पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८६

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गुणगाहावजयादित्य-गुणानाध . गया विजयादित्य - एक प्राध्य चालुक्य राजाका नाम गुणत्रय ( स० की. ) सत्व, रज और तम गुण । म कन्निविष्णुवईनके पुत्र थे । इन्होंने ४४ वर्ष पर्यन्त | गुणदेव ( स० पु० ) गुणायके एक प्रधान शिष्य । समर किया था। गाय के खो। पुषयच ( स० वि० ) ग्रह पक्षार्थे क्यप् गुणस्य गृधः, | गुणदेव-हिन्दी भाषाके एक कवि । इनका निवास स्थान सत् गुणपक्षपाती। बुदेलखण्ड था। १७८५ ई०को इन्होंने जन्म लिया। गुनगौरी ( म० स्त्री० ) गुणै गोरी शहा, ३-तत् । १ पति- गुणदोषविचार ( म० पु० ) गुणदोषयो विचारः, ६ तत्। व्रता स्त्री. मोहागिन स्त्री । २ पार्वतीके सदृश गुणवालो | गुण और दोषका विचार, गुणागुण विवेचना । खी। स्त्रियोंका एक व्रत जो चैतमें चौथ के दिन किया | गुणधर ( स० त्रि. ) गुणं धरति -अच । जिसको गुण जाता है। हो, गुणवान् । ग्राम ( म० पु० ) गुणानां ग्राम, ६-तत्। गुणसमूह, गुणधरस्वामो-दिगम्बर जैनोंके एक ग्रन्थकार, प्राचार्य सुली खान। और ऋषि । इन्होंने जयधवलसिद्धान्त नामक एक गुपयात्रा ( स० क्ली० ) गुणस्य ग्रहगां जान' ६-तत् । प्राकृत भाषाका जैन ग्रन्थ ( जिसकी गाथा संख्या ८०० गुषयान् मनुष्यसे गुण ग्रहणा । है ) और 'चुर्णिसिद्धान्त' की संस्कृत टोका रची थी, गुषांक ( म० त्रि.) गुणस्य ग्राहक, ६.तत्। १ गुगा जिसको लोकसंख्या प्रायः ६ हजार है। पास करनेवाला, गुणग्राही । २ रस्मी धारण करम- वाला। गुणधर्म ( स० पु० ) गुणन प्रवत्तो धर्म:। क्षत्रियोंके गुणवाहिता ( स० स्त्री० ) गुण पाहिणो भावः गुणग्रा | प्रजा पालनादि रूप धर्म । किन-तल । गुणन्नता, गुणप्रियता। गुणन ( स० लो० ) गुण भावे लाट। १ मन्त्रणा । गुरुचाधिम् ( मं० वि० ) गुण ग्रहाति गुण-ग्रह-णिनि । २ अभ्यास । ३ एक अङ्गको दूसरे असे गुणा। ४ गुणा । मुण, गुणको खोज करनेवाला, गुगियोंका आदर ५ प्रावृत्ति। ६ वर्णन। करनेवाला। गुणनन्दि-१ एक दिगम्बर जैन ग्रन्यकार। इनकी भट्टा- गुषधातिम् ( स० वि० ) गुण हन्ति गुण-हन् णिनि । रक उपाधि थी। इनके बनाये हुए ग्रन्थों में कालिक गुणनायक, गुगा नाश करनेवाला। चतुर्विंशतिका उद्यापन, ऋषिमण्डलविधान और रोट- गुणचन्द्र-१ एक संस्थत ग्रन्यकार । ये देवमूरिक शिष्य तृतीया कथा ये तीन ग्रन्थ पाये जाते हैं । २ उक्त सम्प- थे। पहोंने तत्त्वप्रकाशिका नामक सूत्रटीका और हैम- दायके अन्य एक ग्रन्यकर्ता, इनकी जाति गोलापूरव थी। विश्चम प्रणयन किये हैं। सम्बत् ३६३ में जेठ शुक्ला ४थोको इनका शरीरान्स गुणचन्द्र-१ एक दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्मा । ये गोलापूरव एा । ३ जैनेन्द्रप्रक्रिया नामक व्याकरणके रचयिता । जातिके थे । सम्बत् १०४८ में भाद्र शक चतुर्दशीको इन- गुणनफल (म. पु.) वह सख्या जो दो अशोक गुणा- को मत्यु हुई । २ जैनोंके एक भट्टारक और ग्रन्यकार । ये संवत् १६०० में विद्यमान थे । इन्हों ने जैनपूजापद्धति और पनन्नवतोद्यापन नामक दो ग्रन्थ लिखे हैं। गुणनिका ( म मो० ) गुणयति अम्रइयति गुण युच् गुणा ( त्रि० ) १ गुणका जाननेवाला । २ गुणी स्वार्थे कन् । १ अभ्याम । २ नृत्य । ३ शून्या । ४ माला। गुणाता (सं० स्त्रो०) गुणको जानकारी, गुणको परख गुणता (स. स्त्री०) गुणस्य भावः गुण-तल । १ गुणत्व गुणनिधि ( स० पु०) गुणस्य निधिः समुद्र इव । १ गुणा- बजानके अधीन ज्ञान । ३ प्रधीनता। धार, गुणका आश्रय । २ पुराणप्रसिद्ध कोई दुवृत्त गुणाली०) गुणस्य भावः गुण-त्व। १गुसता ब्राह्मणकुमार। काशीखण्डमें उसका उपाख्यान इस TAMIN