पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८०

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३७८ गुडि.या-गुरूची गुड़िया (हिनी. ) कपड़ोंकी बनी हुई लड़कियों के । ग.हरु (हिं. स्त्री० ) १ किवाड़की चूर। २ मण्डला- सेलनेको पुतली। कार रेखा। ३ छोटा छद्र। गुड़िया-उड़ीसेको एक जाति । यह हस्नयाईका धाम | गुडघा ( हिं० पु० ) कपड़े का बना हुआ लड़कि खेलने करत । गुड़की मिठाई बनानसे ही उनको गुड़िया | कहा जाता है। गुड.ह-एक देशका नाम । (महिला १८.३) गड़ ची ( स० स्त्री० ) गड बाहुलकात् उचट दक्ष गुडिलो-वृहदाचलम्-मन्द्राजप्रान्तके विशाखपत्तन जिलेका| गरी बाहुलकात् उकारस्य ऊकारादेशः । लताविशेष, एक पहाड़। यह विमलोपत्तन तालकमे ८ मील पश्चिम एक बेल । चलती बोली में गुच कहते हैं। Cocculus पड़ता है। इसको ममावरम राहमे एक मोल दक्षिण cordifolius.) इसका संस्कृत पर्याय-वत्सादनी, छिन्न- रानाथ स्वामौका मन्दिर और उसीके पाम पत्थर पर कहा, तन्त्रिका, अमृता, जोवन्तिका, मोमवल्लो, विशल्या, खुदी हुई एक लिपि है। मिवा इसके मगड़पके ग्वम्भे पर मधुपर्गी ग रची, गड़.चा, चक्र, लक्षणा, अमृतवल्लो, पहाड़ और झरनेके निकट दूमरी भी कई एक अस्पष्ट ज्वरार, श्यामा, वरा, मुक्तता, मधुपणि का, छिनोवा, सिम्ता लपियां देव पड़ती हैं। इसी स्थाममे एक मोन अमृतलता, रसायनो, सोमलतिका, भिषक प्रिया, कुण्ड- दूर १० फुट गहरी और ३० फुट चौड़ी एक गुहा है। लिनी, वयस्था, नागकुमारिका, कनिका, चन्द्रहासा, गुड़ीवाड़-मन्द्राज प्रान्तके कष्णा जिले का एक सबडिविजन अमृतवल्लरी, सुधाजोवन्ती, सोमा, चक्रलक्षणिका, और तालुक । यह अक्षा० १६ १६ तथा १६४७ उ० वयस्या, मण्डली और देवनिर्मि ता है। पौर देशा० ८०. ५५ एव ८१ २३ पू० मध्य अवस्थित ____ गड चो कटु, तिक्त स्वादुपाक, रसायन, मग्राही, है।क्षेत्रफल ५८५ वर्ग मोल ओर लोकमख्या प्रायः | कषाय, उष्ण, लघु, बन्लकर, अभिवृद्धिकार', और १५१८१६ है। इसमें कोलार झोल पा गया है। माल त्रिदोष, आम, तृष्णा, दाह, मोह, काल, पाण्ड, कामला ग जारी और सेम कोई १०१८०००, रु. है । जमीनको कुष्ठ, वातरक्त, ज्वर, तमि तथा वमिनाशक है। (भाषा) साँच क्लष्णा नदीको नहरसे होतो है। एक नगर और राजवल्लभक मतमें बह गरु, वीर्य कर और भ्रमनाराक २१२ गांव प्राबाद हैं। होती है। गुड़ीवाद-मन्द्राज प्रान्तके कणा जिलेमें ग डोवाड़ गर्चको पत्ती अग्निवृद्धिकर सर्वप्रकार ज्वरनाशक, सालुकका सदर । यह पक्षा० १६२७ उ० और देशा | लघु, कषाय और दूसरे गुणोंमें लताके समान है घीमें पूछमें पडता है । जनसंख्या प्रायः ६७१८ है । ग ड़ी- मिलो हुई गर्च को पत्ती वात, ग ड्युक्त पित्त, एरण्डतेस्त बाड बहुत पुरानो जगह है। नगरके मध्यभागमें एक योगसे उग्र वातरक्त और सौहड़के मेलमें प्रामवात दूर टूटाफुट बौद्ध स्त प देखते है । कहते हैं, कि उममें पांच करती है। (राजवाभ) मटके मिले । पश्चिमको एक सुरक्षित अन मूर्ति है । थोड़ो भावप्रकाशमें बतलाया है कि राम रावण युद्धमें राक्षसाधिपति रावगके हथियारों को कही चोटमे राम दूर भागे नगरका प्राचोन स्थान टोला है। यहां मट्टीके | चन्द्र का बहुतसा बानर मन्य निहत हुषा। रामने उन्हें बई वर्तन, धातु, पत्थर तथा शीश सब सरहको मालाए बचाने के लिये इन्द्रसे प्रार्थना की थो। सुरपतिके अमृत पौर पान्ध कांस्य मुद्राएं प्राविष्कत हुई है। वर्षण करनेसे.मर हुए बानर जी उठे। उनके घरोरका गुही ( सं० स्त्री. ) १ मुहीक्ष। २ गुरचो । अमृत चारों ओर महीमें लगा था। उसी प्रमृतसे सब- मी (हि. स्त्री. ) पतंग, गु उडी। से पहले गुर्च उपजी। मु.प.ची ( स० बी० ) गुड बाइसात् उचत् डीप । ___भारतवर्ष के प्रायः सब बनाम गुड. ची लता देख मरच। परती। जड़ काट डालनेसे भी यह नहीं जाती।