पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३४४

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गिरिशचन्द्रराय-गिारशायो - कई पोगणिक नाटक लिखने पोछे यह सामाजिक ! इन्हों ने अमात्यों और कर्मचारियो के माथ सुग्धुनो खेल बनाने लगे। इन्हों ने प्रायः मीता वनवाम, दक्षयत्त, तौर पर उपस्थित हो करके कोई निर्दिष्ट स्थान खोदन- चैतन्यलोना, निमाई मन्याम, बुद्ध देवचरित, विल्वमङ्गल, को आदेश किया था। इधर उधर खोदत किमी वालका रूपसनातन, नमोगम, प्रफुल्ल, हारानिधि, कालापहाड़, मय भवगड के ३ तीन हाथ नीचे एक गोपालमति करम तिबाई, फणीमणि, वलिदान, शोराज-उद-टोला, देख पड़ी राजा बड़े ममारोहसे इम विग्रहको अपने मोरकामिम, छत्रपति शिवाजो, अशोक, गृहलक्ष्मी घर ल गये और प्रतिष्ठित करक 'नवहोपनाथ' कहने आदि अम्मी नाटक, नाटिका प्रहमन लिपिबद्ध किये हैं। लगे। उनके लिये इन्हनि एक मकान दान किया। फिर "नके निम्न लिखित कई एक भागाम बाट मकत हैं- यह उनको नित्यन मित्तिक क्रिया आदिमें अपात्र अथ १ पौगणिक, २ तिहामिक, ३ मामा जक इत्यादि । इन- व्यय करने लगे । इमो अमितव्ययिताक दोष और कम- के बनाये गीत भले बुर मब लोग गाया करते हैं । गिरिश- चारिया को कुमन्त्रणा दिन दिन उनको मम्पत्ति घटन चम्ट्रका उपाधि नाट्य मम्राट है। लगो, मोरूमी जमोन्दारोक ८४ परगनों में 9 परगन प्रार यही नहीं कि उन्होंने नाट्य जगत्में ही परमोच्च पद थोड़ीमा निष्कर भ मि ही बच गयो। प्रथमा महिषीम पाया, वग्न् प्रतिभाशाली व्यक्ति जैमा नाम भी खब कमापुत्रादि नहीं हुए। माताका अनुरोधसे उन्होंन १८०६ या। यह ममाजके परम हितेषी, उपदेष्टा और पथप्रद- ई०को फिर दारपरिग्रह किया और द्वितीय पत्नी भो कि थे। श्रीरामकृष्णा देवके मस्रवमे उनकी प्रतिष्ठा पुत्रवतो न होनम १८१८. ई में शास्त्रोक्त विधिक अनुमान और भी बढ़ गयी । शेका पीयरका 'माक बाथ' बङ्गनामें थोशचन्द्रको गोद लिया। उसी ममय विलक्षण अर्था उलथा करके इन्होंने जो कमान किया है, अंगरेज लोग भाव रहते भी इन्हों ने नवद्वीपमें दो बृहत् मन्दिर प्रस्तुत भी दांत के नीचे उगली दबाते हैं। विज्ञानको चर्चा में करके एकमें भवतारिणो नामसे पाषाणमया कानीमूर्ति भी यह बहुत दिन लग रहे । अपने महल में वह होमि और दूसरम भवतारण नामक शिवको प्रकागडमूति प्रोपाथिक चिकित्सक-जैसे प्रमिड थे। प्रतिष्ठा को । १८४१ ई०को ५५ वत्सर वयभमें इन्हीं न १८१२ ई०८ फरवरीको उन्होंने परलोक गमन किया मानवलीलाको मवरण किया। गिरिशचन्ट्रराय-बङ्गाल प्रान्तीय नवहोपाधिपति राजा यह अति सूथो रह और फारमी तथा मस्कृतमें अन- कृष्णाचन्द्र रायके प्रपौत्र और ईश्वरचन्द्रके पुत्र । १८०२ गल बातें कर सकते थे । इनमें दया तथा धर्म निष्ठा ई०को पिताके मरने पर इनका वयम षोडश वर्ष मात्र यर्थष्ट थी । मङ्गोतमें इन्हें विशेष व्य त्पत्ति रही। यह रहा । उमो समयसे इनके हृदयमें धर्म ज्ञान बढ़ने नगा। शाम्बालाप और रहस्यमें पानन्द अनुभव करते थे। उन्होंन वयः प्राहा होने पर कुछ काल विषयकार्य पर्यालोचना अपनी सभाके कृष्णकान्त भादुड़ी नामक किमी ब्राह्मणा- करके इन्होंने कम चारियोंको कार्य भार सौंपा। अपने को रमसागर उपाधि दिया। इन्हींके आदेश पर लक्ष्मी- पाप धर्मानुष्ठानमें प्रवृत्त हुए और प्रथमत: नवहोपमें कान्त न्यायभ षण कट क "रथपति" रचित हुई। गङ्गा किनारे तृणाच्छादित कुटीर में प्रवस्थान करके अनेक गिरिशन्त ( म० पु०) सुग्वं तनोति श तन ६ शन्तः परसरण किये । क 'गानगरमें आनन्दमयी काली और गिरोस्थितः शन्त: मध्यपदलो०, यहा गिरि वाचि मैछि वा पानन्दमय शिवका मन्दिर इन्होंने बनाया था। फिर स्थितः शन्त: अलुकम०, अथवा अम गती प्रमति गच्छति इन्होंने उक्त मन्दिरीके व्ययनिर्वाहार्थ कितनी ही निष्कर जानाति अम क्लः अन्त: सर्वज्ञः इतार्थः गिरिशश्वामी अन्त- भूमि दे डाली। कुछ समय पीछे इन्होंने किमी रजनीको ति कर्म धा। शिव। ( वाजसनेयम'. १२) खपमें टेखा, मानो कोई देवता उनसे कहता था-"म गिरिशय ( स० पु.) गिरी कैलासे शेत शो-अच । शिव । भवदीपके भागीरथीतीर पर भगर्भ में रहते हैं, हमको (वानसने यस'०१२) अपने मिकेतनमें ले जा करके स्थापन करो।" दूसरे दिन गिरिभायो (स. पु०) पार्वतीय पक्षि, पहाडको चिड़ियां