पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३९६

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मुणादि-गुणोभूत HATSनभिमषित किसो घटनाका द्वेष या अभोष्ट विष- गुणा ब्धि ( म० पु. ) बुद्ध विशेष । बका पाग्रह नहीं रखते । वह सब विषयोंसे उदासोन हो। गुणाभरण ( सं० लो० ) गुण एवाभरण । १ गुणरूप अल. जाता है, कभी सुख, दुःख वा मोहमें पड़ करके नहीं | कार । (त्रि. ) गुण एवाभरण यस्य । २ गुणरूप भूषण- घबराते । वनको विश्वास है कि वह सब गुणों का काम युक्त, गुणालङ्कत। है, जो होता है होता रहे। गुणातीत महात्मा सखया | गुणायन ( स० लो०) गुणस्य अयनं आथयः, तत। खमें सुस्थ चित्तसे अवस्थान करते हैं। सामान्य लोष्ट्र | १ गुणका तर, गुणवान् । (त्रि. ) गुणोऽयन आश्रयो एवं महाध मणि, हिताहित, निन्दास्तुति और मान अप- | यस्य, बहुव्रो० । २ गुणाश्रित, गुगको धारण करनेवाला । माम उनके लिये बराबर है। उनका कोई मित्र अमित्र | गुणायननन्दि-एक जैनग्रन्थकार। ये गगरी जातिके थे। · नहीं। यह सब विषयोंका प्रोत्सुक्य छोड़ देते हैं। मम्बत् ११८८ में मार्ग शोष शुक्ल ११शोको इनका स्वर्ग (गौता १४ अध्याय) वास हुश्रा। गुणादि ( सं० पु० ) पाणिनीय एक गण । गुण, अक्षर, गुणारिया-मन्दार पर्व तसे तीन मोल दक्षिण-पूर्व पुनपुन अध्याय, सूता, छन्दस, मान, इन सबोंको गुणादि कहते | और मुरहर नदोके सङ्गमस्थान पर अवस्थित एक नगर । इमका प्राचीन नाम श्रोगुणचरित है। पूर्व ममयमै गुणाधार ( मं० पु०) गुणस्य आधारः ६-तत् । गुणवान्, यहां एक वौद्धविहार था। वर्तमान समयमै भो बहत गुससम्पन्न व्यक्ति । से शिवमन्दिरका ध्वंसावशेष देखा जाता है। गुणाधिष्ठानक (सं० ली.) वक्षस्थलका वह स्थान जहाँ गुणारिष्ट ( सं० क्लो०) मद्य, मद, मदिरा। मेखला बांधा जाता है। गुणालङ्कत ( सं० त्रि०) गुगारलतः , ३-तत् । गुणा- भूषित, गुणवान् । गुखानन्द विद्यावागीश-एक दार्शनिक, मधुसूदनके शिष्य । गुणालाभ (पु०) गुणस्य अलाभ:, ६ तत्। गुण अप्राम, उन्होंने न्यायकुसुमाञ्जलीविवेक, शब्दालोकविव क और फलहीनता, वह पुरुष जिसको गुणका लाभ न हो। पात्मतत्वविवे कटीका को रचना की है। गणावली (सं० स्त्रो०) गुणस्य आवली, ६ तत: १ गुण- गुणानुरोग (सं० पु०) गुणेषु अनुराग: ७-तत् । गुणप्रियता, श्रेणौ। २ गुणा करनेको प्रणाली । गुणमें पामति, गुणका भादर । गुणावा, जैनियोंका एक तोथ ( मिड ) क्षेत्र । यहांये गुणानुरोध ( सं० पु० ) गुणस्त्र अनुरोध: ६-तत | गुणको | गौतम गणधर मोक्ष गये हैं। यहां तालाबके बीच में एक प्रतिमा, गुणका अनुमरण । विशाल (दि. जैनियोंका) मन्दिर है। जो कि भागलपुर गणानाद (मं० पु०) गुणकथन, प्रशमा, बड़ाई, ताराफ़ | प्रान्तमें नवादा टशनमे १॥ मोल दूरी पर है। गुणान्तर (सं० पु० ) अन्यो गुणः, नित्य-सभा । अन्यगुण गणिका (मं० स्त्रो०) गुण-एन् स्वार्थ कन टाप । शून्याङ्क । गुणासराधान ( ० ली. ) गुणान्तरस्य प्राधान, ६ तत्।। गुणित ( सं० त्रि. ) गुण कणि क्त । गुणन किया हुआ। किमी पदार्थ के पूर्व गुण भिन्न अपर गुणके उत्पादन वा | गुणिता (सं० स्त्री०) गुणिनो भावः गुगिन तल । गुणियों- प्रीति को गुणान्तराधान कहते हैं। का धर्म, गुण गुणासरापादन ( सं० को०) गुणान्तरस्य आपादन, गुणी (सं० पु०) गुण: ज्या विद्यतऽस्य गुण इनि। १ धनुः, ६-तत् । भावान्तर की प्राप्ति । धनुष । (त्रि. ) गुणी विद्यादिरस्त्यस्य गुण इनि। २ बुगान्वित ( सं० त्रि. ) गुणोरन्वितः युक्ताः ३-तत् । १ विवेक | गुणयुक्त, जिसमें गुण हो, गुणवान् । ३ निपुण मनुष्य, जान या वैराग्य और उपशम प्रभृति मुक्तिके उपाय । कलाकुशल पुरुष हुनरमद आदमी। ४ आवत को। 'गुणयुक्त, गुणवान् । गुणीभूत ( स० वि०) भगुणी गुणीभूत: गुण-चि भूक्त। मुलापवाद (म० पु०) गुणस्य अपवादः, ६-तत । गुणको पप्रधानीभूत, अवस्था या कार्य में अप्रधान भावसे पष. स्थित। निन्दा