पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४०९

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गुप्तकाशो-गुप्तराजवंश ताम्रशासन सूर्य ग्रहणके उपलक्षमें प्रदत्त हुआ था। गुहागोदावरी-एक क्षुद्र नदी। यह बुन्दलखगड जिले में फिलट साहबके मतसे ८०५ ई०में ७ मई को यह ग्रहगा चित्रकूट पव तसे ८ मील दक्षिण पूर्व पहाड़की कन्दरासे हुआ था। उक्त ग्रहणके ८ माम ४ दिन बाद वह तान- निकलकर गोदाईनालामें गिरतो है. इसके पवित्र जल- फलक खोदा गया था। परन्तु ८२६ शक गताब्दमें भी में स्नान करने के लिये दूर दूर देशकै ममुथ यहां प्रति हैं। कात्तिक या मार्गशीर्षमें, अर्थात् ८०४ ईमें १६ जनको इस गुहा नागरी अक्षरमे लिखा हुआ एक शिन्ना- भी ग्रहण हुआ था । यह ग्रहण उक्त ताम्रशासनक खोटे फलक है। जानसे ३ मास ४ दिन पहले हुआ था। ग्रहण के थोड़ गुहाघाट -सरयूतोरस्थ एक तीर्थ स्थान । डमी स्थानसे समय बाद ही ताम्रशामन लिखे जानको वात है। रामचन्द्र ने स्वर्गारोहण किया। इसका वत्त मान नाम विशेषतः पूर्ववर्ती सूर्य ग्रहण का उल्लेख न हो कर उम गोझारघाट जो फेयजाबाद में अवस्थित है। ग्रहणक पूर्ववर्ती ग्रहणका उल्लेख होगा, यह सम्भव गुप्त र ( म० त्रि. ) गुप्तचरो यस्य, बहुवो। १ जिमको महीं हो सकता । सुतरां जब शक ८२६ गताब्द और गुहा गुहावर हो। । १०) गुहाथासौ चरति। २ दृतविशेष, ५८५ गताब्द मिल रहा है। तब २४१ शक गताब्द- १ जो किसी बातका चुपचाप भेद ल, भै दया, जामम । गुप्तकाल गत स्वीकार करना पड़ेगा। गुहादान ( म० पु.) वह दान जिसे दाताक अतिरित और __गुहा राजाओंके ममम्त शिलालेबांका मनन करनम दूसरा कोई जानन न पावे ३२८ ई० मे हो गुपकालका प्रारम्भ मानना पड़ता है। गुप्तपत्र ( मं० पु० ) मध्वालु, एक प्रकारका कन्द । डाकर पिटर्सन, भाण्डारकर और श्रीलडनवर्ग का भी गुपुष्य ( म० ए० ) मशपर्णवृक्ष, छतिवनका पड़ । एमा हो मत ( १५ ) है । और भी नाना कारणोंसे मि० गुणवीज ( म० लो० ) तृण, घाम । फिलटका सिद्धान्त ममीचोन नहीं जचता है। गुणामणि ( सं पु०) कुमारियों के क्रीडाविशेष । गणकाशी---हिमालय प्रदेशके गढ़वाल जिले के अन्तगत गमार हि स्त्री० ) १ इस तरह की चीट देना जिसमे नागपुर विभागमं स्थित एक ग्राम । यहां गैर नदी आकर शरीर पर कोई चिन दोव न पडे, भीतरीमा । २ किप- मन्दाकिनीके माथ मिली है। पुण्यधाम काशीनेत्रमें ____ कर किया हुआ अनिष्ट । जिस प्राकर बहुत शिवलिङ्ग देखे जाते हैं, यह भी वसा गुहाराजवंश-भारतवर्षका एक महावली और प्रवल परा हो। स प्रकारसे शिवलिङ्गको बहुलता और स्थान- क्रमी राजवंश । विष्णु, वायु, ब्रह्माण्ड और मस्त्यपुराण- का माहात्मा कहते हए यहां के लोग कहते हैं-"जितन में इस राजवंशका उल्लेख है। यथा-- कङ्कर उतने शङ्कर" - अर्थात् यह स्थान शिवमय है। "मथ गध पुरै रम्या नागा भावन्ति मन वे। काशीधाममें जिम तरह विश्व स्वर और भागीरथीको दो। अनुगई प्रयाग' च माकं तं मगध तथा । धारानीसे पूजा होती है, उमो प्रकार यहां भी विश्वनाथ प्रतान् जनान् सनि भावाने गुप्तवासाः । तथा यमुना और भागीरथीको पूजा होता है। इन दोनों प्रमाण उपमहापाद नदियों का जल विश्वनाथ मन्दिरकै सामनकी पुष्क नागवंशीय मात राजा मथुरापुरीका भोग करंग, किन्तु रिगीमें आकर गिरा है। हम मन्दिरको प्रात्यहिक मेवाके गुणवशीय गण मथरा, अनुगङ्ग, प्रयाग, अयोध्या और लिये गोरखालियान रुपये दिये हैं। मगध इस मभी जनपदोंका उपभोग करंग । गुलगति ( म० पु० ) गुहा गतिर्य स्य, बहुव्री० । १ गुणा वास्तवमें किमी ममय गुप्त राजोन सम्पर्ण उत्तर- चर ।। स्त्री०) गुणाचासौ गति ति कम धारय समास । भारत में अपना आधिपत्य विस्तार किया था और प्रचल २ गूढ गमन। पराक्रमी राजचक्रवर्ती रूपमे प्रमिद्ध थे, यह बात गुन- गुप्लगन्धि ( स. स्त्री ) एलबालक, एक प्रकारका गन्ध राजाओंके समयके शिलालेखांसे भलो भांति मालम हो द्रव्य । जातो है।