पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८७

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गुणनिधि काम्पिला नगरमें यजदास नामक एक दीक्षित रहते उस समय गुणनिधि निरुपाय हुए । विद्या बुधि थे । उनके पुत्रका नाम गुणनिधि था । लड़कपनमें भी वैसी न थी। वह यह सोच करके घबरा उठे-कहा पिताके शासन और उपदेशसे यह सबके प्रशमापात्र हो आयें, क्या करें, कैसे बचेंगे। एक दिन गुणनिधि भूखे गये और उपनयनके वाद गुरुगृहमें रह करके लिखने थे। उन्हें दारुत चिन्ता हुई कि सन्ध्या पड़ती थी। उस पढ़ने लगे। यौवनके प्रारम्भमें हो गुणनिधिसे नागरिक पर क्षुधा तृष्णाका जोर था । गुणनिधिका जी घबराने यवकोंका मेल बढ़ा। उनका हाव भाव देख करके फिर लगा । उसी समय शिवरात्रिव्रतका उपवासी एक यह रुक न सके, उन्हीं का अनुकरण करते रहे। मकि शिवभक्त नानाविध उपहारले कामकरके बाहर निकला पाससे चुपके चुपके रुपया ले जा करके उन्होंन जमा था। उन्होंने इसके हाथमें खाने पीनेका चोल्देख खेला था। थोड़े दिनमें ही यू तक्रीड़ामें वह अत्यन्त ठहरा लिया- जब यह व्यक्ति शिवको पूजा का निदर पासता हुए । ब्राह्मण का प्राचार व्यवहार कोड करके उन्हें मब रखके चला पावेगा, मैं चुग करके खा हारू गा। हम श शास्त्रोंकी प्रसारता प्रमाणित करना अच्छा लगता इसी प्रकार विचार करके गुणनिवि उसके पीछे पीछे था । गीत, वाद्य आदि कुछ भी गुणनिधिसे जाननेको चल दिए। शिवभक्त मन्दिरमें प्रवेश करके आंसुओं से वाकी न बचा। उनकी जननी उन्हें नाना प्रकार उप- छाती भिगो भक्ति गद्गद स्वरसे शिवको आराधना करने देश यह समझ करके देने लगों कि लड़केका भाग्य लगे। इन्हों ने उसके बाहर आने की अपेक्षामें दरबाजे फटा था । किन्तु गुणनिधिने कोई बात न सुनी। बह पर बैठ ममस्त पूजा देखी थी। पूजाके अन्तमें वह सिर्फ रुपया लेनेके समय मातासे मिलते और हमेशा मन्दिरसे बाहर न निकल वहीं मो गया । गुणनिधिने फड़ पर बैठे खेला कूदा करते थे : गुणनिधिके बाप एक उसो सुयोग पर मन्दिरमें जा करके देखा चिराग ठण्डा मभ्रान्त व्यक्ति थे । सब लोग उन्हें बुलावा भेजा करते पड़ा है। यह ख्याल करके कि दीप न जलनेसे हमारे थे । यह प्रायः घरमें बेठ न सकते थे। जब वह घर जा काममें अड़चन पड़ेगी, अपने पत्रके अञ्चलको उन्होंने • बात पवते, उनकी सहधमिणो कह बत्ती बनायो और सैशनी जलायो। ब्राह्मणकुमार अब देती थी--गुणनिधि अभी घरसे बाहर निकल गया है। उपहार उठा करके बाहर निकलने लगे, इनके पैरकी मातान देखा, कितना हो उपदेश दे नेसे भी कोई फल पाहटमे पूजककी पांख खुल गयी। वह चोर चोर नहीं हुआ। इस पर उन्होंने पैसा देना बन्द कर दिया। कहके चिल्लाने लगा, चारों ओरसे चौकीदार जा पर'चे। फिर गुणनिधि मांसे पैसा न मिलने पर भी जाके लिये गुणनिधि नैवेद्य फेंक करके भागे थे। रक्षी गड़ बड़ छट पटाने लगे। इसीसे उन्होंने अपने घरमें चोरी करना देख करके उनको मारने पर उद्यत हुए। इनके दारुण मोखा था । थाली, लोटा, कटोरी आदिके पीछे मां की प्रहारमे गुणनिधिकी जान निकल गयो। धोतो तक चुरायी गयो। जननी जान बूझ करके भी यमराजने ब्राह्मणकुमारको ले जानेके लिये किडरों- इकलौते बेटेके वात्सलासे कोई बात जाहिर न करती से अनुमतिकी थी। वह गुणनिधिको बांध करके ले थीं। किसी दिन वह सोती थीं। लड़कने अवमर देख चन्ने । इधर शिवने भी अपने अनुचरों को हुक्म दिया करके उनके हाथको एक अंगूठी चुरा लो । जुआरियोंका था-'तुम यहां बैठे क्या करते हो। नहीं देखते कि कर्ज अदा करनेमें वह अंगूठी चली गयी। तकारक यमदूत गुणनिधिको लिये चले जाते हैं। जल्द जावो पाम अपनी जानो मानो अंगूठो देख करके जब यज्ञदत्त और रथ पर चढ़ा करके बड़े प्रादरके माथ उसको यहां मे पूछा, उन्होंने गणनिधिको सब कच्ची बात बतला ले आवो।' शिवदूत एक रथके साथ वहां जा पहुंचे और दो। यादत्तने यह खयाल करके कि माके लाड़ प्यारमै यम कारों को रोक करके कहने लगे शिवने रसको हो लड़का बिगड. गया है, निधि भोर उमको जननी शिवपुरी ले जानेकी अनुमति दी है। यमदूतो ने भो दोनोंको परित्याग किया। आसानीसे छोड़ना न चाहा। वह शिवके अनुचरों से Vol. VL: 97