पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३९०

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३०८ गुणभूषणाकवि-गुणवत् गुणभूषणकवि-जैनसम्प्रदायक एक कवि। इनको रचो दो गुणयोनि कहलाती है । ( गोम्मटसार औषकाण ५-१) हुई पुस्तका मेमे सिर्फ एक ही पुस्तक प्राप्य है, भव्यः गुणरत्न ( म० क्ली० ) गुण एव रत् । गुणस्वरूप रत्न, जनचित्तवल्लभश्रावकाचार । रनके जैसा प्रशसनीय वा आदरणीय गुण । गुग्पभोक्त, ( म० त्रि०) गुणानां भोत्ता, ६-तत् । गुणका गुणरत्न आचार्य-एक जैन प्राचार्य, देवसुन्दर मूरके शिष्य । भोग करनेवाला। इन्हों ने संस्कृत भाषामें तर्कतरङ्गिणी, षड्दर्श नसमुच्चय- गुणभृत् ( म त्रि० ) गुणं विभर्ति भृ-विप तुगागमय' टोका और क्रियारत्नसमुच्चय नामका एक व्याकरण ग्रन्य जिममें गुण हो, गुणाधार। (पु.) गुणान् सत्वरज- स्तमामि विभर्ति अधिष्ठातत्व न पाश्रयति भृ-किप । गुणराग ( म० पु०) गुणेषु रागो निरितशयमभिलाष', २ परमं खर। ७ तत् । गुणमें अनुराग या प्रेम, गुणप्रियता। गुणश ( मं० पु०) गुणस्य भ्रश;, ६-तत । गणका नाश। गुणराज-पद्मावती देवीभक्त सोनल्प मुनिकुलज एक गुणमति ( स० पु. ) एक पण्डित इन्होंने अभिधर्म राजा, नागराजके पुत्र । ( मद्या द्र. १३३.५०) कोषको व्याख्या रचना को है। चौनपरिव्राजक चुयेन गुणराजखों-बङ्गालके कुलीनग्रामवामी एक कवि । चुयाङ्गाने अपनी किताबमें लिखा है कि इन्हो ने ही तव उनका अमल नाम मालाधर वसु था। पिताको भगीरथ शास्त्र में माधवको पगजय कर वौद्ध धर्म की यष्ठता वस कहत थे। गुणराज खांन मोची बङ्गला कवितामें श्रीकृष्णको लोला पर श्रीकरणविजय लिया है। चैतना- प्रतिपादन की थी। चरितामृत पढनेसे समझ पडता है कि चैतना महाप्रभ गुणमय ( स० त्रि.) गुणात्मकः गुणप्रचुरो वा गुण मयट । २ गुणात्मक, गुणस्वरूप । १ गुणाढ्य, गुणयुक्त उस बङ्गला ग्रन्थका बड़ा आदर करत थे । यह पुस्तक गुणमहार्णव-कलिङ्गके एक गङ्गा वशीय राजा १३८.५ ई० में प्रारम्भ और १४०२ ई० में ममाप्त हुई । ग्रन्यकारने लिखा है कि गौड़के राजाने उन्हें गुणराज खाँ गाय देखो उपाधि दिया श्रीकृष्ण विजय बङ्गला भाषाको बहुत गुणमहोदधि ( म० पु. ) वैद्यकोक्त औषधधिशेष, एक पुगनी किताब है। दवा । पारा, गन्धक, लोहा, मखिया, गुर्च को काल, गुणराशि ( स० पु. ) गुणानां राशिः, ६-तत् । १ गुण- तांबा, वङ्ग एवं अभ्रक एक एक तोला और त्रिकट , समूह ! २ शिव। तेजपत्र, मोथा, विरङ्ग, नागकेशर, रेणक, इलायची तथा गुणलयनिका ( स० स्त्री० ) गुणाः गुणमयाः पटा: लीयंते पिपरामूल दो दो तोले बालक तथा पिप्पन्नी काथ और __ऽस्यां ली आधार ल्यु ट स्त्रियां डोप ततः स्वार्थे कन् टाप् बिजौरा नीबूके रससे भावना देने पर गुणमहोदधि पूर्वस्वश्च । वस्त्रनिर्मित गृह, कपडेका बना हुआ घर, बनता है। मात्रा चनेके बराबर है। इस औषधको मेवन तंब । इसका पर्याय केणिका और पटकुटी है। करनेसे कासरोग बिनष्ट होता है। (रमकीमतो) गुणलयनी ( स. स्त्री०.) गुणा: गुणमया:पटाः लीयन्त गुणयुक्त ( स त्रि० ) गुणेन युक्तः, ३-तत् । गुमविशिष्ट, ऽस्यां ली आधार ल्यु टू डोप् । कपडेका बना हुआ घर, जिसके गुण हो। तम्ब । गुणयोग ( स० पु०) गुणन योगः ६-तत । गुण गुणीके गुणलुब्ध ( स० त्रि०) गुण लुब्धः, ७-तत्। गुणग्राही, साथ सम्बन्ध । मम्बन्धीय। गणको चाहनेवाला। गुण्योनि ( म० पु. स्त्री० ) जैनमतानुसार योनि प्रधानतः गुणवचन ( स० पु. ) गुणमुक्तवान् वच कतरि लु। दो प्रकारको होती है, आकारयोनि दूमरी गुणयोनि। १गुणवाचक शब्द । २ मुणवद ट्रव्यवाचक शक्कादि शब्द । सम्म छन, गर्भ और उपपाद जन्मको आधारभूत मचित गुणवत् ( स० वि० ) गुणो विद्यते अस्य गुण मतुप मस्य (पात्मप्रदेशों से युक्त पुद्गलका पिण्ड ) शौत सहत षकारः । १ गुणविशिष्ट, गुणी । ( पु०.) । २ यदुवंशीय ( ढको हुई ) और अचित्त उष्ण विवृत्त ( खुली हुई ) ये मनामक दौहित्र । . . . . . .