पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३६३

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गीतायन-गौवत गान। खगडन पर क्रुष्णोक्ति भी आयो है। इसो उक्तिमें अर्जुन-गोतिका (सं० स्त्री०। गीतिरिव कायति केक टापा, को मोधो रोति पर ममझान लिये अल्प प्रश्न पर एक | एकमात्रिक छन्द जिसके हरएक चरणमें २६ मात्रा हानी एक अधयाय है । गोताक रचना समय पर अनिक हैं। १४ तथा १२ पर यति होती है और अंतमेशा मतामत मिलते हैं। महाभारत देखी। गुरु होते हैं। २ एकवणिक छन्द जिनके हरएक पल- ३ मङ्कोण रागका एक भेद । ४२६ मात्राका एक में मगण, जगण, भगण, रगण और लघु गुरु हो । कुन्द जिममें १४ ओर १२ मात्राओं पर विराम होता| ३ गीत, गाना। है। ५ वृत्तान्त, कथा, हाल । गोतिकाव्य ( मं० ली.) गान मिश्रितकाव्य । । गौतायन ( म० ली.) गीतस्य अयन आश्रयः, ६ तत् । गीतिन ( मं० त्रि.) गोतं गानमस्त्यस्य गीति लिन गान करनेवाला। गोतयुक्त। गोतिया ( मं० स्त्री० ) वन्दविशेष, जिममें चार चरण होते गोतामार ( मं० पु.) गीतायाः मारो पत्र, बहुव्रो० । यहा हैं और प्रत्यं क चरणमें १६ लघपद रहते हैं। गीतासु मारः, ७ तत्। गाड़पुगण पूर्व खण्डके २३३ | गोतिरुपक ( मं० पु. ) कम गद्य तथा अधिक पद्यकाएक अध्यायमे २३६ अध्याय पर्यन्त विशेष। जिमम' तरहका रुपक । गौताका मागंश मनपमे कहा अथवा जो गीताको अपेक्षा गोधा ( म. स्त्रो०) गे थक् टाप । १ बाक्य । २ गीत, उत्कष्ट हुवा, गोतासार कहलाता है। गीता वेदव्याम- को अमृतमयी लेखनीमे नि:मृत पोय पधारा है । इम गोदड़ (हिं. पु० ) शृगाल्न । सियार कुत्ते की जातिका गोतासारमें उमोका मारांश कहा हुवा है। हमके वक्ता एक जन्तु जो लोमड़ी के मदृश होता है। यह के स्वयं भगवान हैं। गरुडपुराणमें उमके श्रोताका कोई अँड एशिया तथा अफ्रोकामे हरएक जगह पाया जाता उल्न ख नहीं है। फिर भो इतना लिख दिया गया है-'भग- है। दिनके ममय पृथ्वी के भीतर मांदमे रहता और वान्न कहा कि उन्होंन पूर्व कालको अजु नक निकट जिम गत्रिकाल मम हमें बाहर निकलता और छोटे छोटे बान- गीतामारका प्रकाश किया था,उसे कौतन करेंग।' इममे वरको पकड़ कर खाता है। यह मृत जन्तुर्क लायमी मान्नम पड़ता कि भारतयुद्धकै आरम्भमें अजुनको मोह- खाता है । गोदड़ बहुत डरपोक जन्तु समझा जाता उपस्थित होने पर भगवान् श्रीकृष्णन उन्हें जो विम्त त | उपदेश दिया, मोहग्रस्त अजुनने उमको धारण न किया गोदडरूख (हि.पु० ) मध्यम आकारका एक तरहवा था। पीछेको भगवान कटक उसका सारांश पुनर्वार पड़। यह ममस्त उत्तर, मध्य और पूर्व भारतवर्ष में उपदिष्ट हुआ । इमोको गीतासार कहते हैं। भारतमें होता है। इसके पत्त छोटे, बड़े तथा कई प्राकारक उसका कोई प्रमङ्ग नहीं है। गोताका प्रधान उद्देश्य हो | होते हैं और पशु बहुत चावमे इमे ग्वाते हैं। ग्रीष्पमतक प्रतिपादन करना है कि फलका अभिलाषो न हो कवन्न प्रारम्भमें इसके समस्त पतं गिर जाते हैं। चैत्रमे कर्तव्यता बोधसे लोकिक और बैदिक कार्य का अनुष्ठान माम तक इममें बहुत छोटे छोटे लालरंगके पुष्प निक- करनसे ही मनुष्य सुखी हो सकता है। किन्तु इस लते हैं और इसमें बरमे कुछ छोटे फल भी होते जो गीतासारमें उसकी कोई कथा उनिखित नहीं हुई। खानके कामम आत हैं। इसमें तत्त्वज्ञान मुक्तिका साक्षात् कारण और अष्टाङ्ग गोदर (हिं०) गोदा देखा। योग चित्तशुद्धिका कारण जैसा ठहराया है। गोदी (फा०वि०) जिमको हिम्मत नहीं, डरपोक, कायर। गोति ( सं० स्त्री.) गै भावे क्लिन्। १ गान। २ मात्रा गौध ( हि पु. ) देखो। वृतविशेष । इसके सम चरणों में १८ और विषम चरयों गोधना (हिं. क्रि०) लुब होना, परचना। में १२ मात्राएं होती है। इसके अन्य नाम-उद्गगाथा | गौवत ( अ० स्मो०) १अनुपस्थिति, गैर-हाजिरो । २ किर और उदगाहा । नता, चुगुलबोरो, चुगुली। Vol. VI. 91 --