पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३७०

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गुजरातो बनिया-गुखरातोब्राह्मण समझते हैं। ये लोग स्वजातीय ब्राह्मण, दाक्षि- पूनाके बनियों में दो स्वतंत्र नाम हैं। एक तो बलभा- मात्ववामी शेन्वी ब्राह्मण और पांचालोंके स्पृष्ट अनके | चार्य की शिष्य सम्प्रदाय मिश्री और दूमर दिगम्बर जैन सिवाय और किमीके भी हाथका अन्न नहीं खाते। हिन्द सम्प्रदायके श्रावक नामसे प्रसिद्ध हैं। मिश्री भोंमें कपोल, चाक ममम्त देवता उनके लिए पूज्य हैं। ये लोग उच्च खड़ायत, लाड़, मोध, नागर, पाञ्चाल, पोरवाल आदि चौके हिन्दुओंको भांति उत्सव आदि भी करते है। तथा जैनियों में हमड, पोरवाल, श्रीमाली आदि कई तिरुपति बालाजी और पण्टरपुरक विठोवा इनके कुल शाखाए हैं। मिश्रीओंके विवाहमें "लहान् गणेश" की देवता हैं। कभी कभी ये लोग हिन्दुओं के तीर्थों में जाकर वा गणपतिकी और जैनियोंके विवाहमें "गोतम गणधर" पूजा अादि भी करते हैं। सब मबेरे शौच स्रान आदिक "सिद्ध परमेष्ठी” और “देव-शास्त्रगुरु" की पूजा होती बाद नियममे कुलद वताको पूजा करते हैं। इनकी है। ये लोग अशौच दश दिनका मानते हैं । मिश्री गांधान, विवाह पोर श्राइको क्रिया गुजराती ब्राह्मण लोगोंके १०३, ११वें और १२वें दिन बाद होता है और भी करते हैं; और उनकै अभावमें उस देशक ब्राह्मण भो १२वें या १३वें दिम जातिभोज (तेरही) होता है । करमकते हैं। उनमेंमे मब हो वल्लभाचार्य प्रतित थावकोंके श्राद्ध आदि नहीं होता; वे १२वें दिन दिग- समादायमें शामिल हैं। ब्राह्मण जातिकै दम प्रकारके म्बर जैनमन्दिर में जाकर अक्षत पष्प आदि अष्ट द्रव्योंसे मस्काम से ये लोग नामकरगा, चूड़ाकरण, विवाह, अहन्त आदिको पूजा करते हैं। ये लोग अशीचके ग्यारह गर्भाधान, थाड आदि कुछ मंस्कारीका पालन करते हैं। दिनी मन्दिरको काई भी वस्तु नहीं कुते और न जिना- बालकको पहिले पहल विद्यालयमें भर्ती कराने के लिए ये भिषेक ही लगाते हैं। ये शास्त्र मभाग पृथक् बेठ कर शास लोग शुभदिनको देख कर गाने बाजेके साथ ले जाते हैं। सुनते हैं ; तथा शङ्का समाधान भी करते हैं। श्रावकोंक बालकको ताड़पत्र और पुस्तकादि सरस्वतीके नामसे १३वें दिन जातिभोज होता है : इभका नाम तेरहीं है। पत्रा होतो है। उस समय बालकसे मबसे पहिले गजराती ब्राह्मण-किमीणोके दाक्षिणात्यवामी ब्राह्मण। "*ममः सिद्धेभ्य." लिखाया जाता है। इसके बाद प्रायः १०० वत्सर गत हुए यह गुर्जर छोड़ करके जगह मिथकको पान, सुपारो और रुपये दक्षिग्नामें दिये जाते जगह बम गये हैं। पूना जिलेमें औदीच्य,देशावल,खेड़ा- बालिकाए' कमारो अवस्थामें मगम्ला गोरीको पूजा | वल, नोध, नागर, श्रीगौड़, श्रीमाली प्रभृति देख करती हैं। इनमें बाल्यविवाह प्रचलित है। बहुविवाह और विधवा विवाह करनेवाले को जातिमे च्युत कर दिया जाता है। ___ यह निरामिषाशी होते, केवल. मादकताकं लिये अफीम, भोग और तम्बाकू सेवन करते हैं। यह स्वभावत: समाजमें कोई प्रकारका विभ्राट हो जानसे ये लोग उसे | परिष्कार, सत्, कर्मठ, चतुर और प्रातिथय हैं । इन. अयं ही शान्त कर लेते हैं। सब मराठी पौर गुजराती में कितने ही लोग वाणिज्य व्यवमायमे पौरोहित्य पर्यन्त भाषामें बात चीत करते हैं । शोलापुरके गुजराती किया करते हैं। कोई कोई जमीन खरोद करके जमी- बनियोंमें हुम्बड़, खड़ायत, नाड़, नोध, नागर, पोरवाड़ पौर श्रीमाली आदि श्रेणियां हैं। तथा उनमें भी दशा न्दार बना और उसको उत्पव द्रव्यके प्राधे बंटवारे पर पौर बीशा इस प्रकार दो भेद हैं । जो जातिच त हैं उन्हें| दूसरे किसानोंके हाथ उठा दिया है। दया और जो जातिधत नहीं है, उन्हें बोशा करते ___ यह बालाजी, गणपति, मारुतो, तुलजाभवानी और बह मूल श्रेणियों में एकत्र भोजन वा दान ग्रहण शङ्करको पूजा करते हैं। इन्हें प्रपदे वता, डाकिनो और नही चलता । ये भी निरामिषभोजी होते है । पुत्र प्रसव- भविष्यवाणी पर भी विखास है। पांच दिन बाद छट्टी या षष्ठी की पूजा करते हैं। इनमें वास्यविवाह पौर बहु विवाह प्रचलित है, परन्तु भार दिनमें पुत्रका नामकरण करते हैं, और एकसे दो | विधवाविवाह कोई नहीं करता। कोई सन्तान आदि मास तक चूंड़ाकरण करते है। प्रस्त क्षेने पर मराठी धात्री वा स्वजातीय रमणे उसकी