पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८२

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३८. गुड़ च्यादि लाह-गुण में तीन तरहके ग ड च्यादिक्वाथ निरूपित हैं। १म-गुरुच | गुड़ क ( स० पु० ) गुड़शाली। और आंवला संयुक्त क्षेतपापड़े के क्वाथको एक तरहका गुडडा (हिं० पु० ) ग. या देखो। गुड़ थादि क्वाथ कहते हैं। इसके सेवनसे दाह, शोष | ग डडी (हि. स्त्री० ) पतंग, कनकौवा। और भ्रान्ति उपसर्ग युक्त पित्तज्वरमें विशेष लाभ होता ग ड (हि स्त्री० ) १ गरी । (पु.) २ एक है । २य-गुरुच, चिरौता, वाला, वेणाको जड़, मोथा, प्रकारका कोट जो धूम्नमें घर बना कर रहता है। तेउडी, पावला, कि ममिस, वासक और क्षेतपापड. इन गण ( स० पु. ) गुण भावे कर्तरि वा अच । १ धनुषको समस्त द्रव्यके क्वाथको भी गड.च्यादि क्वाथ कहते हैं। प्रत्यंचा। इसका पर्याय-मौ:ज्या, शिञ्जिनी, शिक्षा, इसके सेवनमे ज्वर विनष्ट होता है। प्रातःकाल मधुक ज्यावा, पतञ्चिका और जीवा है । २ रज्जु , रम्मी, डोरा। साथ सेवनोय है। क्य-गुन्लञ्च, निम्बपत्र, धनिया, रक्त- ३ शौर्यादि धर्म । ४ छह प्रकारको राजनोति । मन्धि, चन्दन और कटको इन ममस्त पदाथमे जो क्वाथ प्रस्तुत विग्रह, यान, आसन, इंध और मंचय इन सभीको गुण होता है उसे गुड, यादिक्वाथ कहते हैं। यह पित्तनष्मिक बोलते हैं । ५ सूत्र । “चौगु व स. (बार्शम० ३६९) स्वरमें मेवन करना उचित है। इसके सेवन पिपामा, ६ ज्ञानविद्यादि । ७ अच्छा स्वभाव, शोल, सह,त्ति। दाह, अरुचि और वमि दूर हो जाते हैं ८ सांख्यमतमिद्य पदार्थविशेष, सांख्यमतमें माना हुआ गुड़ च्यादि लौह ( सं० पु०) रमविशेष, एक दवा। गुच- | एक पदार्थ । “गुण" शब्दसे साधारणतः द्रव्य के धर्म का सत, त्रिफला, विडङ्ग, मोथा तथा चौतको जड़ एक रूप रम आदि होका बोध होता है, किन्तु मांख्यमतमें एक तोला और १० तोला लोह मिला करके माषाप्रमाण गुणको ऐसा नहीं माना है, वे कहते हैं यह एक प्रकार गोली बना लेना चाहिये । इसोका नाम गुड्यादि | का द्रव्य है और इसके भी कई एक धर्म हैं । विज्ञान लौह है। यह रम सेवन करनेसे वातरक्त दूर होता है। भिक्षु कहते हैं, कि पुरुष वा आत्मारूप पशुक्र बन्धनक (रसेन्द्रचिन्तामणि) कारण महत्तत्त्व वा वुद्धिरूप र जिमसे बनती है, गुडूर-बबई प्रान्तके बीजापुर जिलेका ग्राम ( मन्दिर | उसीको सख्यिप्रणता कपिलने गु गा श स उल्लेख किया परी)। यह बादामीका एक छोटा गांव है। जन है। (साव्य १.६१ भाषा) इस ग णम हो ममस्त पदार्थ संख्या प्रायः ११८२ है। ग्रामके मधाभागमें रामेश्वरका उत्पन्न होते हैं। इसी लिए मम जन्य पदाथको त्रिग - एक प्राचीन मन्दिर है । उसमें लिङ्ग प्रतिष्ठित है। गात्मक कहते हैं। ये ग ण तीन प्रकारके हैं-सत्व:, रज: मठको छोड करके और सब गिर पड़ा है। मन्दिरमें १२ और तमः । सुख, लघुता और 'कश आदि जिमका धर्म चौकोर और ६ गोल नक्काशीदार खम्भ है। हारकाष्ठ है, उसे मत्वः, दुःख, उपष्टम्भ और चाञ्चल्ययुक्तको रजः पर गजलक्ष्मी की मूर्ति है। हाथी अपनी सूंडमें घड़े लिये तथा विषाद, गुरुत्व और पावरकत्व आदि जिममें है उनके मस्तक पर जलधारा छोड. रहे हैं। यहां कपड़े, उस गुणका तमः नामसे उल्लेख किया जाता है। इनमें तौब पीतल के बर्तन और मूर्तियोंका काम होता है। एक एक जातीय अनन्त ग ग हैं। सत्वजातीय अर्थात् गुडे.र ( स० पु०) गुरु: एरक् । १ गुड,क, वत्सला जिसमें मत्वग णका धर्म है, उसे सत्व, रजोजातीय सभी कार पदार्थावशेष । २ ग्रास, कौर। ३ तृण, घास । गणीको रज: और तमोजातोय समस्त गणोंको तम: गुड रक (सं० पु. ) गुडे.र स्वार्थ कन्। गर देवा। कहा जाता है। इन जाति को ले कर तीन गुण ग डोदक (सं.ली.) गुड़ मिश्रित जल । स्वीकार किये जाते हैं। वास्तवमें गुण सिर्फ तीन ही गु डोडवा (म० स्त्रो० ) गुड. उद्भवोऽस्याः, बहुव्री० । नहीं हैं। एक एक जाति के अनेक गुण हैं। विज्ञान . १ शर्करा, शक्कर । (त्रि०) २ जो गु से बनाया गया हो। भिक्षुके मतसे-आकाशके कारण जो गुण हैं, उन्हें छोड़ ग डोङ्गता ( स० सी० ) गुड़ात् उड्ता, ५-तत् । शकरा, कर अन्य सभी गुण अणपरिमाना है। इन गगीका की शकड़। | भी विनाश नहीं होता । ये समस्त पदार्थों के रूपमें परि-