पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८३

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३८१ गात होते हैं। नैयायिक वा वैशेषिकगण भौतिक परमा- पर ज्ञानको अल्पता वा प्रभाव, कायमें अप्रवृत्ति, अनव- णुओंको निरय । नित्य मानते हैं। उनके मतमे परमाण धानता और मोह हुआ करता है तथा रमहोन, दुर्गन्व- ही चरमद्रव्य है, उन्ही मे ममम्त जन्य द्रव्योंकी उत्पत्ति युत, पर्युषित और उच्छिष्ट ट्रय भक्षण करनेकी रच्छा होती है, किन्तु परमाणु किमी पदार्थ से उत्पब नहीं होतो है। हैं। मांख्यप्रणताने इम मतका युक्ति और प्रमाणों हारा | भावप्रकाशमे लिखा है-धर्म, मुक्ति और परलोक खण्डन कर, परमाणुका उपादानकारगा वा अवयव आदिमें विश्वाम, मत् अमतको विवेचन करके भोजन तम्मात्र, तन्मात्रक उपादानकारण अहङ्कार अहङ्कारक | (करना), क्रोधहोनता, सत्यवाक्यप्रयोग, मेधा, बुद्धि, उपादानकारण महत्तत्त्व और उमक उपादानकारण मत्त्व भूतप्रेत, काम क्रोध और लोभ अादिक आवेशका प्रभाव, रजः और तमोगुण हैं, मा स्थिर किया है। इनके अव. क्षमा, दया, विवेकज्ञान, पटुता, अनन्दित कर्म का प्रमु- यव वा उपादानकारण नहीं हैं ये नित्य हैं। ये गुण ष्ठान, स्पृहाका प्रभाव, नियम और रुचिकै माथ धर्म- परस्पर परम्परक महचारी और परिणामशोल हैं और कमका अनुष्ठान ये सब वहित मानमिक मत्त्वगुणके एक जातोय गुण अन्य जातोय गुणका अभिभव किया धर्म हैं । क्रोध, ताड़नशीलता, निरतिशय दुःख, अत्यन्त करते हैं। सुखको इच्छा, कपटता, कामुकता, मिथ्यावाक्यप्रयोग, ___ भगवहीताकै मतमे -मत्त्वगुण निम ल कलुषादिमे अधीरता, गर्व, ऐश्वर्य, मनता, अधिक प्रानन्द और रहित है; ज्ञान (वृत्ति) सुख और प्रकाशकत्व इसका भ्रमण, ये सब मानमिक वडित रजोगुणक धर्म हैं। धर्म है। तृष्णा, आमक्ति और रजकत्व रजोगुणक धर्म नास्तिकता, अतिशय विषम्मभाव, अधिक आलस्य, दुष्ट- हैं। मोह, प्रमाद, आलस्य और निद्रा तमोगुणके धर्म बुद्धि, निन्दित कर्मानुष्ठानसे उत्पब सुखमें प्रोति, सबसमय । हैं। एक गुग दूमरे गुण पर आवरण डाल कर अपना निद्रा, सब विषयोंम ज्ञानको अल्पता, मर्वदा क्रोधान्धता कार्य करता है। (गोमा १४ १०) और मुर्खता, ये मब मानमिक बद्धित तमोगुणके धम ये गण जब अपरिणत वा अकार्य अवस्था में रहते हैं, हैं। सत्व, रम: पीर तम. शब्द 14 विवरण देखना चाहता तब इनका कोई भी धर्म उपलब्ध नहीं होता। किन्तु ७ अप्रधान, गोण। (भन हरि ) महत्तत्त्व आदि कार्य द्रव्य रूपमं परिणत होने पर इनके १. नेयायिक ओर वैशेषिक मसिह द्रव्याश्रित पदार्थ पृथक पृथक् धर्माका अनुभव किया जा मकता है। परि विशेष, नयायिक और वैशेषिक मतमें माना हुआ एक णामके तारतम्यक अनुसार जिममें जिम गणकी अधिकता | ट्रव्याथित पदार्थ । वशषिक-उपस्कारके कर्त्ताने गुण- होती है, उमम उमी ग गका धर्म प्रकट होता है। का लक्षण इस प्रकार लिखा है- गुणका मर्वप्रथम परिणाम महत्तत्त्व वा बुद्धि है, इमी. "सामान्यनत्वे सति कर्मान्धत्वं च सःि, भगण त्व। में ग पाके पृथक् पृथक धर्माका विशेष परिचय मिलता कर्म मे भिन्न जातिविशिष्ट पदार्थ का नाम गुण है। है मौतारी मतसे महत्तत्त्व वा बुद्धिमें मत्वगुण का सूत्रकारने इस तरहसे लक्षण किया है-मंयोग और प्राधिक्य होने पर जान से निरतिशय बुद्धि हो जाती है। विभागके प्रति अनाको अपेक्षा न कर जो पदार्थ कारण अधिमें सत्त्वगुणका प्राधिक्य होने पर आयुष्कर, बलकर, | नहीं होता और जो गुण शूना है तथा ट्रव्य ही जिमका सुखकर, प्रोतिवईक. रमयुक्त और स्निग्ध पाहार करनेको आश्रय है, उसका नाम गुण ह। (शेषिक. १८) प्रवृत्ति होती है। इस प्रकार रजोगुणके आधिक्यमे लोभ मयोग और विभागमें दूसरको अपेक्षा कोड. करके प्रवृत्ति, कार्यका उद्योग, सर्वदा कार्य करनेका निरतिशय जो पदार्थ कारण नहीं र ता, गुणशून्य पडता और आग्रह और स्पृहा होती है तथा कार्द, अम्लरस, लवण, ट्रव्य होको अपना पाश्रय रखता, वही गुण कहलाता है। अतिशय उष्ण, तोख, मन और दुख शोक वा रोगजनक । मुक्तावलीक मतमे समवाय-कारणमें अपनी बत्ति न द्रव्य खानकी का दोस्त्रयम्पु. तमोगुणकी वृद्धि होने रखते हुए भी मित्य पदार्थ वृत्ति र नेवाले और सत्ताके sol. VI. .