पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३८८

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३८६ गुणमा---गुगाभद्र लड़ने झगड़ने लगे। अनेक वादानुबादक वाद स्थिर हुआ | गुणप्रवृद्ध (म० वि० ) गुणोः प्रवडः, ३ .सत् । जो गुणसे ब्राह्मणकुमारने आचारभ्रष्ट और आजन्म कुकार्यरत वर्षित हो। रहते भो शिवरात्रिव्रतके दिन उपवाम, शिवमन्दिर, गुणप्रकर्ष ( म० पु० ) गुगस्य प्रकर्ष:, ६-तत्। गुणका निर्वाणोन्म ख प्रदीपको रक्षा और आद्योपान्त शिवपूजा आधिक्य । को दर्शन किया था। इसीसे वह शिवपुरी जायेंगे। गुणप्रभ ( म० पु० ) एक बौडआचार्य, श्रीहर्धराजाके गुरु यमदूतों का उन पर कोई अधिकार नहीं। तजवीजमें और वसुवन्धके शिष्य । इन्होंने तत्त्वविभङ्गशास्त्र और । हार करके यमकिदार लौट गये। (कागोया ११०) तत्त्व सत्यशास्त्र रचना किये हैं। पहले पहल ये महा- २ कोई विख्यात संस्कृतग्रन्थकार । ये श्रीनिवामके पुत्र यानमतावलम्वी रहै, किन्तु थोर्ड ममयके बाद विभाषा थे। उनके बनाये हुए परमात्मविनोद ( अलङ्कार ), अब शास्त्र अध्ययन करनेमे इन्होंने हीनयान मत ग्रहण किया। पूर्णास्तुति, ईशतुष्टिस्तुति, गणपतिस्तुति, भगवतीस्तुति मतिपुरके निकट ये रहते थे। वर्तमान विजनौर जिल्लाक विष्णुस्तुति, व्यामस्तुति और शिवशिखरिणीस्तुति नामक लालपुर ग्राममें जामा मस्जिदसे आध कोस दक्षणपूर्वमें ग्रन्थ मिलते हैं। गुणप्रभ-सङ्गारामको भग्नावशेष देखा जाता है। गुणनो ( मं० स्त्री० ) गुण्यतेऽनया गुण-लुएट डीप । पाठ्य गुणप्रिय (म त्रि०) गुणः प्रियो यम्य, बहुव्री० । गुणानु- ग्रन्थके दृढ़तर संस्कार के लिये वार वार अनुशीलन। इस- रागी। का पर्याय-भविनी और शोलन है। गुणभद्र ( स० पु० ) १ एक चोनदेशवासो बौद्ध पण्डित । गुणनोय ( सं० पु० ) गुण्यते पुनः पुनरनुशील्यतेऽनम गुण- गुणभद्र-२ एक जैनाचार्य । 'ज्ञानार्णव' नामक ग्रन्थ की भनीयर। १ अभ्यास । (त्रि.) २ गुणितव्य, गुणा लेखकप्रशस्तिकं पढ़नसे मालुम होता है कि, सम्बत् करने योग्य। १५२१ में ये ग्वालियरको काष्ठासंघ माथुरान्वय और गुणनीयक ( सं० पु०) गुणनोय मंज्ञार्थे कन्। जिस राशि पुष्करगणको गद्दी पर आरूढ़ थे। ३ भट्टारक उपाधि से दूमरी राशिमें भाग देनेसे भाग शेष कुछ नहीं बचे तो धारी एक जैन ग्रन्थकार। इन्होंन पूजाकल्प, अनन्त बह राशि दूसरी राशिका गुणनीयक है। व्रतोद्यापन, धन्यकुमार-चरित्र आदि कई एक ग्रन्योंका गुणपदी (म० स्रो०) गुणी गुणिती पादौ यस्याः, बहुव्री. प्रणयन किया था। जिस स्त्रीका पद गुणित है। गुणपूर्ण ( सं० वि०) गुणन पूर्ण :, ३-तत्। जिसमें अनेक गुणभद्र आचार्य --१ विभुवनाचाय के एक शिष्य और जैन ग्रन्यकर्ता । इन्होंने कुन्दकुन्द न्दुप्रकाश काव्य गुण हो, गुणाधार। गुणप्रत्ययअवधि ( सं० पु. ) जेन मतानुसार पवधिज्ञानका और हरिव शपुराण नामक दो ग्रन्या की रचना की थी। एक भेद । अवधिज्ञानके प्रधानतः दो भेद है-एक भव- यह हरिव शपुराण जिनमेनाचार्य कृत हरिव'शपराणसे प्रत्यय और दूसरी गुण प्रत्यय । प्रत्यय पचि देखो। सम्य- पृथक है। ग्दर्शन, सम्यगन्नान आदि कारणों की अपेक्षासे प्रवधि ४ दिगम्बर जैन सम्प्रदायक एक प्रसिद्ध और प्राचीन ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हो कर जो अवधिज्ञान आचार्य, भगवत् जिनमेन प्राचार्य के अन्यतम शिष्य। होता है, उसे गुणप्रत्यय अवधि कहते हैं । विज्ञान देखो। इन्हो न --उत्तरपुराण, आत्मानुशासन, भावसग्रह, यह गुणप्रत्यय अवधिज्ञान पर्याप्त मनुष्यों और मनसहित जिनदत्तकाव्य, टिप्पण ग्रन्थ और श्रादिपुराणके उत्तर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च ( पश आदि ) के भी ( नाभिके ऊपर भागको रचना की है। द्राबिड. भाषाके च डामणिनिघ. शा आदि शुभ चिहोके पात्मप्रदेशों में होनेवाले प्रवधि- एट के पढ़नेसे मालूम होता है कि ये दक्षिण अर्काट पानावरण कर्म के क्षयोपशमसे ) होता है। जिले के अन्तर्गत तिकडम् नामक ग्रामके रहने- . ( मोअनसार जावकार गाथा १५५) वाल थे। इसके अतिरिक्त इनकं रचित द्राविड़ भावावे