पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३५६

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३१४ गोतन-गोता पोर उसी में लीन हो करके परमानन्द पाता है। ऐसे कण पायनने महाभारतसंहिताको रचना की है। हो गुच्य भाषसे ईखरमक्ति को वर्णना फारसी भाषाके | उसोका षष्ठ वा भीम पर्व ५८५६ श्लोकग्रथित और ७१७ महाकवि हाफिजकी किताबमें मिलती। बहुतसे प्रधाोंमें विभक्त है। इसी पर्व में अष्टादशाधायिनी विहानोंके मतानुसार गीतगोविन्द गौडाधिप लक्ष मण ७०० श्लोकनिवन्धिता कृष्णार्जुनसंवादगता गोता है। सेनकै समयमें रचित हुआ। वेदेव देणा। जैसे महाभारत पञ्चम वेदकी भांति वर्णित हुआ, गीता गीतज्ञ (म त्रि० ) गोत जानाति गीत-ज्ञा-क। गीत बेदका शिरोभाग उपनिषद, ब्रह्मविद्या और योगशास्त्र माननेवाला । गायक, गीतशास्त्रम् निपुण । कही है। शङ्कराचार्यने उसके मोच्चभावममन्वित विधि गीतपुस्तक (मं० लो० ) गीतस्य पुस्तक ६ तत् । जिस निषेध ममष्टिको स्म ति-जैसा भी ग्रहण किया है। पुस्तकमें गोतका विषय लिखा हुआ हो। (गैरकावा ) गीतपिय ( मं० त्रि०) गोत प्रियमस्व बहुव्री० । १ गाना महाभारतके १८ पर्तम प्रत्येकके मुख्य विभागको मुरत जिसे गोत अच्छा लगता हो । (पु०) २ महादेव, पर्वाधवाय कहते हैं। भीमपर्व में ४ पर्वाधाय हैं--१ शिव। जम्ब खण्डविनिर्माण, २ भूमिपर्व, ३ भगवहोता पर्वा- गौतप्रिया ( सं० स्त्री. ) गोत पिय यस्ता बहुव्रो० । कार्ति- | भाय और ४ मोमवध पव। प्रथम २ पर्वाधाय १२ केयको एक मात्रकाका नाम । क्षुद्र अधयायोंमें बंटे है। तृतीय अर्थात भगवहोता पर्वा- गौतमोदिन (सं० पु.) गौतेन मोदत मुदःणिनि । धायकी एक श्रेणी १३से २४ अर्थात् बारह और द्वितीय किवर । (वि०) २ जो गीत गाने में पानन्द लाभ करे शो २५ से ७२ अर्थात् १८ क्षुद्राधयायात्मक है। इस गोतवादन (सं• लो० ) गीतका गाना । प्रकार दोनों श्रेणियों में सब मिला करके २० छोटे गौतशास्त्र (सं० की. ) जिस शाखामें गीतका विषय अधयाय हैं। प्रथम श्रेणोके २२वें पधायका नाम कृष्णा निर्णीत हो। र्जुनसंवादपर्व है। उसके बाद २३वे अधयायमें दुर्गा- गीता (सं० स्त्री.) गीयते पात्मविद्या यत्र, गजा-टाप । स्तोत्र कहा गया है, जो उक्त संवादके मधा ही परिगणित १ गुरु तथा शिवाकी कल्पना कर कही गई पात्मविद्या, शुभा है। द्वितीय श्रेणीके २५वें अध्यायसे उपनिषद् ग्पदेशात्मक भानगर्भ कथा । जैसे-शिवगीता, राम ब्रह्मविद्या योगशास्त्रान्तर्गत नष्यार्जुनसंवाद भगवडीता गोता सावित्रीगीता, पाण्डवगीता, भगवहीता (अर्जुन- कहलाता है। गीता),अनुमोता, भगवतीगीता, उत्तरगीता, जीवति- गोसाके प्रथमावधि १८ अधयायोका नाम क्रमम: मोता, माणगीता, गोपीगीता इत्यादि। १ सैन्यदर्शन वा अर्जुनविषादयोग, २ सांख्ययोग, ३ कर्म- ___ २ भगवहीता। गीता कहनेसे प्रायः भगवडीताका योग, ४ ज्ञानयोग, ५ कर्म संन्यासयोग, ६ ध्यान अभ्यास तो बोध होता है। शहराचार्यने भी अपने नाना पबन्धों में वा पामसंयमयोग, ७ विज्ञानयोग, ८ तारकब्रह्मयोग, ८ अब उसके विविध स्रोकों को उडत किया, अपने शास- नमें कहीं भगवडीता 'कही' गीता, कहीं बहुवचनान्त राजविया राजगुच्चयोग, १० विभूतियोग, १९ विश्वकप- दर्शनयोग, १२ भक्तियोग, १३ प्रतिपरुषविभागयोग, १४ गीताः शब्द लिखा है।(मारोरखनाथ) कोई कोई उस ग्रन्थका नाम खरगीता बतलाते हैं। गुणत्रयविभागयोग, १५ पुरुषोत्तमयोग, १६ देवासुरसम्मद (मारकमावा ११६ १७1) परन्तु दूसरे लोग इस बातका विभागयोग. कि सावविभागयोग पोर १८ संन्यास वो प्रतिवाद करते हैं। कादम्बरीमें पर्थ बोधक रचना स्खल-| मोक्षयोग के नाना अनुसन्ध य १५..

  1. पनन्तगीता नामसे इसका उन्लेख है। अन्बान्तर पौर

खो, वह विशेष कौतुकावह है। बारसाना मत मिलते विसी किसी प्राचीन भाषानुवादमें उसको पलु नगीता त्य दिखलाया गया है। - पादकरस पीचर ... दामु समानी चोर भी लिया गया। पगार मनाया। उपहास " मोता* मा पराया नवगामासारतको पारो भापनि पानीवाला मार दिया... -