पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३५४

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गौत वर यथाक्रम षड्जग्रामको ७ मूछनाओंकी अधिपति | तान लगा करते हैं। षट्स्वरका षाड़व, पञ्चस्यार है। बया, इन्द्र, वायु, गन्धर्व, सिद्ध, द्रुहिण और भानु | पौड़व, बतुःस्वरका स्वरान्सर, लिस्वरका साविक, tr यवासाम मधामको ७ मूछनाओंके अधिपति कह गये स्वरका गाथिक और एक स्वर कूटतानका नाम प्रार्चि- है। जिस मूर्छनाका जो अधिपति निर्दिष्ट हुआ, उमौ । है। ताम देखो। मूना प्रीति लाभ करता है। पूर्वकथित स्वरोंमें कोई कोई स्वर दूसरे स्वरका जैसे पारोह और अवगेहक्रमयुक्त स्वर सम हको माधारण हुवा करता है। यह दो प्रकारका है-स्वर. मर्कमा कहते, केवल आरोहक्रमयुक्त स्वरोंको तान अभि- माधारण और जातिसाधारण। स्वर माधारण फिर धान करते हैं। तान प्रथमतः २ भागों में बंटा है--शुद्ध- काकली, अन्तर, षड़ ज और मध्यम ४ भागोंमें विभक्त ताम और कूटतान। मईना एक स्वर न रहने षटस्वर । हुवा है। काकली और अम्सरका लक्षण पहले ही बत- और दो स्वर न रहने पर पञ्चस्वर होनेसे शुद्धतान कह- लाया जा चुका है। काकली षड़ ज तथा निषाद और सातीहै। षटस्वर शुद्धतानको षाड़व और पञ्चस्वर शुद्ध अन्तर स्वर गान्धार एवं मध्यमका साधारण होता है। तानकी चौड़व कह सकते हैं। गानक्रियामें षड़ जके उच्चारण पीछे अवरोह क्रममे पहले पाडव शुद्धतान मब मिन्ना करके उच्चास हैं। षडज काकली और उसके बाद धैवतको लगाना चाहिये । इमी ग्रामको ७ म वनाएं षड्ज, ऋषभ, पञ्चम वा गान्धार प्रकारसे मधामके पोछे अन्तर और ऋषभ प्रयोज्य है। हैं। इनमें किमी एकके हीन होने पर अठाईस ओर शाङ्गदेवक मतानुमार जातिराग आदिमें काकली वा मधाम बामको ७ मछनाएं षडज, ऋषभ और गान्धार । अन्तरका अल्प प्रयोग करना उचित है। निषाद और में कोई एक न रहनेमे २१ षाड़व शुद्धतान निकलते हैं ऋषभ यथाक्रम षड़जको आदि तथा अन्त्य व ति ग्रहमा बड़व शुद्धतान ३५ प्रकारका होता है । षडज़ । करने पर षड़ ज माधारण कहल्ला मकते हैं । गान्धार तथा पमहीन मात, गान्धार एव' निषानहीन सात और और पञ्चम क्रमानुसार मधामको आद्य तथा अंतिम ति ऋषभ तथा पञ्चमहीन सात सब २१ तान हैं । इसी अवलम्बन करनसे मधाम साधारण होते हैं। षड़ ज प्रकार मधाम ग्रामको म ईनासे ऋषभ तथा धवत साधारण, षड़ जग्राम और मधाम माधारण मधामग्राममें निकल जाने पर सात और गान्धार एवं निषादके अभाव में लगाना चाहिये। कैशिकमें दोनों साधारणोंका प्रयोग सातये १४ तान लगते हैं। तानांकी पूरी संख्या ८४ है। किया जा सकता है। कममें उच्चारित होने भरतमुनिके मतानुसार एकाग्राममें उत्पन ममान अंश पर मतान कहलाती है। पूर्ण म ईनासे उत्पन्न होन- और स्वरयुक्त जातिमें परस्पर समान गानको साधारण बाकी पूर्णकटतान और असम्प ण म छनासे निकलने | कहने में कोई बुराई नहीं। (सासरनाकर भर) वाकी असम्म ण कूटतान कहते हैं । एक ही पूर्ण सङ्गीतदर्पणके मतमें रागालापयुक्तको ही जाति साधा. मनमें ५०४० कूटतान तक लग सकते हैं। पूर्ण म ई. रण कहा जाता है। कोई कोई मङ्गीतवेत्ता केशिक नाम है। अतएव पूर्णकूटतान २८२२४० तक प्रभृति रागोंको जाति साधारण बतलाता है। स्वरको यथा नियम उच्चारण करनका नाम वर्ण नाका एक भी अन्त्य न रहनेसे पट्स्वर प्रस है। इसोको गान वा गीत शब्दमें उल्लेख करते हैं। म्यूक कमान हो जाते हैं। इसी प्रकार दोके प्रभावसे | यह गानक्रिया वा स्वरका उच्चारण चार प्रकार है- पहार, तीनके अभावसे चतुःस्वर, चारके प्रभावसे त्रि- खायो, पारोही, पवरोही और सञ्चारी। किसी स्वरके स्वार के प्रभावसे दिस्वर और कहो अम्त्व स्वर न पक्षण पर पर उच्चारणका नाम स्थायी है। जैसे- राविक स्वर कूटतान काला सकता है। इसी से चजका सा सा सा पोर मंधामका मा मा मा इत्यादि प्र त्ये क मूनामें बहके हिसाबसे पसम्पूणे कूट- जिस उच्चारणमें पारोह और अवरोह मासा, यथा-