पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मक ३७४ गुट्ठल-गुड़गुड़ाहट पार श्रीकृषाके अनुरोधसे इन्होंने कालयवनको मार उसमें एक प्रस्थ या २ सेर धौ और तेल छोड़ते हैं। फिर था। मनुकुन्द देखी। पर्वतके ऊपर कर्णके समाधिस्थान दालचीनी, तेजपत्र, धनिया, त्रिकटु, जीरा, इलायची, और शिवमन्दिर विद्यमान हैं। शिवलिङ्ग के निकट ही लाल चीत, नागरम था, चित्रक, पीपल, सौंठ, सिंघाहा. तलन अक्षरको एक शिलालिपि विद्यमान है। कार, प्रलम्ब और तालमस्तक प्रत्येक एक पल परिमित गुट्ठल ( '६० वि० ) १ बड़ी गुठलीवाला फन्न। २ मूर्ख, ले चूर्ण करना चाहिये। इसके बाद १२॥ सेर गुड़ उक्त जड़। ३ गुठलौके आकारका । चण में मिला करके पहले तेल और घोके माथ पकात गुठली ( हिं. स्त्री. ) किसी फलका बड़ा एव कठिन हैं। गाढ़ा पड़नमे इमम ८ पल शहद डाला और मब वीज। पकान पर पाक उतार लिया जाता है। इमीका नाम गुड (सं० पु०) गवत अव्यक्तशब्दं करोति, गुड़।१ वतु ला गडकमागह है। अग्निमान्य रहत भी उस ओषधको कार पदार्थ, गोल। २ हस्तिसवाह, हाथीको मज्जा। मेवन कर मकते हैं। इससे कफ, पित्त और वायु प्रश. ३ ग्राम, कौर। ४ कड़ाहमें गाढ़ा उबाल कर जमाया मित होता है । कग व्यक्तिकं लिये वह बलवृद्धिकर है। हुआ ऊवका रम जो मृत्तिकादिक जेमे कठिनाकारमें अनियम स्त्रीमम्भोगमे जो अतिशय क्षोगवीय हो गया परिपात हो जाता है। पर्याय-इक्षुसार, मधुर, रम- है. उनके लिये गडकमागडक विशेष उपकारी है। दमक पाकज, खगडुज, द्रव्यज, मिड, मोदक, अमृतसार, शिशु- सेबन काम, स्वाम, ज्वर. हिका चर्टि और अरुचि रोग प्रिय, मितादि, अरुण, रमज, इक्षुरमक्काथ, गगठोल, गुल, विनष्ट होता है । वह अतिप्राचीन पोषध है। अश्विनी स्वादुखण्ड और स्वादु। कमारने ही सर्व प्रथम उसका आविष्कार किया था। गुड़का माधारण गुगा शुक्रवर्द्धक, म्रिग्ध, वायुनाशक, मूत्रशोधक, पित्तनाशक एव मेद, कफ, कृमि और बन्न- गुड़खण्ड ( सं० पु० ) गुड़लत खगड़, गुठको खांड यर वृद्धिकर है। मधुर, मित, वातपित्तनाशक, किञ्चित शोतल, वस्य, पुरान गुडका गुण-लघु, हितकर, अनभिष्यन्दी, तृष्ण और रुचिप्रद है अग्निवईक, पष्टिकारक, पित्तनाशक, शाकिर, वाय गुड़गुड़ (हिं० पु.) जलमें नली आदिके द्वारा वाय प्रवेश होनका शब्द। नाशक और रनपरिष्कारक। नूतन गुड़का गुण-कफ, खास, काम, क्रिमि और गुड़गुड़ा ( मं० स्त्री० ) यावनालशकरा। पग्निहधिकारी। अदरसके माथ गुड़ खानेसे कफ, गुड़गुड़ापुर-बम्बई प्रान्तके धारवाड़ जिलेमें रानीब अर रोतकीके साथ पित्त एवं गोठके साथ खानमे अनक तालुकका नगर तथा तीर्थ स्थान । यह अक्षा० १४.४० उ० और देशा० ७५ ३५ पू०में अवस्थित है। जनसंख्या सरहके वातरोग नष्ट होते हैं। ५ न होवृक्ष । ६ कार्पासी, कोई ८४७ होगी। अक्तूबर मामको मल्लारि (शिव) कपाम। का जो मला लगता, हजारों यात्रियोंका समागम रहता गडक (सं० त्रि.) गुड़े न पक्क: बाहुलकात् कन् । १ गुड़- है मनारिका एक मन्दिर है। उन्होंने भैरव रूप धारण पक्क, गुड़से बनाया हुआ। ( पु० ) गुड़ एव गुड़ स्वार्थ करके मन रासमको मारा था इनके सेवक बाग गप कन। २ व लाकार पदार्थ । कुक्क रका अबतार बतलाये जाते हैं। वह शेर या भालुक गुडकरी ( सं० स्त्री०) गुडं गुड़वत् सुमिष्टं श्रुतिसुखकरं खाल पहन करके यात्रियों को हंसाते और पैसा कमात करोति । रागिणी विशेष । हैं। १८७८ ई०को यहां अस्थायी मुनिसपालिटो हुई। गुडकाष्ठ (मं० पु०) इक्षु, जख, केतारो। गुड़गुड़ाना (सं० क्रि०) गुडगुड़ शब्द होना। गरष्माण्डक (सं० क्लो) औषधविशेष, एक दवा। गडग डायन ( स० वि०) ग.गड इत्येवं अयन यस्य, किसी पुराने सूखे कुम्हड़े से १०० पल अंश निकाल करके बहुव्री। जिससे गडग ड़ का शब्द हो। पाग पर मर्म करना चाहिये। कुम्हड़ा उत्तम्ल होने पर गुड़गुड़ाहट (हिं. स्त्र. ) गुड़गुड़ शब्द होनका भाव ।