पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३४९

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गिलौरौदान-गौत ३४५ गिलौरीदान (हिं० पु. ) पान रखनका डिब्बा, पानदान | मङ्गोतवेत्ता बतन्नात कि प्रभु शङ्करने मंसारको दुःखा. गिल्टी ( फा० स्त्री. ) गिटा देखो। कान्त देख करके मामारिकों दुःख निवारणका प्रधान गिना ( फा० पु० ) : ना दग्यो। उपाय गीत और वाद्य प्रकाश किया है। ( 48TRIER ) गिलो ( फा. स्त्री० ) गुल्ली । धम शास्त्रम भी लिखा है कि गीतज गोत हारा हो गिष्ण ( मं० वि० ) १ गायक, गवं या । (पु०) २ मामवेद मुक्ति पा मकता है और किमी दूमरे कारणमे मुक्त न का गानवाला, -नवेदयत्ता। मिलन पर वह कद्रका अनुचर बन करके कद्रलोकम तो गौंजना ( हि क्रि. ) किमो कोमन्न पदार्थ को हाथमे वाम करता ही है। मीडना जिममें वह पराब हो जाय । गात दो प्रकारका होता है वैदिक ओर लौकिक। गौंव ( फा० स्त्री० ) पोवा, गद न, गन्ना। म'मांमादश नक भाष्यमें शवरम्वामान लिम्वा है-जिममें गौ: ( म० स्त्री ) १ वागी, बोलनको शक्ति । २ सरस्वती आभ्यन्तरोण प्रयत्नम स्वग्ग्रामको अभिव्यक्ति होती, गोत देवो। कहलाता और माम शब्दमें भी उमोका उल्लेख किया गो:पति ( मं० पु० ) गिरां पतिः, ६-तत् । अहगदित्वात् । जाता है। (मामसहिनाभाषा) मामवेदमें महस प्रकार गीत- विकल्प विमगम्य न रेफः । गीत दो। का उपाय है। गायक इच्छानुमार उममें किमो एकक गोगामाग्न-बम्बई प्रान्त में काठियावाड़का एक क्षुद्र अवलम्बनम माम गान कर मकता है। ( मोमामा ३२९ राज्य । डमको प्राबाद कोई ५८२ और आमदनी भाषा । लोकिककी तरह व टिक गानम भी क्र , प्रथम, .. है। मानिकबाड़मे यह १६ मील दक्षिण पूर्व द्वितीय, तीय, चतुथ , पञ्चम और षष्ठ मात स्वर होत पड़ता है। लोकमंच्या काई ६२२ होगी। हैं। मामविधानब्राह्मणम लिवित हुआ है कि उन्हीं ७ गोढम ( दि. पु. ) न्य न म ल्यका मादा गलीचा। स्वर्गम देवता कष्ट, मनुष्य प्रथम, गन्धर्व तथा अप्सग गौडर-काठियावर प्रान्तकं बांटवा तालुकका एक नगर। हितोय, पशु तृतीय, पितृलोक चवथ, असर एव सक्षम जनागढमे प्रायः १८ मौल उत्तर यह नगर अवस्थित है। पञ्चम और वनस्पति प्रभृति अपर जगत् षष्ठ स्वरसे परि- और नमाति लोकमंख्या प्रायः १९५१ है। बांटवा बाविम राज्यको दृप्ति लाभ करता है। ( मामविधानवाद्य या ११०८) एक पृथक् शाग्वा उम पर अधिकार करती है। यही मात मौलिक स्वर अवान्तर भं दसे बहुविध हो गोड ( फा० पु. ) चक्षुका मन । जात हैं। गीत ( मं० लो० ) गान, गाना, धुरपद तगना आदि। लोकिक गान प्रथमत: दो भागांम विभक्त हुवा है - यह नियमित स्वरनिष्पन्न शब्दविशेष है। मङ्गीतशास्त्र- मार्ग और देगी। जो गोत मव प्रथम विरिञ्चिन प्रकाश के मतमें धातु तथा मावायतको ही गोत कहा जाता है किये थे और जिसको भरत प्रभृति गायक महादेवको धात नादात्मक और मात्रा अक्षरात्मक है। गीत मभो. प्रोतिकं लिये गाया करते थ, माग कहलाता है। मङ्गीत- के प्रोतिकर होते हैं। मंमारो, वनवामी बा उदामोन शास्त्रक मतम मार्ग नामक गीत मवदा हो मगन्न प्रभृति सब लोग इमक पक्षपातो हैं। हरिण आदि वन्य प्रदान करता है। विभन्न लोगों को कचि और गेतिक पशुओं और पक्षियों को भा गाना सुनना अच्छा लगता है मेटम विभिन्न रूपों में परिणत वा उत्पन्न गोताको हो यहां तक कि अच्छा गोत सुन पड़नमे अहिकुल भो स्थिर दशी कहते हैं। चित्तसे अवस्थान करता है। बच्चे रोदन परित्याग करके मङ्गोतरत्नाकर ( २५ ) में लिखा है कि सभी दिल लगा गाना सुननमें लग जाते हैं । वास्तविक प्राणि- गीतों का मूल मामवेद है। ब्रह्मान मर्व प्रथम साम- योक लिये ऐसे विनादका हेतु दूमरा नहीं है । गोत दुःख वेदमे ही गीत मग ह किया था। की यातना मिटानका उपाय, सुखोकी प्रीतिका कारण यह गीत मन्त्र और गात्रमे दमे फिर दो प्रकार होता और योगीको उपासनाका प्रधान अङ्ग है। इसोसे प्राचीन है। वेण, वीणाप्रभृति यन्त्रों में जो गीत निकलत,