पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३४२

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३४. गिरियक-गिरिशचन्द्र घोष गिरियक ( म० पु०) गिरिं याति गिरि-या क ततः ! और देशा० ७७ २६ तथा ७७ २८ पू०के मध्य पड़ता संज्ञार्थ कन् । गरुक, एक प्रकारको जड़। है। इसका संस्कृत नाम अन्नकूट है। गिरिया-बङ्गालक मर्शिदाबाद जिलेमें जङ्गीपुर मब गिरिवर्तिका ( म० स्त्रो० ) गिरिममुत्पन्ना वर्तिका मध्यपद लो० । पावतोय पक्षिविशेष । डिविजनका रणक्षत्र। यह अक्षा० २४३० उ. और गिरिवामो (मं० पु०) गिरि वामयति सुरभी कगेति गिरि- देशा०८८६०में मूतोसे दक्षिण अवस्थित है। १७४० वामि णिनि। १ हम्तिकन्द वृक्ष २ पर्वतवासी। ईको अलोवर्दी खाँ तथा नवाब सरफराज खां और गिरिवज (मं० ली.) गरीणां पञ्चानां व्रजो यत्र, बहवी। १०६३ ई०को नवाब मीर कामिम और ईष्ट इण्डिया १ मगध देशान्तगत एक प्राचीन नगर । कुशात्मज वसु- कम्पनोसे वहां बड़ी लड़ाई हुई। ने यह नगर स्थापन किये रहे। यह नगर गङ्गा तथा गिरियाक ( स० पु.) १ गिरियक देखो। शोण नदीक मङ्गमस्थल पर अवस्थित था । जरामन्धक २ पटना जिले के अन्तर्गत एक ग्राम । यह अक्षा० . ममय या मगधको राजधानी थी। यह चारों ओर वंभार, २५२ उ० ओर देशा० ८५.३२ पृ०में पञ्चान नदीके ! वृषभ, ऋषिगिरि तथा चैत्यक नामक पवतसे घर रहने- उपकूल पर अवस्थित है। लोकसंख्या प्रायः २४३ है। के कारण शत्र आंका वहां जाना असम्भव था। इस नदोके पूर्व तोर ग्रामके निकट एक पव तक उत्तर । ( भारत सभा २०७०) गजट शब्दमै रमावत विवरण देखो। पूर्व में बहतमी प्राचीन कोत्ति योंके वंसावशेष देख २ ककयगज अश्वपतको राजधानी । के काय देवा । जात हैं। यहां १२ फुट प्रशस्त एक प्रम्धरमय गम्ता आज गिरिश मं० पु०) गिरी शत गरि शी-ड, यहा गिरिरस्त्यस्य तक भी वर्तमान है जिम राम्त से गाड़ी घोड़ आदि वम तत्वं न गिरि अस्त्यर्थ श । (नामादि माविकादिभाः शने- आमानीसे आ जा सकते हैं। इस क्षुद्र पर्वतक पथिम भाग मच। पापार...) अथवा गिरि तत्मदृशं काशयं श्यति पर प्रस्तर निर्मित बहुल, न्तम्भ और मन्दिग्क भग्ना तम्ब करोति गिरि शोड। शिव । वशेष दृष्टिगोचर होते हैं। पर्वतक पूर्व भागमे ४५ फुट । गिरिशचन्द्र घोष--कलकत्ता नगरक बागबाजारमें वस्- चतुरस्र एक वेटो है जो 'जरामन्ध चबूतर" नामसे पाडापल्लोस्थ सम्भ्रान्त कायस्थ कुलोद्भव स्वर्गीय नोलकमल विख्यात है । इस वेदाक ऊपर ५५ फुट ऊचाईका एक , घोषक मंझले पुत्र । मुप्रसिद्ध नाट्याचार्य तथा एक महा दृष्टकनिर्मित स्तम्भ है जिमको परिधि६८ फुट है। बह-। कवि। तोका कहना है कि प्राचीन समयमें इस स्थान पर जरा १८४४ ई० (फाला न शुक्लाष्टमी मोमवार )को इनका मन्धका प्रमोदग्रह रहा । प्रवाद है कि भगवान् । जन्म हुआ। पूर्ववर्ती कई एक कन्याअकि पीछे पुत्र श्रीक्षण जरामन्धसे लड़ने के लिये इसी स्थान पर नदो होनसे गिरिशचन्द्रका अत्यन्त आदर था। स्थानीय पाठ- पार हुए थे, इसी कारण आजकल भी बहुत मनुषा शालामें प्राथमिक शिक्षा पूरी करके यह ७वर्षको अवस्था कात्तिक मासमें इस नदीमें नान करने आते हैं। उक्त पर गौरमोहन पाठ्यको ओरिएण्टल सेमिनारीमें भर्ती हुए पश्चान् नदीक दूसरे पारमें गिरियाक पर्वत है। इस स्थान | वहां बङ्गला विभागमें थोड़े दिनम ही पारदर्शिता लाभ पर जरासन्धकृत बहुतसी कीर्सियौके ध्वसावशेष देखे करके इन्होंने अंगरेजी विभागमें योग दिया और शीघ्रही जाते हैं। | शिक्षकोंक प्रियपात्र बन गये। कुछ दिनमें ही उनके गिरिरम्भा ( स० स्त्री० ) गिरी समुत्पना रम्भा मधा पिता और माता दोनोंका मृत्य हुआ। उम ममय इन- पदग्लो० । गिरिकदली, पहाड़ी कला। का वयम १४ वर्ष मात्र था। संसारमें अन्य कोई पुरुष गिरिराज ( स० पु० ) गिरिषु राजतं राज-विप ७-तत् ।। अभिभावक जैसा न रहनसे १७ वर्षको उममें ही प्रवे. १ पव तश्रेष्ठ जचा पहाड़ । २ हिमालय । शिका श्रेणी पर्यन्त पाठ करके उन्हें विद्यालयका संस्रव गिरिराज-युक्त प्रदेश मथग जिलेमें गोवर्धननगरका | छोड़ना पड़ा। इसी बीच १६ वर्षको अवस्थामें उनका निकटस्थ पर्वत । यह पक्षा. २७ २८ तथा २७३१ . विवाह हो चुका था। परन्तु यह लिखने पड़ने में लगे