पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३३१

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गिंदौरिया-गिनी ३२१ गिदौग्यिा--युक्त प्रदेशके बनियाँको एक शाखा। गिंदौरा काबुलसे इनको निकाल बाहर किया। पोकेको यह बैचनमे हो उनका यह नाम रखा गया है। मेरठ में गिंदी- पेशावर उपत्यकामें आ करके वम गये । आजबल रिया बहुत हैं। काबुन्न और स्वात नदोको मध्यवर्ती उर्वरा भूमिमें समझा गिंदौरा (हिं. पु०) चीनीप्रभट, चोनोका एक भेद । यह निवाम है। मोटो रोटोके आकारमें गन्नाकर ढाला जाता है। इस गिनिहलो-दाक्षिणात्यक धारबाड जिलाका एक गड- तरहकी चीनीको रोटीका प्रायः विवाहादिमें व्यवहार ग्राम । यह हानगल नगरमे २ मील दक्षिण अकसित होता है। है। यहां वामवश्वरका एक मन्दिर है। इमो मन्दिरले. गिउ (हिं पु० ) गला गरदन मधामें वामवमूर्ति के दोनां पार्श्व पर ११०३ .की गिचपिच (हिं० वि० ) अम्पष्ट, एकमे मिला जला। उत्कीर्ण २ शिनालिपियां लगी हैं। गिगिनिया (हि.स्त्री० ) कचपचिया देखो। गिजी-मन्द्राज प्रान्तीय दक्षिण अर्काट जिलेक सिटि गिचिरपिचिर (हि.वि.) गिपिच देखो। वनम् ताकाका एक पर्वतमय भूभाग और गिरिदुर्म । गिजगिजा ( हिं० वि० ) अस्पष्ट, गोला । यह अक्षा० १२.१५ उ. और देशा. ७८.२५. में गिजा ( अ० स्त्री० ) ग्वाद्यवस्तु, भोजन, खानको चोज। मन्द्राज नगरमे दक्षिण-पश्चिम अवस्थित है। लोकमला गिजाली (मोन्लाना ) एक राजकवि। इन्होंने अपने एक प्रायः ५२४ है। पहाड़ी किला बहुत पगना है। उसी कसौटेमें लिया है कि मेरा जन्म १५२४ ई०को हवा । पर वहुकालसे यह स्थान इतिहामप्रमिड है। कछ दिन पहले यह अपनी जन्मभूमि मशहदमे दाक्षिणात्य आये, पहले पर्वतर्क निम्रदेशमें अल्पसंख्यक यह व्यतीतरी परन्तु वहां आशा पूरी न होने पर जौनपुर चले गये और भी ममृद्धिशाली ग्राम न रहा। गवर्न मगटन यह नाम जौनपुरक मूबेदार ग्वॉ अमां अलीकुन्नी ग्वाँक नोंचे कई स्थिर रखनको निकटवर्ती बगाया ग्रामको भी मिली वर्ष कार्य करते रहे। उसी ममय इन्होंने 'नक्शबदोष' नामसे अभिहित किया है। दुर्गको तीन ओर राजगिरि, कविता लिम्वी थो। उमौके लिये पृष्ठपोषक नवाबन कृष्णगिरि और चन्द्रायण दुर्ग नामक-३ पर्वत ।। इन्हें प्रति शेर (दोहा) एक अशरफी इनाम दी। १५६८ यह तीनों पहाड़ परम्पर सुदृढ़ प्राचोर द्वारा सलग्न । ई०को अकबर बादशाह के माथ लडाईमें ग्वा जमानके मारे मुतरां कोई शत्र इम किलको महजमें हो दरवन र जान पर यह मम्राटके हाथों पड़ गये। बादशाह अक नहीं मकता । पर्वत और प्राचौरको ले करक दकर बरन इन्हें नोकर रखा और 'मालिक-उण शुभारा' (कवि परिधि ७ मोलसे अधिक पड़ता है। इमका कोई प्रत राज ) उपाधि प्रदान किया। भारतमै इन्हें ही पहले प्रमाण नहीं मिलता, कब किमन उसे बनाया था। बीई पहल वह उपाधि मिन्ना था। यह अकबरके माथ गुज- कहता कि चोल राजाांक ममयको वह मव प्रथम रात जोतने गये और वही १५७२ ई० ५ दिमम्बरको स्थापित हुवा । फिर किम के मतमें १४४२ देपर रोगग्रस्त हो चल बसे। अहमदाबाद के मरकोज नामक तीर-शामनकर्ता विजयरङ्गनायकके पुत्र उमे बनवाने स्थानमें इन्हें गाड़ा गया। इन्होंने एक दीवान् और लग छ। किन्तु विजयनगरराजकर्ट क १३८३ ई.को किताब अमरार', 'रशहात्-उन्न हयात' और 'मिरत-उन्न- प्रदत्त एक प्रशस्तिमें लिखा है कि दुर्गमे हो उम प्रदेशका कायनात' नामको ३ ममनवियां लिखी हैं। नाम गिना पड़ा । अतएव कोई सन्द ह नहीं कि बनी गिजियानी--अफगानस्थानके रहनेवाले 'कथाई' पठानोंको पहलमे हो उमका निर्माण कार्य मम्प ण हो गया था। एक शाखा । ई० ५वीं शताब्दक शेष भागमं तैमुरक इम किरमें कल्याणमहल, जिमखाना, शस्यागार, द. ममयको भो इनका कोई निर्दिष्ट वामस्थान न था। उल्लग गाह बारिक, मण्डप और एक ८ मञ्जिला गुम्बज है। बगक राजत्वकालमें इन्होंने उनको बड़ा साहाय्य दिया, इम गुम्बजके पहले ६ खगडांमें ८ फुट चौकोर घसी परन्तु उन्होंने कत-उपकार भूल विश्वासघातकता पूर्वक चारों किनारे बरामदा और प्रत्ये क तलसे ऊपर चढ़ने Vol. VI. 83