पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३३३

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गिड डा-गिद्धौर गिरो है। उत्पत्ति स्थान पर जल अत्यन्त स्वच्छ रहनेमे | देशा० ८६ १२ पू०में अवस्थित है । लोकसंख्या प्रायः हमको 'शीशापानी' कहते हैं। पहले यह गक स्रोतमात्र १७८० है। पूर्वकालको यह नगर खूब मलिशानी और रही, किन्तु अब प्रकृत नदीका आकार धारण किया है। बहुजनाकोगा था, परन्तु अब क्रमश: हीन हो रहा इमक गर्भमै ग्वगड रखगड पत्थर पड़े हैं। इमको गम्भीरता | है। नगर के निकट किसो बड़े पुराने किल्लेका भग्ना- ३1४ फुटमे अधिक नहीं, ओर प्रस्थमें प्रायः ४०० गज वशेष है टुग का प्राचीर और घर पत्थरके बड़े बड़े होगी। परन्तु स्रोतको गति इतनो वेगवतो है कि दो टकड़ामे निर्मित हुवा है। इसमें किमी किम्मका दमरा एक स्थानांको छोड़ करके हाथो भो पार हो नहीं सकता। माल अमबाब देख नहीं पड़ता। गढ़के मध्य प्रवेशक इमको तौरभूमि शानव जमे परिपूर्ण है, बीच बोच पहाड़- ४ पथ हैं। यथाक्रम में दक्षिा , पथिम और उत्तरका को घाटोमे कोटे छोटे स्रोत निकन्न पड़े हैं। इनके हार हम्तो, अश्व तथा उष्ट्र नामसे पुकारा जाता, कंवल- मध्य होप-जैमो वनमय चरभूमि है। इसी नदीमें सरयू | | मात्र पूर्वहार महादेव-दरवाजा कहालाता है कोई कोई और मारदाका जन्न मिलनेमे घर्घग बनो है। कौड़ि- कहता कि शेरशाहने वह किला बनाया था । परन्तु याना हिमाम्नयक शोशापानी स्थानमे फटती और थोड़ो यह बात विशेष प्रामाणिक नहीं, दुर्ग बहुत ही प्राचीन दूर आगे चल करके दो भागोंमें बंट जाती है। पश्रिम है। सम्भवत: मम्राट् हमाय के माथ युद्ध कालको उन्होंन गाग्वाका कोडियाना और पूर्व शाग्वाका नाम गिड़वा है। इसका कंवल जीण संस्कार कराया था। ऊपरका यह जारसे बहती है। धनीरामें नावें चलती __ वर्तमान गिडोर राजवशक प्रतिष्ठाता वीरविक्रम हैं । इम नदोकी गह नेपालसे अनाज, लकड़ी, अदरक, मिह चन्द्रवंशीय क्षत्रिय रहे । उनके पूर्व पुरुष बुदेल- मिर्च और घी पाता है। बरगयचमें भर्थापरके नीचे खगडक अन्तर्गत महोवा नामक विषयक अधिकारी थे । गिडवा कौडियालामे मिल जाती है। ई० ११वों शताब्दीको वहांमे ताडित होने पर यह गिडडा ( हिं० वि० ) नाटा, ठेगना। गवां राज्य अन्तगत वर्दी नगरमें जा करके रहे। गिद ( स० पु०) रथपालक एक देवताका नाम । ११६८ ई०को वर्दोगजक कनिष्ठ भ्राता वीरविक्रमसिंह "गिदेष त र बामविना ( लावा. १७७) वैद्यनाथ दर्शनको कामनासे सपरिवार पहुंचे थे । कहते "fगीनामस्थय : कशिद देव शेष । भाष्य) हैं, वैद्यनाथन उन्हें चारों पार्श्व का मम,दाय भूभाग गिद्दा (हिं पु० ) स्त्रियांक गानका एक तरहका गोत, अधिकार करनेको स्वप्रम आदेश दिया। वह इस राज्यक नकटा। अधिकार पोछे प्रथम गिद्धौरके राजा कहलाये थे । इसी गिड (हि. पु.) १ माम ग्वानेवाला एक तरह का पक्षी | दशक दशम राजा पूरणमनन वैद्यनाथ दवका मन्दिर जा प्रायः दो हाथ नम्बा होता है। यह बकरियों तथा बनवा दिया। मन्दिरमै भौतगे दरवाजे के ऊपरी भाग मुरगियोंको उठा कर आकाशकी ओर ले भागता और पर संस्कृत भाषामे आज भी उनको प्रशस्ति ग्वोदित है। कि वृक्ष पर बैठ कर खाने लगता है ! यह मृत जीवका वोरविक्रममे चतुर्द श पुरुष अधस्तन उन्लनसिंहको बङ्गान- भी ांस खाता है। इमका रंग मटमैला ओर पल बड़े के उद्द,त सूज दारको दबाने और दिलो ममाटके पोत्र बड़े होते हैं। किमी मनुष्यके शरीर पर मड़गना अथवा सुलेमानको माहाय्य पहुचानेमे ११६८ ई०में बादशाह मकोन पर बैठना इमका अशुभ समझा जाता है। २ एक शाहजहॉन फर्मानक हारा राजा उपाधि प्रदान किया। तरहका दीर्घ कनकोवा या पतंग । ३ छप्पय कंदका इम फर्मानमें शाहजहाँ और दागशिकोहको मदी माजद ५२वां भेद। है । जब बङ्गाल और विहारका शामनभार अंगरेज गिद्धराज ( हि पु० ) जटायु । गवर्नम गटने अपने हाथमें लिया, गिद्धौरराज गोपाल गिडौर-विहार प्रान्तीय मुगर जिलेके गिद्धौर राजस्व | सिंह ( १८श पुरुष ) की विषय सम्पत्तिको भी अधिकार विभागका एक नगर । यह अक्षा०२४५१ उ. और किया। १८५५ ई०को सन्तान विद्रोहके समय गजा