पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३७७

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गुड़गुड़ो--गुड़पर्वत ३०. गुड़गुड़ी (हिस्त्री०) फारमो. एक तरहका हुका। हेमाद्रि दानखण्डमें उसका विधान इस प्रकार लिखा है- गुड़गुड़ी. बम्बई प्रान्तके धारबाड़ जिलेका कसाबा । यहाँ | जहां गुड़धेनु दी जावेगी, गोमय हारा अच्छी तरह कलापका मन्दिर है। इमो मन्दिरमें १०३८ और १०७२ | लोपना पडेगा। उस पर कुश वा दर्भपत्र विस्तीर्ण करके ई०के प्रदत्त दो प्रशस्ति खोदित हैं। चार हाथका कोई क्लणाजिन पूर्व मुख करके रवमा और गुडग्राम-राजगढ़के अन्तगत एक गगडग्राम । यह बहुया एमके निकट दृमरा कोटा कागाजिन वत्म के लिये स्थापन नदीमे है कोश पश्चिममं अवस्थित है। करना चाहिये। पहले पर गुडको एक गाय और दूसरी गुड़ची ( सं० स्त्री०) गुड़ मिष्टरसचिनोति गुड़े न चीयत | पर बछड़ा बनाते हैं। चार भार अर्थात् २५ मन गुड़मे वा गुड़-चि-ड-डीप । गडची देग्यो। गो और एक भार पानी । मनसे वत्स प्रस्तुत करना गुडतृण ( म० ली. ) गुड़माधन तत् प्रधान वा तृण' उत्तम है। दो भार ( १२॥ मन ) गुड़की धन और आध मध्यपदलो० । इक्षु, जग्व, कतारी। भार ( ३ मन ५ मेर)का बक्कड़ा मध्यम होता है। दाता गडविण ( म० की.) गडप्रधान तण निपातन साधु । अपनी अवस्था अनुमार जितने चाह गुड़म यह काम गरताप देखो। कर सकता है। धनु और वत्म दोनौका मुह त हाग गुड़त्वच (मं० को०) ग डतुन्य त्वक् मध्यपदलो० । स्वनाम निर्मित होता और शुभ्रवर्ण सुन्दर वस्त्रमे आच्छादित व्यात गन्ध द्रव्य । यह मधुर रस तथा पीतवर्ण का होता करके रखना पड़ता है। कान सौपके, नयन मोतोके, है। इसका पोय-मूत्कट, भृङ्ग, त्वपत्र, वराङ्गक, त्वच शिराप' मफेर मतकी, गन्नकम्बल ध्वस कम्बनक, ककुत् वोल, त्वचा, पच, हृदय, सुरभिवल्कल और त्वक है। तथा पृष्ठदेश तविक और उजले चामरकं रोम लगात गजवल्लभक मतमे इसका ग गा-कफ, शुक और आमवात- हैं। इमी प्रकार मगमे भोर,नवनीतमय सौम वस्त्रमे नाशक, मधुर एवं कट है। किन्त भावप्रकाशके मतमे स्तन एवं पुच्छ, कांस्य हाग दोह, इन्द्रनीलमणिम चक्षु- इमका गुण--लघु, उष्ण, कट, मधुर और तिक्तरस, रूस की तारकाए', मोनसे मौंग, चांदोमे खर और विविध पित्तवर्ड क एव कफ, वायु. कगड प्रामदोष, अरुचि फलामे दांत बनाये जाते हैं। सदरोग, वस्तिगत रोग, वातजनित प्रश, क्रिमि, पोनम इसी प्रकार गुड़धन निर्माण करके धूप, दोष अादिमे और शुक्रनाशक है। हमको पूजा करना चाहिये । प्रत्य क पा पाचाड करम- यह पीतवर्ण सुगन्धि स्थ लत्वक् 'केशिया' नामक की तरह इमका भी विधान दृष्ट होता है। गुड़धेनु वृत्तकी छाल है। यह चीन तथा तातार देशमै उत्पत्र दानने समस्त यन्नका फल मिलता और सब पाप जाता होती है। इसमें कुछ मिठास होनेके कारण इसे गुड- रहता है। विषुवसंक्रांति, पुण्याह तिथि, व्यतीपात पौर त्वक कहते हैं। यह केशादिको सुगन्धित करने के लिये ग्रहण समयको गुडधेनु दाम करना उचित है। व्यवहत होता है। रम तरहको एक और पतली काल गुडनई-बासुदेवपुरसे दो योजन उत्सरमें अवस्थित एक होती है। जिसे दालचीनी कहते हैं। किन्तु इसका प्राचीन ग्राम । (देशावली) स्वाद कटुमिश्रित मोठा है। किमी किसी वैद्यक ग्रन्यके गुडना (हिं० कि. )एक तरहका लडकीका खेल। एम- मतसे ग डत्वक शब्दका अर्थ दालचीनी कहो गया है। में लड़कं डगई या लाठीको इमतरह फेंकते हैं कि गुडत्वच ( म० ली० ) ग डत्वक राजभोग्य, जायत्री। | लाठो मिरकं बन पलटा खाती हुई वहुत दूर तक चली गडदारु ( म० क्ली.) गडप्रधान दाम मध्यपदलो. जाती है। इक्षु, जख, कतारी। गुड़धमिया ( हि स्त्री०) गेह और गुड मिश्रित एक गुड़पर्वत (म० पु०) गुर्ड न निर्मित: पर्वत:, मध्यपदम्तो। तरहका लण्ड । । दाम लिये गुड़का बनाया हुअा पहाड़। मत्स्यपुराणमें गुड़धनु ( सं० सी०) गुड़निमिता धेनुः, मध्यपदलो। उसका विधान इस प्रकार लिखा है-तीर्थ, गोष्ठ वा दानके लिये गुड़ द्वारा निर्मित धेनु, गुड़की गाय। ' गृहक प्राङ्ग गामें एक वरहारी चतुरस्र मण्डप निर्माण