पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४०८

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गुप्तकाल अचान्त माना है। इनके मतस ३१८-१८. ई०से गुहाकाल बेरावल के शिलालेखमें बलभी सं०८२७ = शकसं० १९६७ प्रारम्भ हुआ है। इनका मत मम्प ग अचान्त न होने । गत । पर भी कुछ ठीक है। इममें सन्देह नहीं है। इसके ४र्थ । खेड़ासे प्राप्त ताम्रपत्र, वलभो मं० ३३० बाद १८८४ ई०में बबईकै प्रमिह प्रत्नतत्त्वविद गमकृष्णः | =शक सं० ८२६ और ८२७ गत। गोपाल भण्डारकरने अपने दाक्षिणात्यक इतिहाममें इम ५म । नेपालमै पण्डित भगवान्लान द्वारा मंगृहोत गुहामवतको समालोचना की, जिससे स्थिर हुआ कि, मानदेवके (६४) शिलालेखमें, गुप्त सम्बत् ३८६ - शक शार मं० २४१ या ई० म ० ३१८.मे ही गामवत् प्रारम्भ । सं० ६२७ गत । हुआ है ( ११)। ६ष्ट । मोरवीसे प्राडा जाहन्देवके ताम्रशासन पर, गुण १८८७ ई० में गर्म गटके प्रानुकूल्यमें फ्लिट माहबन सं० ५८५ गत = शक स० ८२६ और ८२७। कठिन परिश्रममे पहलेक आविष्कृत गुराजानांक ममम्त उपर्युक्त प्रमाणांसे ज्ञात होता है कि, अलबेरुनी शिलालेखों और ताम्रशामनीको एकत्र प्रका शत किया हारा कथित २४१ शक, उनके मतमे गताब्द था। इस था ( १२)। इन्हनि पूर्व वर्ती लेग्वकांके मतीको एकत्र | तरह शकमं० २४१ = गुहा सम्वत् • और शकम० २४२ -- करके तथा उनका खगड़न कर स्थिर किया कि, गुप्त स०१ होता है। इमो तरह उन्होंने शक २४१ गत ३१८-२० ई०से ही गुहामंवत् चन्ना होगा । उममें यह भी को और वर्तमान २४२ अर्थात् ३१८-२० ई को गुम दिवाया कि, रेनो माहबका अनुवाद ठोक नहीं है। मम्बत्का प्रारंभ काल बतलाया है। किन्तु यह नहीं बत- अलवरुनोकै मून अरबी भाषा वृत्तान्तको पढ़नमे' म्यष्ट लाया कि, उन्होंने गुा सम्बत्को गताब्द न ममझ कर मालूम होता है कि, उन्होंन-“गप्तवंशक ध्वममे गु चलिताब्द क्या ममझा है। हमारी ममझमे यद्यपि काल प्रारम्भ हुआ"---यह बात कहीं भी नहीं लिखी उन्होंने अपने ग्रन्थमें गभीर गवेषणा, प्रगाढ़ अनुशीलन है उन्होंने मिर्फ इतनाही लिखा है कि. गुहावंश दुवृत्त और पुमः पुन: अनुमन्धानका काफी परिचय दिया है, और बलवान् था। हम वंशकै लोप हो जान के बाद भी तथापि वै जिम मङ्कल्प में उपनीत हए हैं, व; भ्रमशून्य जनसाधारण इनकी गणना करते थे। (१३) नहीं कहा जा सकता। पिलट साहबन शङ्कर बालकृष्ण दीक्षितको महायतामे अलबोरुनोन माफ लिखा है कि- विक्रम म० १०. शिलालेखक आधार पर गुलकान्नका इस प्रकार निर्णय ८८, शक ८५३, और वलभी या गुमकाल ७१२ प्ररम्पर किया है- समान हैं। इस प्रकारसे गुहा म० १ = शकसं० २४१ = १म। एरनके स्तम्भ पर खुदे हुए शिलालेखमें गुप्ता , विक्रम स० ३०६ हुआ। इस जगढ़ गुम म० ० =शक सम्बत् १६५ = शक म० ४०६ लिखा गया है। सं० २४० हुआ। सुतरां जब २४१ शक गताब्द है, तब २य । महात्मा टाड द्वारा प्रकाशित ब रावलके शिला- १ गुम भी गत समझना चाहिये, एमी दशामें लेखमै बनभी म०८४५-शक म ११८६ गत । ! 'फ्लटके मतमे ३१८--२०ई०को छोड़ कर ३१८-१८ ३य । पगिड़त भगवान्लाल इन्द्रजी द्वारा प्रकाशित । ई०को भी गुप्तसम्बत्का प्रारम्भकाल माना जा सकता (१०) Jour. Roy..A.S. Vol. IV. p. 105 ff. an! Vol. XIII. है। इसके माननेका कारण भी है। __५८५ गुरु गताब्दमें फाला न मासकी शक्लपञ्चमोक (११) R. G. Bhandarkar's Early History of Dekan, | दिन मोरवीका ताम्रशासन उत्कीर्ण हुआ था। यह p.99ff. (१.) फलट साहवन मानदेयके मिलेखको सम्बनका बता । (११) महान यन्य का नाम है-Corups Luscriptiouam In- पी विचचा डाका सोनमो भानों के पनुबनो हर Jour.A. dicarum, Vol. III. S. of Bengal for 1889, pt. I. Table Col. 19.) किन्तु दोनों काही (१३) Fleet's lysemptionun Indicarum, Vol. p. IIL. 30. | सिहत युकिसिमकों । p.281.