पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३२२

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गारी नदीके उत्यत्तिस्थानमें भग्नपर्वत दृष्टिगोचर होता है। बीच बीच पहाड रहनसे नाव प्रानजानका सुभीता नहीं यहां स्वभावको शोभा अत्यन्त चमत्क त है। है। उच्चतर प्रदेशमें मिज तक नोका आदि चलत हैं २ गारो पहाड़क ऊपरका एक जिला। अधिवामी रङ्गकाई, रङ्गाई ओर चिबुक नामी उपनदियां उस उसको गार याना या गवाना कहते हैं। यह आजकल जा करके मिलित हुई हैं। पासाम चीफ कमिश्नर अधीन है। इमका क्षेत्रफल ३ पर्वतवामी जाति। आजकल गारो पहाड़की जो ३१४० वर्ग मील होगा। लोकसंख्या कोई डेढ़ लाख है। सीमा निर्धारित हुई, ग्रामोंमें गारो भिन्न हाजङ्ग, कोच, सुरा नगरमें अदालत लगती है। गागे जिल्लाकै उत्तर राजशो, दाल, मेच और मुमलमान जाति भी बसी ग्वालपाडा, पूर्व खमिया पहाड़ तथा महेशग्वाली नदो, है। थापा नामक ग्राममें राभा नामक एक जातीय दक्षिण में मनमिह और पथिमको ग्वालपाड़ा जिन्ना है। लोग दंव पडत हैं। गारोजाति उनमे स्वतंत्र है। पूर्व सीमागे स्थिर हुए अभा बहुत दिन नहीं बत। गारोजातोय लोग द ग्वनमें ककारी और कोचों को यह जिल्ला पहाड़ी है। इमको कणाई, कान, एक मध्यवर्ती जाति जैमे ममझ पड़ते हैं। कछाग्यिोंकी भोनाई, नताई और मोम श्वरी कई नदियों में नाका गम- अपेक्षा कोचजातिक माथ इनका मोमादृश्य अधिक है। मोपयोगी पाना रहता है। कृष्णाईनदी अरबला पर्वत- प्रवाद है कि पह ने ममम्त गारो पहाड़ कोचों के अधि- के मध्यस्थित मण्डलगिरि नामक ग्रामक निकटमे निकल कारमे था, पीके गारोओं ने प्रबल हो करके उनका उत्त- उत्तराभिमु व रङ्गगरनगिरि, थापा और मनमा गविोंको रांशमें खदेर दिया। मिष्टर हजमनने अपने 'भारतक पार करके ग्वालपाड़ा जिल्लाकै जीरा नामक ग्राममें जा अमभ्यजाति' नामक पुस्तकमें गारोपी का लक्ष्य करके गिरोहै। तुराम बारागनी नदी बह करके कान नदी लिखा है कि उम यणीक लोग अपना निज जातोय में पतित होती है। गारो लोग उसको रङ्गकन कहते खा करके पूरे बङ्गाली बन गये हैं और अपनी निज भा. हरिगांवमे दामानगिरि तक कान्न नदीम नाव चलती भी भून बैठे हैं। गारी पहाड़के बीचवाले राभा लोगों हैपरन्त उमक जनमें बड़े बड़े वृक्ष रहनेमे नौकाओंके को भाषा अन्नग है। दाल जातीय दाल नामक ग्राममें यातायातमं बड़ो ही असुविधा है। भोगाई नदी तुरा- वाम करते हैं। पूर्व कालको उनकी भाषा निराली रही, नगरके दक्षिण-पूर्व मे उङ्ग त हो दक्षिणको बहती हुई परन्तु अब उमका चिह्नमात्र मिलता है। हाजङ्ग जातीय पनाई, लुगा. मोरापाड़ा, रैमराङ्गपाडा, मोवनोपाड़ा, इन्ही जैसे हैं। चलीपाडा, जमदगिरि, चन्द्रपाड़ा और बुदरपाडा गांव गारो लोग दृढ़काय, नातिदोर्ष, कर्मठ, मांमन्न और पार करके दाल ग्राम में मनसिहकै नमोरावाद ग्राम कष्टमहिष्ण होते हैं। इनका हनुदेश उच्च, नामिका पर ब्रह्मपुत्रनदीके पुरातन गर्भमें जा गिरी है। नोयरांगा बड़ी, चक्षु ईषत् रक्ताभ, कर्ण दीर्घ, ओष्ठाधर मटे, श्मश्रु नानी उपनदो रेमरान पाडा ग्राममें इमाम आ मिली है क्षुद्र और गात्रवर्ण कृष्णाधिक्ययुक्त ताम्रवण है। इनमें मलाई तुराको दक्षिण दिकसे निकल वक्रगतिमें दक्षिण- क्या स्त्री क्या पुरुष कोई सुथी नहीं। यह भारवहनम् . मुग्व चल रङ्गन, बुदूगिरी, गरोङ्गिथी. फापा, दमिङ्गगाङ्ग- | इतने पट होते कि कृषि द्रव्यका जैमा बाझा उठा करके - चङ्ग, अदिपरिरी तथा बोगाझोडागिरी ग्राम हो मेमन- पहाड़क ऊपर आत जात, दूमरा कोई वैसा करनेक सिह मफरकोट या घाषगांवसे काङ्गस नदीमें जा कर माहस नहीं दे खाते। इनकी दाड़ी मूछ इतनी अल्प के मिलित हुई है । सामेश्वरी नदीको गारी लोग मङ्ग- आती कि किसीके मुग्व पर प्रायः नहीं जैमी दिखलाती माद कहते हैं। इन जिल में वहो नदी सर्वापेक्षा वृहत है। आजकल स्वाधीन गाराम कोई कई दाढी है । तुरा नगरकै उत्तरांशम उसकी उत्पत्ति है । फिर रखता ; नहीं तो जिमर्क श्मश्रु देख पड़ता. लोम खो- स मेश्वरी उत्तरवाहिनी हो १५ कोस दक्षिण जा मैमन- खोच करके उखाड़ा करता है। यह मत्थे पर लम्ब सिंहके सुसङ्ग परनने मिरी है। नदीके निम्नप्रदेशमें लम्बे बाल रखते, उन्हें कभी भी काटा नहीं करते।