पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३२१

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गारो-गारो मारी। श्री ( हिं० स्त्रो०) १ दुर्वचन, गाली। २ कलकजनक स्थित है। नेत्रफल ३१४० वर्ग मोल है । इमर्म तुरा और अरला पहाड बडा है। यह दोनों गिरि समान्तरान हड़ ( म० की० ) गरुड़ाय उक्त विणुना यहा तस्य दम् भावमे पूर्वपश्चिमको विस्त त हैं। तुरा पबतमें २ उच्च अण। १ गरुड्युराण । २ विषहर मन्त्रविशेष, वह चूड़ाएं हैं। उनको उच्चता ४६५० फुट निकले गो। उन मन्त्र जिससे विष उतरता है। ३ गरुड़ाकृति व्य हभेद, दोनों के बीच बीच उपत्यकाएं भी हैं। गारो पहाड़ गरुड़ आकारको व्य हरचना । जङ्गलमे प्राय: परिपूर्ण है। जङ्गलमें अच्छी अच्छो "गाकडच म चक्र प्रान्त नवरा- भारत ५६०) लकड़ी मिलती है । तुरा नामक चोटी पर चढ़न मे ग्वाल- ४ मरकतमणि, पन्ना। पाड़ा, मैमनमिह तथा रङ्गपुर जिन्ना ओर ब्रह्मपुत्र नदीकी "राशिम गानामि गारुडाम" (रघ । ३५३) गति ५० कोम तक देख पड़ती ग्रार हिमालय तक भी ५ स्वण, माना। गरुडो देवताभ्य पण । अस्त्र- दृष्टि पहुचतो है । म्याज स्थान पर उपत्यकाके भीतर विशेष, एक हथियार । (गमा० ६१४:१३. ) ( स्त्रो०) नदोको यहता दव नयन मन चरितार्थ होता है। तग ७पातानगरुडलता। ८ मन्त्रमे मपका विष झाडनवाला। पर्वतका अपर चड़ाको हिन्दू के नाम करते हैं। परन्तु गाड़ि ( मं० पु०) आठ प्रकार तालमिसे एक । गागे और ग्वामिया लागो द्वारा, वहो चिकमगा, भीम- गाडिक (मं० पु० ) गागड़े न 'वषमन्त्रण जीवति ठक् । तुग वा मानगई कही तो है । अन्यान्य स्थानों के १ विष द्य, मर्पका विष झाड़नवाला। पर्वत कमश: ढान्न हैं, कहीं कहीं ऊचे भो पड़ गर्य "मन सामा] यथा । (हाविन तान) हैं । किन्तु कलम नामक चूड़ार्क पाम पहाड़ एक बारगी २मन्वमे मएं पकड़नगला, मपरा । ही ऊचा उठ गया है। प्राकृति कुछ कक शूकरके पृष्ठ गारुत्मत ( म.ली. ) गरुत्मान गरुड़ो देवतास्य अण जैमी है। या पाश्व धर्ती सभी पहाडीको अपेक्षा १ गाड़जाका अस्त्र। २ मरकतमणि, पन्ना। ३ नव- ऊ'चा है। रत्नराज मृगाङ्ग इम पव तक सभी स्थानो में पश्वादि चरते हुए घूम गारुत्मतपत्रिका मं० स्त्री०) गारुत्मतमिव वर्णन पत्रमस्य मकते हैं । इमम दो प्रकागड गहर दंख पड़ते हैं। कप अत इत्वम् लताविशेष, एक प्रकारको लता, गङ्गा- मोम ज्वरो और गणेश्वगे नदीक बीच जहां चनका कान्ड पत्री। मिलता, एक गुहा है। रायक नामक स्थानके निकट गालिया-बङ्गालमें : ४ परगर्न अन्तर्गत वागेकपुर जिले- जो गहर पड़ता, सबसे बड़ा लगता है : उमका प्रवेश का एक शहर। यह अक्षा० २२४८ और देशा०८८ स्थान प्रायः १२ हम्त उन और १० हम्त विस्त त है। २२ पृ. हुगली नदोके पूर्व तोरपर अवस्थित है। लोक भीतरको प्रायः ६० हाथ जानमे देव पड़ता किसी छोटी मंख्या प्राय: ७३०" -। यहां पाट पार कईका व्यव- कुन्न हड़ जे मी जगहमे एक नदी बहता है। वह रतनो माय अधिक होता है। गहरका प्राय ६००० रुपया छोटी है कि मनुष्य उममें प्रवेश कर नहीं सकता। और कुल व्यय ८००० रु. है। । पहाडक भीतर मम्भवत: कहीं न कहीं जलाशय वा गारो ( हि पु० ) १ गर्व, अहङ्कार, अभिमान, घमड। हद विद्यमान है इम गुहामें चिमगोदड़ रहा करते हैं। २ प्रतिष्ठा, सम्मान गारो पर्वत पर उणप्रसवण नहीं। परन्तु लोनी गारो-पासामको एक दक्षिणपथिमस्थ गिरियंणो। यह मट्टी रहनसे बोध होता, कभी वा लघगात प्रस्रवण असा० २५८ तथा २६१ उ. पार देशा०८८४८ विद्यमान रहे । उमीसे लवणात महा हो गयी है। यहां एव ८१२ क बोच पड़ती है । इसके उत्तर ग्वाल- हस्ती और हरिणका दन पा करके विचरण करता है। पाड़ा जिला, पूर्व खासो और जयन्ती पाड़, पश्चिम तथा गारो लोग उम जगहस नमक नहीं निकालते । गारो दक्षिण बङ्गालका रङ्गपुर तथा मसनसिंह जिला अब- पहाड़क बोच मोमेश्वरी, गणेश्वरी, नताई और महाव