पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३४०

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३३८ गिरिदुर्ग-गिरिधि(डो) मनाक पर्वत समुद्रमें जा छिपा था, इमोसे समुद्रका भाषा मरल, मधुर और ओजोगुणविशिष्ट है । उन्होंने नाम गिरित्र पड़ा। तुलमोदाम एवं अपने ग्रन्थके प्रमाण ले कर हिन्दी भाषा- गिरिदुर्ग ( म. क्लो० ) गिरी दुर्गः, ६-तत् यहा गररेव | में एक व्याकरण प्रणयन किया है। दुर्ग । पहाड़ पर बना हुआ किला । पर्व तके ऊपर और गिरिधरण ( मं० पु० ) श्रीकृष्ण । मधा हो कर प्रवाहित नदी या प्रस्रवणादि युक्त स्थान | गिरिवरमिथ दृगगोन्नवर्णन नामक संस्कृत ज्योतिःशास्त्र पर यह टुग निर्माण करना चाहिये, और ऊपर जानकं | कार । लिये एक क्षद्र गम्ता भी रहे । दुर्ग स्थानमें भांति भांतिके गिरिधरत्नान-हिन्दी भाषाक कोई कवि । उनको कविता शस्यादिमे पूर्ण क्षत्र और उद्यान प्रभृति भी प्रस्तुत करना नीचे लिखी जैसी होती थी-- उचित है । मर्व प्रकारकं टुर्ग मे 'गरिदुर्ग ही प्रशस्त | "ब ४ भानदार नान हार का काम के महान है। माना गया है । ( मन ७७० कम्न क ) अतिम चातर ये है कि वम जाके हुगमन ग्वजन नजान है। गोनीदेखियत सबो तीनों पाहयत मुख के दरद दुख तेह मिटि 5.113 गिरिहार ( म० ली. ) गिर र ६ तत् । पर्वत हो कर मान गिरिधर पिधान f+येन के नाम माती भर जाता है आनका रास्ता। गिरिधर सिंह --एक राजपूत सामन्त । ये मम्राट मुह गिरिधर ( सं० पु० ) १ विष्णु । २ एक वदान्तिक । म्मद शाहक राजत्व ममयमें मालवदेशक शामनकर्ता ध। इन्होंने संस्थत भाषामें ब्रह्ममूत्राणभाष्यविवरण और १७२८. ई०को पेशवा वाजोरावके माथ लडाईम इनको शहातमात गडकी रचना को है। ३ एक सस्कृत मृत्य हुई। महाराष्ट्र इतिहाममें ये गिरिधर वहादर वास्तुशास्त्र रचयिता । ४ विभतार्थ नण य नामक | नाममे प्रमिद्ध हैं संस्हात व्याकरण प्रणता, इनके पिताका नाम वागीश | | गिरिधातु ( मं० पु० ) गिरर्धातुः, ६ तत् । उपधातुविशेष, रहा। ५ एक वैष्णव कवि। इन्होंने १६७८ शकको गरिक, गैरूमट्टी । आषाढ़ माममें गीतगोविन्दका पद्यानुवाद बगन्ना भाषा- गिरिधारण ( म. पु. ) श्रीक्लषणा । में रचा था। जो अत्यन्त सरल और मधुर जान पड़ता गिरिधारो-हिन्दी भाषा कोई कृषि १८४७ ई को बैजवाई के साहनपुर ग्राममे उनका जन्म हुआ। यह गिरिधर -हिन्दी मषिकि एक कवि। उनकी कविता इम | जाति ब्राह्मण थे। प्रकार है- गरधारी भाट - हिन्दी भाषाकै एक कवि। वह झांसी 'लाचन म रिसंग रजनौ जागत। जिला मऊ-रानीपुरामें रहते थे १८८३ ई०को यह कमल प्रफुल कौन भये डगमगात ठी दूर दूर देखत लाज मानत ॥ विद्यमान थे। रति रम पम के नौ चमके चाव ममकामन की लागत । नोवन गिरिधर के प्रभ ममुद्र र मोरन कागत ॥" 'गरधि(डी)--छोटा नागपुरके हजागबाग जलान्तर्गत गिरिधर कविराय- हिन्दी भाषाके एक कवि । १७१३ ई० एक उप वभाग । यह अत्ता० २३.88 तथा २४४८ उ० को बाराबंकी जिलेके हौलपुर ग्राममें इनका जन्म हुआ। और देशा० ८५.३८ एवं८६३४ पू०के मधा अव स्थत इन्होंने नोतिविषयक अच्छी कविता लिखी है। गिरि है। ईष्ट-दू ण्डयन रेलवे कम्पनीक। मधुपुर शाखा गरि धर कविरायकी कुगड़ लिया लोकप्रमिड हैं। तक फलो हैं। यहां उक्त कम्पनीका एक ष्ट मन है। गिरिधर गोस्वामी-ऊर्ध्व पुण्ड माहात्मा नामक संस्कृत गरडोके निकट करहरवाड़ी नामक स्थानमें कोयलेकी ग्रंथकार। एक खान है। इम उप वभागका भूमिप रमाण २००२ गिरिधरदाम-१ रामकथामृत नामक संस्कृत ग्रन्यकार। वर्ग मील है। लोकसंख्या प्रायः ४१७७८.० हैं यहां २दिल्लीनिवासी एक भारतवर्षीय कवि। इन्होंने १७२२ । ३४०८ ग्राम और प्रायः मनुष्योंकि ग्रह हैं। उस उपवि ई०को हिन्दी भाषामें रामायणकी रचना की है। इनकी भागमें एक दोवानो और दो फोजदारी अदालत एव था ।