पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३७३

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गुन-गुञ्जाद्यतेल गुञ्ज ( मं० पु० ) गुञ्जति भ्रमरोऽत्र गुञ्ज अधिकरण घञ्। । ज्वर, मुख्शोष, भ्रम, खास, तृष्ण, मत्तता, चक्षुरोग, १ध्वनि, शव्द । २ पुष्पम्तवक । कगडु, व्रण, कृमि, इन्ट्रलुप्त, कुष्ठ, रक्तदोष तथा धवलरोग- गज-बंबई प्रान्तकं थाना जिलेका एक गांव । यह वाडः | नाशक हैं। (आबकाश) में कोई १० मील दक्षिण-पथिम है। गांवके पाम एक इमको लकडोका बाहरो रंग कुछ पिङ्गल, किन्तु तालाब किनार अंबा मन्दिरका ध्वंसावशेष है। भागवः भौतरो ईषत् पोला हाता है । यह गन्धहोन है। पास्वाद राम पर्वतकी राह पर लगभग प्राध मील दूर ४०० वर्ष । सुमिष्ट लगता और खानमे मुह चिनचिनाने लगता है। का पुराना भार्गवरामका मन्दिर खड़ा है । सम्भवतः गुजा मुनहटोके बदले काम आतो है। जाहाक, जहांसे ५०॥ एकड़ जमीन माफी है, कोल्लि २ परिमाण विशेष, रत्तो। दो यवमें एक गुनाहोती राजान इमे बनाया था। इमारत बहुत अच्छा है। है। (नासा) पत्थर पत्थर काट काट करके लगाया गया है। हार चार वैद्यक परिभाषाक मत और कालिमानमें चार यव हैं। उनमें दो पर गणपतिको म ति प्रतिष्ठित है। को एक गुना है। ( घर) दालान २२ फुट लंबा और १२ फुट चौड़ा है। दव. गुन्नति शब्दायते, गुञ्ज कतरि अच्-टाप् । ३ पटह, म ति नराकार है। ढाक। गुञ्ज भावे अ। ४ कलध्वनि, मोठी बोली। गञ्जकत् (म. पु०) गुज ध्वनिभेदं करोति कविय ५ चची, तजकिरा । आधार या । ६ मदिरागृह, भ्रमर, भौग। शराबवामा। ७ मुस्ता । गुञ्जन ( मं० क्लो. ) गुञभाव ल्य.ट । भौंरेका शब्द। गुजाकिनी ( मं० स्त्री०) १ गुना, घवची। - पानीय गुजा ( मं० स्त्री० ) गुज्जति, गुञ्ज-अच्-टाप। १ नता- भत्तवटी। विशेष, काई बन्न। ( Abrus precatorious ) हिन्दीमें गुजागर्भरस ( सं० पु. ) वैद्यकोक्त औषधविशेष, एक दवा इमका नाम घुघचो है। पत्तो इमली की तरह पतली १॥ तोला पारा, गन्धक, जयन्सोवीज वा हरीतको तथा होती है। फन शिबी-जमा पाता और वीज रक्त तथा निम्ब बीज प्रत्यं क ६ तोला, गुञ्जावोज ३ तोला पौर कृषा दिखनाता है। फलम एक चडा रहती है। वैद्यक जयपाल ॥ तोला सबको काकमाची, धतूरे और जयन्ती- शास्त्रक मतमें उमका मल विषाक्त है। गुञ्जाका पर्यायः क रममें मान करके गोली बना लेना चाहिये । अनुपान काचिच्ची, कृष्णला, मङ्गठा, रक्तिका, काकात्तिका, वृत है। रिङ्ग एवं मैन्धव मंयुक्त मण्ड पथ्य होता है। काकाटनो, काकतिका, काकजना, शिखण्डिनी, चड़ा- इमर्क मेवन हद्रोग नहीं रहता। (सेमविनामयि) मणि, मौम्या, शिखण्डी, अरुणा, तामिका, शोतपाको. गुञ्जातेल ( म० क्लो. ) ते लविशेष, घुघचौका तेल । कट उच्चटा, कृषणचूड़िका, रक्ता, कांबोजी, भिलभूषण, वन्या, तेल ४ शगवक, गुञा मुल तथा फल प्रत्ये क ४ पल और श्यामलचूड़ा और काकचिञ्चिका है। ८शरावक जल एक माथ यथाविधि पाक करनेसे यह गुजाका वीज तीक्ष्ण और उषा होता है। (नि.) तल बनता है। उमको लगानेमे कुष्ठ तथा गगडमाला राजवल्लभने उमको कुष्ठवणनाशक कहा है । मूल रोग नहीं रहता। (भावप्रकाश ) दूमग गुञ्जातल ४ शरा वान्तिकारक और शूल तथा विषनाशक है। वशीकरण वक कटतेन. ८ पम्न गुञ्जाफल और ८ शरावक भीमराज कर्म में खेतवर्ण हो प्रशस्त रहता है। (राजनि. ) भाव- रस माथ साथ पकानमे तैयार होता है। (कोमा ) प्रकाशके मतानुमार मफेद और सुख दो तरहको धची गुञ्जाद्यतेन ( म० क्लो०) तैनविशेष, एक तेन्न । गुञ्जा- है। खेतवर्ण गुञ्जा उच्चटा तथा कृष्णला और लालरंग- मून, करवीरमूल, वोजताड़कमूल, अमूल वा निर्यास वाली काकचिञ्ची, काकानन्ती, रक्तिका, काकादनी, काक तथा सर्षप प्रत्ये क ४ तोला, तेन्न १ शरावक और पाठ पोलु एवं अङ्गारवल्ली कहलाती है। यह दोनो गुञाएं शरावक गोमूत्र एक माथ यथाविधि पाक कर पिप्पली, नर्धक, शुक्रधिकर एवं' बलकारक और वायु, पित्त, पञ्चलवण एवं मरिचका २० तोला चूर्ण डालमेसे यह