पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३३८

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गिरिक-गिरिकानन वे एहस्थ तथा शिष्यसे दान ग्रहण कर अपनी जीविका बहुव्री०। गिरिकण -कप टाप अत इत्व च । १ पृथ्यो। निर्वाह करते हैं । यशोर जिलेमें ये योगो वैष्णवसे प्रमिद्ध गरेलिमूषिकाया: कर्ण इव कणी: यस्याः गिरिकण - ये विवाह नहीं करते । (त्रि.)८ पूज्य, श्रेष्ठ। ठन्-टाप । २ व तकिणिहो वृक्ष, लटजारा ३ अपरा- (स्त्रो. ) ए भाव ई किच्च । १० निगरण, भक्षण । जिता लता | ४ श्व तकटभी, छोटा रनजात । ५ पारग्वध, खाना । ११ बालमूषिका, चुहिया। अमलताम। मिरिक ( म० पु०) गिरी कलास कायति क क । गिरिकर्णी ( स० स्त्रो० । गिरवाल भूपिकायाः कण इव १ शिव, महादेव। कर्ण : पत्रमस्या बहुव्रो० । गिरिकण डोप । १ अपरा “गिर को दिलो वक्षः जाव: पुदगल एव सः । (रत १२६३६८ अ) जिता लता। (त्रि.) गिगे भव: गिरि कन् । २ पर्व तजात, वह "वि-नागरिक या चमपाद न निक... (भाप्रकाग) जो पर्व तसे उत्पन्न हो। २ यवाम, जवामा। (शब्दचिन ) गिरिकच्छप ( मं० पु० ) गिरी पर्वतस्थदरीषु कच्छपः । गिरिका ( मं० स्त्री० ) गिरि स्वार्थ-लन्-टाप् । १ वान- कच्छपविशेष, एक प्रकारका जलचर ककुत्रा । इम तरह- मषिका, चहिया । २ पुरुवंशीय वसु राजाको खो। महा. का कच्छप मदा पर्वतकै गह्वर में रहता है । इम कच्छप | भारतमें इमको कथा डम प्रकार है-पुरुवंश वमुनाम को गृहम रखनमे पिशाच प्रभृति अपदेवताका उत्पात | के एक प्रबल पराक्रमशानो गजा रहै। इनका ट्रमरा निवारण होता है: नाम उपरिचर था। महाराज वसुन मसात गव को 'सरसोशम्मद हा च तथं व गिरिककपः । पराजित करनक बाद कठोर तपस्या समाको देवता- पासवमा विनय काग: यो ऽथ विक्षनः ॥ गणने इनकी कठोर तपस्याम भयभीत जाकर तपस्या नित- यामसामि सिहन्ति र ष ग्रहमधिनाम । करन का उनमे प्रार्थना की, एवं उपो ममय देवराज- भाषाय विशता: नदारुण: ॥' (भारत चन- १२११०) इन्द्रने नरराज वसको एक आकाणगामो रथ प्रदान गिरिकगटक (म पु०) गिरी कगट क व तदकत्वात् । किया। महाराज वसु उम रथ पर चदकर अाकाशको वच, विजन्नी। आन जाने लगे। उनको राजधानी के निकट शक्तिमतो गिरिकदम्ब (म० पु०) गिर: मम पन्न: कदम्ब मध्यलो । नामको एक नदो प्रवाहित थी। कोलाजल नामक एक मोप, धाराकदम्ब, कदम । गिरिकदम्बक ( म० पु० ) गिरिकदम्ब स्वार्थ कन् । नोप, सचेतन पहाइन कामान्ध हो शुक्किटानी पर आक्रमण किया। महाराजन उम पर्वतका इस तरह अन्याय व्यव. धाराकदम्ब, कदम । ____ "देवटा वचा हि कुष्ठ गिरिपावकः ।" (सुश्वत २१ १०) हार देखकर उसे पदाघात किया। राजा पदाघातमे गिरिकदली ( म० स्त्रो०) गिरिजाता कदली मध्यलो । वह दृष्ट पर्वत विदीर्ण हो गया और उस प्रहारमागमे पार्ष सोय कदली, पहाड़ी केला। इमका पर्याय-गिरि वेगवतो शुक्तिमतो नदो कल कन्न शद करतो हुई रथा, पर्व तमोच, आरण्यकदन्ती, बहुवीज, वनरम्भा, बह निकली। ममयानुसार नदीक गर्भसे कोलाहलको गिरिजा और गजवल्लभा है। इसका गुण-शीतन्न, मधु एक कन्या और एक पुत्र उत्पन्न हुए। उस कन्याका नाम रस, बल और वीर्यवृद्धिक, तृष्णा, पित्त, दाह और गिरिका पड़ा। महाराज वसु कन्याको रूप लावण्य शोषनाशक है। देख मुग्ध हो गये और उससे विवाह कर लिया । यह गिरिकन्दर ( म० पु०.) गिर: कन्दरः, ६-तत् । पर्वत- | गिरिका महाराजको अतिशय प्रियतमा रही। मार, पहाड़को कन्दरा। गिरिकाण (मं० पु०) गिरिणा अक्षिगेगविशर्षण काण: गिरिकर्णा ( म० स्त्रो०) गिरिकर्ण -टाप । अपराजिता एकनयनहोनः ३-तत्प० । गिरिनामक चक्षुरोगसे जिसकी एक आँख नष्ट हो गई हो। मिरिवर्णिका (सं० सी० ) गिरिः कर्ण इव यस्याः ! गिरिकानन ( म० पु० ) पहाड़ी जङ्गम्ल । '