पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३५५

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गौत-मोतगोविन्द शारोहो तथा अवरोही कहलाता है। इन तीनों लक्षण- | गीतगोविन्द ( सं० पु० ) गोतो गोविन्दो यत्र, बहुव्रो । युक्त उच्चारणका संचारो कहते हैं। कलावंताने इहों | महाकवि जयदेव कृत एक ग्रन्थ । इसको गीतकाव्य भी गौतों और उच्चारगी कि कई एक दूसरे अलङ्कार भी दिव कह सकते हैं। जयदेवने इसमें कवित्व की पराकाष्ठा लाये हैं, उससे गानका मोठव बढ़ता है। दिखलायी है । कविता अतिशय मधुर, प्रसादगुण विशिष्ट गीतके आरम्भमें लग वालेको ग्रहस्वर, गोतसमा. और शृङ्गाररससंश्लिष्ट है। यह ग्रन्थ हादश मों में विभक्त पकको न्यासस्वर और गात अधिक प्रयुक्त होनेवाले और उममें प्रायः समस्त कृष्णचरित वणित हा है। स्वरको अंशस्वर कहा जाता है . संस्कृतमें एमे ठाटका काव्य प्रायः देख नहीं पड़ता। सङ्गीतशास्त्र में जातिके १३ लक्षण कह हैं-ग्रह, अंश, गोतगाविन्दमें शृङ्गाररमका आधिक्य देख कर कोई तार, मन्द्र, न्यास, अपन्याम, संन्याम, विन्यास, बहुत्व, कहता है-निर्गुण ब्रह्मकी उपासना दःसाधा होनसे अल्पता, अन्तरमार्ग, षाड़व आर ओड़व। यही त्रयोदश जब सगुण रूपमें कृष्ण ध य हुए, जयदेवको उचित न लक्षण जिममें देख पड़त, जाति कहते हैं। था कि वह शृङ्गार भावको वर्णना करते। किन्तु क्या पूव को जिम ग्रामको बात लिखो. उसी ग्रामसे स्वदेशीय और क्या विदेशीय सुबुद्धिमान तथा मद्भावग्राही गग निकलता है। मनुषा प्रभृतिका चित्तरञ्जन करनसे पण्डितोंनि गीतगोविन्दको सूक्ष्मतत्त्व तथा भकत्य: सिक आदि सङ्गीतवेत्तानि इमका नाम राग रखा है । प्रणालोमे मोहित हो उक्त कारण पर दोष व्यक्त न करके मङ्गीतदपण (रागाधाय ११) में लिखा है कि शिव इसका अशेष गुणकीर्तन किया है। उन्होंने इसकी तथा शक्तिक योग पर शिवके मुखसे श्रीराग, वमन्त भैरव रूपकरचना भी बहुत अच्छी तरह समझा दी है। इस पथम एव म घ और गिरिराजके मुखसे नटराग उतपन्न दशक सुप्राज्ञ भक्तोको बात छोड़ दीजिये। बहुतसे हुआ इममे मालुम पड़ता कि मर्व प्रथम केवल छही विदेशीय नाना विद्याविशारद भाषातत्त्वज्ञ प्रत्नतत्त्ववित् राग ये, गानेवालान फिर उममे अपर राग, रागिणी, उप यह स्थिर कर न मके, मधुर भाव मधुरच्छन्द निर्मल भक्ति राग प्रभृति बना लिये। मङ्गीतशास्त्रमें मब मिला करके पीयूषसिक्त प्रबन्ध अन्लिोचना करके किम बाक्यविन्यासमें विशति प्रकार राग ओर छत्तीस प्रकार रागिणो निरू उमका युण कीर्तन करें। सबसे पहले सर विलियम पित हुई है और रागिणी रागको भार्या जैसी कही गयो। जोन्मने अंगरेजी भाषा, लामनन लाटिन, रूफर्टने जर्मन है। गाग-1 पदवी । विभिन्न कालको इन्हीं राग रागिणि. ओर मुकवि एडविन आनल्डन अंगरेजो काव्यमें इसको यांसे शुद्ध तथा मिश्रित भावमें बहुतसे गीत आविष्कत अनुवाद किया और ग्रन्यसम्बन्धीय महाप्रयोजनोय विषय हुए हैं। प्राचीन तत्व पर्यालोचना करनेसे समझ पड़ता का अल्पाधिक सुन्दर मन्तव्य लिखा। इन सब विहानों- है कि भारतवासियोंसे हो सर्वप्रथम सङ्गीतविद्या निकली | ने गोतगोविन्दका भागवताधधात्मभावानुयायिक अथ फिर टूमर जातोयों ने उसमें उबति की। मुमलमानों के समझन और समझानकी चेष्टा की है। इसकी अनेक आधिपत्य समयको मङ्गोतविद्याकी विशेष उवति हई। टोकाए और अनेक देशीय भाषानुवाद दृष्ट होते हैं। २ बड़ाई, नाम वड़ो। गीतगोविन्दके पद मात्रावृत्तिमें बने हैं। इसको रूपक- (त्रि०) गै कर्मणि क्त। ३ शब्दित, गाया हुआ। वर्णनामें गुद्य भाव पर नायक-नायकाको कथाकै छलसे ४ स्तुत, जिसकी तारीफ को गयो हो। दिखलाया गया है-जीवात्मा परमात्माका एक रूप होते गीतक (सं० क्लो० ) गौतम गोबरल। गीत । भो मायाबलसे अंशभावमें उसको विस्मृत हुवा करता मोतकण्डिका कण्डिका, ६-तत् । है। यही फिर पाराधनासे जाग करके स्मृतिपथारूढ़ सामवेद पनि होता है। उस ममय जीवात्मा परमात्माके विरहमें क्रम ( मैं पु० ) गोतस्य क्रमः, ६ तत्। संगीतमें एक व्याकुल हो उसको पाने के लिये घूमते घूमते तबिकट उप- प्रकारको तीत देखो। स्थित हो स्फत चित्तसे पवित्र प्रेमरसमें मुग्ध हो जाता Vol.