे नहीं, कंवल त्रिसन्ध्याको गायत्रीको उपासना विमुक्त हो मकते हैं : गायत्री जप करनमे दश, शत वा करनमे हो ब्राह्मण बना जाता है । ( 2,1211: ) महसू जन्मों में भी जो ब्रह्महत्या पहश पार "ए हैं - ___प्राय: मभो पुराणोपपुराणीमें थोड़ो बहुत गायत्रीकी मिट जाते हैं। वह व दमाता हैं और वगं, मत्य तथा प्रशंमा है। याज्ञवल्कामंहितामें निावा है, किमो ममय पाताल हिलोकमें व्याहा हो करके अवस्थिति करती हैं। परीक्षा करन लिये एक और मामवेद अो ब्राह्मण गायत्रीग्रहण के पोछे माह पर्यन्त लिकालको ओर गायत्रोको तुला पर चढ़ाया गया था। इममे साम- उमकी उपासना न करने मे पतित होते हैं । ( 111 ) वेदकी अपेक्षा गायत्रीका ही भार अधिक निकला। जो मध्याविधिमं कहा है कि प्रात:मैं गावलोको रक्तव, गायत्री ममझता, वहो ब्राह्मण ठहरता है । गायवो न हमवाहिनी, द्विभुजा, यज्ञोपवीत तथा कमगडनुधारिण जाननेवालको वेदपारग होते भी शूद्र जमा हो ममझना ब्राह्मणीमदृश चिन्ता करना चाहिये । मधाहम वह चाहिये। त्रिसन्ध्याको मध्यारूपिणी गायत्रीको उपामना खेतवर्ण, चतुर्भुजा, शङ्ख, चक्र, गदा तथा पद्मधारिणो करना उचित है। व्यामके मतमें प्रातःको उमका नाम गरुडवाहिनी विष्णुशक्ति जमो और माय कालको नील- गायत्री, मध्याहुको मावित्री और मायाङ्गको मरस्वती है। वर्ण. वृषभवाहिनी त्रिशूल, तथा डमरुधारिणो, अर्धचन्द्र ___ पद्मपुराणमें गायत्री ब्रह्माकी स्त्री जमो वर्णित हुई विभूषिता जसो चिन्ता को जाता है। हैं। उमका उपाख्यान इस प्रकार है-एक समय ब्रह्मान गायत्रोतन्त्रमें बतलाया है कि न्यास व्यतीत गायत्री किमो यन्जका अनुष्ठान किया। इन्होंने मावित्रीको जप करने से कोई फल नहीं मिलता। उमोमे गायत्रोक यजस्थानमें लाने के लिये उनके निकट इन्द्रको भेजा था। पूर्वको नाम करना पड़ता है। यतियांशी पञ्चमुद्रा और देवराजके उनके पास पहुंच करके ब्रह्माका आदेश बत- ग्राहियों को केवल तत्त्वमुद्रामें न्याम करना चाहये । पाद- नाने पर मावित्रीने कहा--कि लक्ष्मी आदि मग्खियां से मस्तक पर्यन्त ७ बार “भूभुवः स्वः" अंश न्याम करना उम ममय उपस्थित न थीं, वह एकाकिनो कैमे जा पड़ता है। फिर योगोको चित्त स्थिर करक पादाङ्ग ठमें मकतीं । आप विरिञ्चिमे कह देते कि मखियों के मिलते तत्, अङ्ग लोक मध्य म, जामें वि, जानुक मधामें तु, ही वह उपस्थित हो जावेंगो । यही कह करके मावित्री मादेशमें व, गुह्यमें रे, पणमें ण, कटिदेशम य, । ग्रहकाय में व्याप्त हुई। द वगजन जा करके ब्रह्माको नाभिमें भ, उदरमें गर्गा, स्तनहयक मधा दे, हृदयमें व, उक्त सूचना दो थो। ब्रह्मान पत्नीक व्यवहारसे नितान्त कण्ठम स्य, मुखमें धो, जानुम म, नामिकाग्रमें हि, असन्तुष्ट हो करके इन्द्रको कहा कि-देवराज उनके ___ चक्षमधाम धि, भ्र मधा बो, लन्नाटमें यो, मुखमें नः, लिये कोई दमरो रमणी लात, वह उमो ममय यत्न कर दक्षिणमें प्र, पथिमम चो, उत्तरमें द, मस्तक यात् वर्गः । मेको प्रस्तुत थे । ब्रह्माकं आद शमे इन्द्र अन्वेषण करते नाास करना चाहिये। नाम पूरा हो जाने पर "तत्" करते धरातल पहचे। उसी समय ग्वालेकी कोई वर्ण हयको चम्पक कुसुम जैसा पीतवर्ण स को श्यामवण