पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गाव-गावली ३२० ब्राह्मणों के प्रति इनकी विशेष भक्ति है । इनका गावदो ( हि वि० ) अबोध, जड़, नाममझ, बेवकूफ । जन्म, मृत्य, विवाह और अपरापर व्रतकर्म ब्राह्मण गावदम ( फा० वि० ) १ जो बैलको पूछ की तरह पतला द्वारा हो मम्पन्न होता है। यह सभी देवदेवियों का हा।२ चढ़ाव, उतार ढाल । उपासना करते हैं। परन्तु उसम वैतालको पूजा मबस गावपछाड़ ( हि . स्त्रा० ) कताका एक प च । बड़ी है। मब हिन्द्र पवा को पालन करते भी यह कोई गावल (हिं पु०) दलाल। उपवाम नहीं मनात ओर भूत, प्रेतात्माका आगमन ' गावगाणि ( म० पु. ) धृतराष्ट्र मन्त्री और माथी, मञ्चय शुभाशुभ चिङ्गदशन प्रभृति इष्टानिष्टदायक घटनामा गावली-दाक्षिणात्यक ग्वाला जाति । वोजापर, मुह- पर विश्वाम लाते हैं। किसीके भी मरने पर शवदाह नहीं करते। म्मदपुर, नाघनकोट, कलकल, कानादगी, तानोकोट __ इनमें विधवाविवाह प्रचलित है। जातोय एकता और मिन्धगो प्रभृति स्थानों में यह रहते हैं। शोलापुरक निकटवर्ती परादरपुरमें इनका आदिवाम रहा। मम्भवत: सूत्रमें मभो आबद्ध होते हैं। गाव (फा० पु० ) गाय, बैल । गाय दहन हो इनको गावलो कहा जाता है। इनमें २ थगियां होती हैं. नन्दगावली और खिल्लारी। गावकुशो ( फा० स्त्री० ) गोधात, गोवध । वर कन्या दोनों एक पदवीके होनसे विवाह नहीं होता। गावकुम ( फा० पु. ) लगाम । गावकोहान (फा. पु. ) एक तरहका घोडा, जिमको पीठ ____ यह बहुत गरीब होते ओर देखने में मराठा कुनबियों- पर बलको तरह कूबड़ निकला हो। इस तरह जैसे लगत हैं। मराठी पगड़ीके बदले इनमें कनाड़ियां जैमा रूमाल व्यवहृत होता है। यह गांवमें रहना नहीं घोड़े पर चढ़ना दोष माना गया है। गावखाना ( फा० पु० ) गाशाला। चाहत और उसीम में दानमें झोपड़े बना अपन अपन गावखुद ( फा०वि० ) १ अन्तर्धान, गायब । २ नष्टभ्रष्ट, गोमेषादिक माथ निवाम किया करते हैं। इनमें मभी बरबाद। लोग प्रायः निरामिषभाजो हैं। समाह वा पत्तान्तरका गावजवान ( फा० स्त्रो०) फारम देश के गोलान प्रदेशमें एकबार मात्र मान किया जाता है। कोई काई प्रति उत्पब एक प्रकारको बूटो। इमक पत्र हरे रंग लिये रविवारका मानान्तमें गृहस्थित खंडावाको प्रतिमूर्ति मोटे होते हैं और इनके ऊपर छोटे छोटे दाने निकले। पूजते और उमका दुग्ध आदि निवेदन करते हैं। रहत हैं। दमक फल लाल रंगके छोटे छोटे होते हैं। ___ यह लोग स्वभावतः धौर, परिश्रमी, सञ्च और मित- इम बूटी के सेवन करने से ज्वर तथा खांसी जाती रहती व्ययी हात हैं। गाय, भेड़ आदि पालन और दुग्ध, दधि, मकवन प्रभृति विक्रय हो इनकी उपजीविका है । लिङ्गा- गावजोरो ( फा॰ स्त्रो०) १ बलप्रर्दशन। २ हाथापाई, | यत या नन्दगावली स्वजातिस्पृष्ट अव व्यतीत किसी भिडत। दूसरे व्यक्तिका अब भाजन नहीं करते। परन्तु खिल्लारी गावट-बम्बई प्रदेशस्थ महीकाण्ठा विभागके अन्तर्गत सभीक हाथका ग्वा लेते हैं। तुलजापुरके खण्डोवा और एक. युट्र राज्य । इमका क्ष त्रफल १० वर्ग मील है। लोक अम्बावाई इनको प्रधान देवता है। यह पगढरपुर, संख्या प्रायः २४५४ है ! कोलिव शोय ठाक र यहांक | जजुरो, तुलजापुर आर मिङ्गनापुरको तीथयात्रा करते हैं। राजा हैं। राजाका वार्षिक आमदनो प्रायः तीन हजार | ब्राह्मणां पर इनको अवला भक्ति है। पगढरपुरक क० हैं जिनमे ४२) रु० ईडरके राजाको कर देना निकटवर्ती मादलगावमें इनके गरु रहत और सब लोग पड़ता है। उनको चन्द्रशेखराप्पा कहते हैं। वह अविवाहित होते गावड (फा० स्त्री. ) गला, गद न । और मृत्य के पूर्व एक शिष्य रख लेते हैं। गुरुके मरने गावतकिया ( फा. पु०) कमर लगाकर बैठनका एक पर शिष्यको चन्द्रशेखराप्पा पद मिलता और चिरजीवन बड़ा तकिया। अविवाहित रहना पड़ता है।