पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३४३

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गिरिशचन्द्र घोष ३४१ . .. रह। अपने 'मब जज' माई व्रजविहारी मोम कहनसे | बक कोपागे (बही खातका काम ) करत रई । फिर वह किताबके कोड़े बन गये, विश्वविद्यालय परोक्षाको भागलपुर गये, वहां भो या कविता बनात थे। फिर कल- छोड़ अपने मनके पुस्तक पढ़न और बराबर ज्ञानमञ्चय कत्ता आ करक पार्कार कम्पनी में १५० रु० मामिक पर करने लगे। अंगरेजी कविताका मातृभाषामें अनुवाद नागे को। किन्तु इस बार उनको मति पलटी और उन्हों- क्षकग्नेको क्षमता इनमें बहुत थी। अन्यान्य विषयोको न नामके लिये डट मो की नाकरी कोड मौ रुपये माह- अपेक्षा साहित्य, इतिहाम और दर्शन इन्हें अधिक प्याग वारकी थियेटरकोम नजगे कर ली। इम ममयम'वह एक था। मरते ममय तक इनकी सानाजनप्रवृत्ति प्रबन्ध | बारगी ही नाट्यानयक काम काजमें पड गये ओर नयो रही। यह अच्छ नाटककार तथाअभिनेता भो थे । किन्तु | नयी चालक नाटक बनाने नग। 'गवणवध' प्रमुव इन- नाट्यालय के असंख्य कार्याम वह जब कभी भी ममय पात. के बनायं नाटक समित है। कोई न कोई पुस्तक वा मामयिक पत्रिकादि पड़नमें लग जात थ । गिरिशचन्द्र बहुत वर्ष तक एशियाटिक मोमा इटोक मदस्य रहै। शहरमें यह कई पुस्तकालयांका चन्दा देते थ । वाल्यकालमै हो मातृभाषा पर इन्ह बड़ा अनुराग थ।। पितामहीम किम्मा सुनना और गमा- यण तथा महाभारत पढ़ना इनको बहुत अच्छा लगता । था। वषण व भिनकाका धर्म मङ्गीत उनके मनम अमृत. धाग बहाता था। कवि होनको वामना उनके मनम | अन्य वयसको हो उठो थो २० वर्षको उम्र में गिरिशचन्द्रन एटकिनमन टिल. टन कम्पनीको जम्मोदवागेको आर थोड दिन बाद हो हिमाब किताबमें होशियार हो गय। फिर उन्हान कितन हो मौदागरी दफतर्गम खजाञ्चीका काम किया। वहां भी माका मिलने पर यह पढ़ने लिखनौ चकत न थ । १८६७०को २४ वर्षको उनमें पहले इन्हान शाकोनांकी एक नाटकमण्डली बनायो उसमें माइकल मधुसूदन दत्तका 'शर्मिष्ठा' नाटक अभिनय के लिये मनोनीत हुआ। इन्हींन उसके जो गान बनाये, पहले छपाये थे। उसके मिसचन्द्र घोष। बाद नाटक लिखनको और यह मुक। १८६८ ई०का १८६३ ई०को उन्हों ने कलकत्तं की बोउन ष्ट्रट पर इन्हीन अवैतनिक नाट्यसम्प्रदाय ( Baghbazar Ama- विख्यात 'ष्टार थियेटर खड़ा किया। उन्होंक मदयोग- ten Theatre ) बागबाजारमै प्रतिष्ठित किया। इन्हीं से नाट्यशाला धर्मप्रकारका स्थान जैसी परिगणित हुई को तालोमसे 'मधवाको एकादशो' खेल हुआ । कलकत और जन माधारणको श्रद्धा उम पर आकर्षित होने के कितने हो गण्यमान्य सज्जनन उमकी बडी प्रशंमा की लगी । 'विल्वमङ्गल' आदि ग्रन्या ने उन्हें अपर जैसा बना था। फिर 'लोलावतो' आदि दूमरे अभिनय होन पर । रखा है। यह कोई ५० वर्ष नाट्य जगत्में पड़े रहे। इनका मुख्याति उत्तरोत्तर बढ़ने लगी । इन्होंन 'मणा. उन्होंने कलकत की प्रायः मब नाव्यशाम्नायोमं काम किया लिनो', 'मेघनादबध' विषवृक्ष' आदि कई अच्छ अच्छथा नाट्यकल्पको उन्नति करना उनकै जोवनका व्रत और पुस्तक.वा नाटक लिखे है। इस समय तक वह फिममें एकमात्र लक्ष्य रहा। Vol. VI. 86