पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८५

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गुणक-गुणगत ३८३ हैं। मामान्य गुणक प्रधानत. ६ भेद हैं:-अस्तित्व, | गुणाकार ( म०वि०) गुणं व्यञ्जनं पाकजनितरमविशेष- वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमे यत्त्व, अगुरुलघुत्व और प्रेदेशवत्त्व । | रूपं गुणं वा करोति गुण क-अण् । १ सूपकार, रसोई (सत्त्वाथ म.) करनेवाला, रसोईया। (पु.)२ भोममेन । पाण्डव गुणक (० पु० ) गणयति आवस यति गुण-गव ल । गणीक अजातवामक ममय भोमन विराट राजा के दरवार- १ पूरकाविशेष, वह अंक जिससे किमी अंकको गुणा में सूपकारका कार्य सम्पादन किया था । इम लिये एम- करें। २ गुण । ३ वन्द्रिय । ४ लध्वादि धर्म । का नाम गुणकार पड़ा। ३ मङ्गोतविद्याका पूग्मजाता। गुणकर्णिका ( मं० स्त्री० ) इन्द्रवारुणी लता। ४ पाकशास्त्रका ज्ञाता । गुणकथन ( म० की. ) गुणस्य कथनं, ६-तत् । १गुण- गुणकारक ( म० त्रि.) लाभदायक । वर्गान। २ विरहमें कामक़त दश अवस्थाओंमेंसे चतु: गुणकारी ( स. त्रि.) ग041 2 दवा अवस्था । गुणकर (मंत्रि .) लाभदायक । गुणकिगे ( मं० स्त्री० ) एक गगिणी । यह प्रोडव गगिणी गुणकरी ( म० स्त्रो० ) गोगडपिर देखा। है । ऋषभ पार धवत उसमें नहीं लगता है ग्रहोशादि निषाद स्वर है, मतान्तरले षडज भी हो मकता है। गुणकर्णिका ( स. स्त्री० ) इन्द्रवारुणीलता । यह रागिणो भैरव रागाश्रित है। यथा- गुणकर्मन् (स'० क्लो०) गुण: गुणोभूतं कर्म , कर्म धा० । नि म ग म प नि। १ अप्रधान गोग कम । हिकर्मक धातुके अर्थमें जिम मा . ग म प नि म ॥ कम का साक्षात् सम्वन्ध नहीं है, किन्तु वह अप्रधानी- भूत क्रियाके माथ मम्वन्ध रखता है उमीको गुणकर्म किमोक मतमें डमका काम गुणकली है। | गुणको त --एक जैन ग्रन्थकर्ता। इनकी जाति गोल्लालाग कहते हैं। गुणानां कम . ६ तत्। २ मत्व, रज और तम गण को कम। थी। मवत् १०३७ में आश्विन शुक्ल १ को इनकी मृत्य. गुणकली ( म० स्त्री० ) एक रागिणो। गएको देवा । गुणकामदेव - नपालक कोई राजा । बाड पार्वतोय वंशा- गुणकली ( मं० स्त्री० ) रागिणीविशेष । यह गुज्जरी तथा मालवर्क योगमे बनी हुई भैरवरागको पनी है। 'मता वलीक मतमें वह मानवदेववर्मा के पत्र थ, ३५ वर्षमात्र न्तरमें वह आमावरो, देशकार, गुज्जरो, देश टोड़ी और राजा रहे । नेपालकै स्वयम्भ पुराणमें कहा है। एक बार ललित मनसे निकली हुई मालकाषकी पत्नी भी बत- नेपालमें मात वर्ष बराबर अनावृष्टि रहो। उससे राज्य- में दारुण टुर्भिक्ष पड़ा था। अनाहार बहुतसे लाग मरने लायो गयी है। कोई इसे अंडव और कोई षाडव लगे। उमो ममय गुणकाम नेपालके राजा थे। इनके कहता है। अनुरोधर्म शान्तिकर एक अष्टदल पद्म उठा करके अष्ट- “नि मा म ग म ५ ५ ०; मा म ग म ० ० नि” (ग-वि). “मि मा ग ५ 01 ( म खां ना • मोसर जाकर ) नागका मन्त्र पढ़ने लगे। अष्टनागने प्रमत्र हो करके । गुणकेशो ( म० स्त्रो० ) इन्द्रको सारथो मातलीको बान्या प्रचर वृष्टि को थी। शान्तिकरने अष्टनागका रत ने तथा सुधर्माको माता। भोगवतो नगरीके अधिपति करके किमी जगह रग्व दिया। जहां वह लहू स्थापित आयक नागके पौत्र और चिकुरनागके पुत्र सुमुवमे एनका हुआ, नागपुर नाम पड़ गया। पाव तोय वगावली में उनके पुत्रका शिवदेव और विवाह हुआ था। (भारत उद्योग १०४ १०) पौत्रका नाम नरेन्द्र देव लिखा है । परन्तु स्वयम्भ पराण - गुणगत-नपालस्थ शान्तिपुरके पूर्व में अवस्थित एक को देखते गुणकामन बुढ़ापेमें अपने लड़के नरेन्द्रको गुा। यह राजा शान्ति की निर्माण की गयी थी राज्य दे करके संसार परित्याग किया था। स्वयम्भ और एक योजन विस्टत है। नेपाली बौद्धगणीका यह और शान्तिकरके अनुग्रहसे उनोंने देहान्त होने पर मुखा एक पुण्यस्थान माना गया है। वती धाम पाया। (स्त्रयपु८म १०) | गुणगान (स० क्लो०) गुणस्य गान, ६-सत् । गुणकीर्तन ।