पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३६१

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गोता ३५९ सहर्म का उपदेश यही ठहरता है कि ईश्वर आत्मरूपसे प्रकार सामारिक क्रियाकै फलाफलम ईश्वरका कोई वृदय में रहता और सर्वजीव यन्त्रारूढ़ पुत्तलिकावत् लगता दोष नहीं ममझता । क्रममे वह मच्चि भावमें उपस्थित अर्थात मायाम चलता है । इममे दायित्व और अपने अपने होता है। अविचलित आत्मतत्त्वज्ञ भक्तिरसमें मग्न हो कम के सुफल दुष्फलका अधिकारित्व मांमारिक व्यक्तिक करके सदा ऊव मुखी मतिम उक्त अवस्था लाभ करने मनम न रहने ममार ध्वस होता है। जो लोग सम पर उपलब्धि नहीं करता, तत्पैक्षा अधक लाभ किसी भी कि हम स्वतन्त्रताक बलमे कार्य करते और मुक्तति ट्रमरमें है या हो हो मकता है और कितनो हो बडोम दष्क तिके अनुसार पुण्यपापके भागी बनते, उनके मनका बड़ो सामारिक वा अन्य प कार दुःख घटना क्यों न हो यह भाव अनानावस्थाम' रहना हो अच्छा समझते हैं। इमक उमसे किश्चित् मात्र भी विचलित नहीं कर मकतो जिम तत्त्वज्ञानाने योगबलम मोऽह भाव परिष्काररूपमें मदा ईश्वरचिन्ता, मदा मव भूतक हितको चेष्टा और अनभव किया और जो भगवतप्रेमम लोन हुआ है। अपनो प्रकृतिक अनमार जैम जैम जोविकानिर्वाह तथा उनके निकट पाप पण्य - हय उपादेय ज्ञान बिलकुल हितकर काय कर मकता, वह स्वधम 'जानम अवश्य नहीं रहता। उमक हारा कल्याण कर कार्य का कोड़ माधनोय जान करके माधन करता भार परपीडनका करके और कुछ भी उद्भावित नहीं होता। फिर अपन भाव विसर्जन करके जोवनयात्रा भरता है। वह इम- आपके लिये किमो कार्य का प योजन न पड़त भी लोक लोकम अति उन्नत मनमे पवित्र मानन्द अनुभव करता विकासनायक लोगोंकी तरह उसे निष्काम हो करके आर कन्लेवर छोडन पछि पुनर्जन्म नहीं रखता प र्याटि करना चाहिये। उमको देख करके दूमरे इमो प्रकार उद्दे श माधनाथ नाना शास्त्र में नाना लोग वैमा ही करेंगे और इममे जगत्का उपकार होगा उपाय और उपदेश विद्यमान हैं। किन्तु गोताम ईश्वर सानोपानागेहेक व्यकि यथामाध्य इन्द्रियदमन करके। अध्यक्त होत भी कैसे चिन्तनीय है. 'जगत्का उद्भव क्या कर हवाको चिन्ताम' निमग्न होता है। माधमावस्थाम' होता है, जगत्का उपादान क्या है, जीवन क्या है, मृत्य प्रक तिके गुण बलम ( उमक अपनी चेष्टाभिन्न उपस्थित) क्या है, कम क्या है, कतव्याकर्तव्य तथानिष्कि य होना वोवानराग पर जो सव अनुभव करता उसके पक्षमे किसे कहते हैं, मनोवृत्तिका मूल कहां है, शोतोष्ण सख मोक्षक प्रतिकूल नहीं पड़ता और डमी अवस्थामें एमाद द:ग्वाटिका इन्दभाव कैसे आता है, सृष्टिक्रियाक मूल क्रमसे एक दो बार यद पाप भी करता, तो ज्ञानबलसे मायाक मत्व रजः तमः तीनों गुणों का लक्षण तथा कार्य उसको समझ अनुतापग्रस्त हो ईश्वरक निकट बलप्रार्थना और तदनुमार मनुयका स्वभावभेदमे चावणे करके पुन: पुन: प्रतिज्ञाशोल बनता और साधनपक्षका ___ और तत् तत् वर्णका कम भेद त्रिगुणका परस्पर अनमरण करते ही वह पाप मिटता है। मभी कमकि सम्बन्ध तथा प्रादुर्भावका इतर विशेष पोर तत तत फल प्रारम्भमें दोषका योग है। क्रमश: कौशल और अभ्यास क्या है, इन गुणों आर दूमरे किम किमक बलम कर्म की बलम दोषविमुक्त होते हैं। मन कामनादि रिपुत्रामे मुक्त उत्पत्ति होतो और गुणभेदसे ज्ञानबुद्धि-धैर्य श्रद्धा-उपास्य होने पर आत्माका बन्ध और इन मबके वशीभूत होने पदार्थ आहार यज्ञ-तपस्या दान-सुख-कर्म कर्ता-कम त्याग पर उसका शत्र है। मबको उत्कृष्टता-मधाम भाव तथा निकृष्टता भद की रिपुच्चय व्यक्ति वाह्य और मानसिक पीड़ामें अन्य जाती इत्यादि न्याय्यान्याय्य कार्य का हत क्या है इत्यादि की भांति व्याकुल न हो करके ज्ञानबलसे इसको अवश्य अनेक मनोहर ज्ञानगमे भक्ति-उद्दीपक और मोक्षमाधक भाविनी समझ अभ्याससे अटल पड़ जाता है। वह विषयोंकी कथा विकृत हुई है। प्रशान्तात्मभावापन परमात्मसमाहित ज्ञान और विज्ञान इन मब तत्वांका मनपमें प्रकाश कर पीछे सगुण तथा से पूर्णचित्त हो संसारम' सकल आदरणीय और निर्गुण उपासना भेदमे जो उपदेश दिया गया है, वह अनादरणीय विषयों में समदृष्टि रखता और इस सव क्षणतत्त्व है और इसी में विविध शास्त्रोंके मतामतको