पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३३५

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गियाह-गिाधारी ३२३ गियाह (हिं पु०) एक प्रकारका घोड़ा। खाकर रहता है। यह पजाब तथा राजपूतान के अति गिरट ( अ० पु० ) १ तरहका रेशमी कपड़ा जो गाट रिक्त ममम्त भारतवर्ष में होता है । यह मिघाड़े के मरो- लगानक काममें आता है । २ एक प्रकारको सूतो मल- वरके निकट रहता और जैसे जैसे ऋतु बदलता जाता वह मल जो बस्ती जिलेम प्रस्तुत होती है। भी अपना स्थान परिवर्तन करता रहता है। यह उड़नमें गिर ( स० स्त्रो० ) रट-क्तिप । वाक्य । बहुत तेज है और वृत्ती पर घोसला बनाकर रहता है। “गो.मष्टा व ईमो वचाविदः।" ( १८१११) इमका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है इमलिय मनुष्य गिर ( हिं० पु० ) १ पव त, पहाड़। २ मंन्यामियो के १० इसका शिकार करते हैं। भंदा ममे एक भद। ३ एक तरहका भैमा जो काठिया- गिरदा ( फा. पु.) १ घरा, चकर । २ तकिया, बालिश। वाड दशमें पाया जाता है । ३ मिठाई बनानको हलवाई की थाली । ४ दरवारके गिर -बम्बई प्रदेशस्थ काठियावाड विभागके अन्तर्गत ममय गजाओक हुक के नीचे विकाये जानका एक तरह एक गिरियणी। यह किउ होपमे २० मोल उत्तरपूर्वमे का गालाकार कपड़ा। ५ ढाल, परी। ६ टोल वा प्रारम्भ हो कर प्राय: ४० मोन तक फैली हुई है। इस वजड़ाका मेंडग। वनमय पर्व तमें दस्यपति हवावालने भारतीय नो सेना। गिरदान ( हिं० प० ) गिरगिट । ध्यक्ष कप्तान ग्रागटको १८१३ ई० म अढ़ाई मास तक बन्द गिग्दानक ( फा० पु० )करघको लकड़ो जो उसे घुमानेक किया था। लिये नगी रहती है। गिरई ( हिं . स्वा. ) एक प्रकारकी मछली जो मौरीम गिरदाना ( फा० ए० ) तूरक किट्रमें एक हाथ को लंबो छोटो होती है। - चापहन्न लकड़ी। गिरगिट (Eि.प.) किपकली की जातिका एक प्रकारका गग्दाली (फा. स्त्री० ) कच्चा लोहा एक करनको एक जन्त। यह एक बिलम्त लम्बा होता है. और अपने , लम्बी अकमो। शरीरका रङ्ग सूर्यको ज्योतिमे अनेक प्रकारमें बदल लेता गिरदावर (फा पु० ) गितिर देखो। चाडा स्पर्श करने पर बहुत ठंढा मालम गिरदावरी ( फा० स्वी.)गिरदावरका काम । २ गिर- पडता है। यह कीट पतंगको ग्वा कर अपनी जीविका दावरका पद। निर्वाह करता है। मंस्कृतमें इसे ककलाम या गन्नगति गिरधर (मं० पु०) १ पर्वत उठानवाला मनुष्य । २ कृष्ण, कहते हैं। वासुदेव। गिरगिटान (हिं. पु०) गिर गट देखा। गिरधरोत व्याम राजपूताना मारवाड़ प्रदेशमें पुष्करणा गिरगिट्टो ( हिं० स्त्री० )एक तरहका छोटा पेड़ जो उत्तर-। ब्राह्मणांकी एक शाखा । यह बाई ओर भका करके भारत, चीन और पा लियाम पाया जाता है। इसके पगड़ी बांधते और प्रतिष्ठित ममम जाते हैं। कहते हैं, पत्र गहरे रंग लिये छोट तथा पतले हात हे और ऊपर इनके पूर्व पुरुष गिरिधर राव अमरसिंह पाम नौकर का अंग अत्यन्त चमकीला होता है। ग्रोम तथा वर्षा थ । आगरको लडाईम वह मार गये। अग्निदाहन ऋतमें इममें श्वेत रंगके पुष्प लगते हैं। इस वृक्षको करकं अशान्तिक कारण इनकी वहां ममाधिस्थ किया - म्नकड़ी बहुत नर्म होती है। बागानमें शोभाक लिय यह था मासे उनका नाम गिरिधर मोर पड़ा । श्रावण लमा जाता है। ब्राह्मदेशक रहनेवाल चन्द नर्क बदले शुभताया उनको म्म तिका दिवम है। उम दिन कोई इसोको न काममें लाते हैं। भी व्यास नवीन वस्त्र नहीं पहनते। १६३८ ई.को गिरगिरी फा०२० स्त्री०) मारंगीक आकारका एक तरहका उनका स्वर्गवास हा। गिरधर राव कवि थे। इनका लड़भाव, कमी।। .. ममाधिस्थान 'चोनीका रो ।'करलाता है। गिरो ( म० पु. ) एक किसमका पक्षी जो कीड़े मकोड़े गिरधारी ( सं० पु० ) गिरधर देखा।