पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुड़िया-गुदा गुड़िया ( हिं० पु० ) गुदड़ी पहनने वा ओढ़नेवाला। राग भी आरोग्य हो जाता है। (सम त चिनिन्सिस २१ ५.) गुदडी। हिं० पु०) फटे हो वस्त्रका बनाहा ओढ़ना अतोसार रोगमें गुददंश उभरनेसे मधुर एवं अख या बिछावन। योगमे तेल वा घृत पाक करके लगात हैं। गुदड़ीबाजार (हिं• पु० ) जोण पदार्थोक बिकनेका (मध त उत्तर ४०.) बाजार। गुदमा (हिं. पु.) एक तरहका नम और मोटा कम्बल। गुदनहारो (हिं) गोरनहारो देखा। यह ठगढे पहाड़ी देश में प्रस्तुत किया जाता है । गुटना (हि.) गोदना देवा । गुदहना ( फा० कि० ) १ त्याग करना, अलग रहना । गुदनी (हि.) गादनौ दन्यो । २ निवेदन करना। गदपरिणव (सं० पु० ) ऋषिविशेष, एक ऋषिका नाम। गुदरिया (हिं.) गरी देखो। गुदपाक (म० पु०) गदस्य पाकः, ६-तत्। गुदस्थानका गुदरी (हिं.) गदको देव।। पाविशेष, पाखानकी जगहका पकाय । अतिशय अतो- गुदग्न (हिं. स्त्री०) १ पढ़ा हा पाठ भली भांति सार होनसे वह रोग उठता है। इससे पोब बहा सुनाना। २ परीक्षा, इम्तहान । करता है। गुदरोग ( म० ए०) गुदस्य रोगः, ६ तत्। गुदस्थानमें सश्रतक मतमें बालकको गुदपाक रोग उपस्थित होन उत्पन्न एक प्रकार रोग, पाग्वानको जगह होनेवाली कोई समिन किया और पान तथा पालेपनमें रमाञ्जन व्यव. बीमारी। शातातपर्क मतानमार देवालय अथवा जलमें पार करना चाहिये । (शाक १० अध्याय) कुपथ्य सेवन पेशाब करने के पापम जन्मान्तरको गदरोग उठता है। कारी व्यक्तिको पित्तसे गुदपाक रोग निकलने पर पित्त यह उमो पापका चिस्वरूप है। एक माम पय न्त देवा- नाशक द्रव्य सेवन और उमके क्वाथमे अनुवामन विधय र्चन तथा गोदान करके एक प्राजापत्य यज करनिमे उस है। हम रोगमें वायुका योग रहनसे दधिमगड, मद्य रोगका प्रतीकार होता है । तथा विल्वक माथ तेल पाक करक पिचकारी लगाते हैं। भगन्दर और अश आदि गदजात रोगांका अन्यरूप तोरणो मूलक माथ ग्ध पाक करके पोनसे भी उपकार कारण तथा प्रायश्चित्त है । इममे मालूम पड़ता है होता है। गुदपाकमें बहुत खून गिरने या वायु न बुलनमे गातातपने जो गुदरोग निखा, वह भगन्दर आदि रोगोंसे पिच्छिल वस्तिप्रयोग करना चाहिये । (सुश्रुत, उत्तर. ४०००) अलग है। परन्तु प्रचलित भिषगशास्त्रमें गुदरोग नामका गटश ( म०प०) गुदस्थ गुदामस्य भ्रशः, ६-तत्। कोई पृथक् रोग लक्षित नहीं होता । रोगविशेष, एक बीमारो। कक्ष तथा दुर्बल व्यक्तिक प्रवा- गुदवम ( म० क्लो० ) गुदरूप वम । मलदार, जिस हुन एवं अतीसार हारा मलहारका जो मांस बाहर रास्त से मल निकलता है। निकल पाता, गुदम्रश कहलाता है । (सुश्रत निदान १७५) गुदस्तम्भ (मं० पु०) गुदस्व तव्यापारस्य मलनिःसार- ___ इस रोगको चिकित्सा करनेसे पहले वहिर्गत नाड़ो पस्य स्तम्भः, ६ तत् । मलनि:मारका प्रतिरोधक रोग तथा मांम घृतात तथा स्विन्त्र अथवा व द प्रयोग करके विशेष । वह रोग जिममें मन्न कठिनतासे निकले। गुदमध्य पहुचा देना चाहिये। फिर मलहार चम हारा शातातपका मत है कि अश्वयोनिमें गमन करनेसे बांधा जाता है। चमडे का जो अश मलहारक छिट्रको गुदस्तम्भ गेग उत्पन्न होता है। एक मास पर्यन्त सहम अवरण करता, उसमें एक छेद रहता है। वायु निःस कमल हारा शिवजीको सान करानमे इसका प्रतिकार रणके लिय बार बार सैदप्रयोग करना उचित है। होता है। प, महापरल, अन्त्रशून्य मूषिकका देह पर गुदा ( मं० स्त्रो० ) गुद विकल्प टाप् । १ नाड़ीविशेष, वाओषध सबके साथ तेल पका । करके पीने और शरीरको समस्त नाड़ियां जो समान वायु द्वारा अबरस लगानेमें व्यववत होता है। इससे करय गुदभ्रंश धातु स्थानमें ले जाती हैं उन्हींको गुदा कहते है। Vol. VI. 10I