पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४१०

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गुप्तराजवंश गुमवंशीयोंमेंमे एक वश राजचक्रवर्ती और भारत- हार देकर समुद्रगुताके निकट भेजा था। दक्षिण में इनका का सम्राट हुआ था, तथा अन्य कई एक वंश केवलमात्र आधिपत्य बहुत कम स्थानों पर था। जनपदविशेषके राजा हुए थे। पहले गुममम्राटोका ही भारतवर्ष के उत्तर में इनका प्रभुत्व बहुत बढ़ा चढ़ा इतिहास लिखा जाता है। था । नौ राजा सिंहासन य त किये गये और उनके राज्य गममबाट गगा-गुमगण किस जातिके थे, इमका कोई गुम राजा में मिला लिये गये। बहुत दूर तक इनका विशेष प्रमाण नहीं मिलता। अध्यापक उहलमनने गुहा ऐखर्य तथा आधिपत्य फेल जाने के कारण ये अपनको राजाश्रीको वश्य जाति बतलाई है। उनके मतसे 'गा' चकवर्ती समझते थे । इमी गौरवमे इन्होंने प्राचीन अख वैश्योंकी उपाधि है। परन्तु नाना स्थानांके शिलालेखा- मध यज्ञ किया था । यह यज्ञ चक्रवतों के अतिरिक्त दसर से यह मालम हुआ है कि, गुम्न नामके एक राजा हुए राजा नहीं कर सकते थे। थे. वे ही इस वंशके आदिपुरुष थे। सम्भवतः इन्हींके विध्यपर्वतके जङ्गलवासी असभ्य जातियां सम द्र- परवर्ती गुममम्राटीने 'गुहा' उपाधि व्यवहत की होगी। गुहाके अधीन आ गई । इम समय इनका राजा पूर्वमें गुहावशका उदयकाल ३१८ ई०से आरम्भ हुआ है। ब्रह्मपुत्र, उत्तरमें हिमालय, पथिममें सतलज, यमुना और कुशन वंशकै अध:पतनके समय उत्तरी विहारकै लिच्छवि वेतवा नदी तथा दक्षिणमें नर्मदा तक विस्त त था। दक्षिण में गङ्गाकै उम पार तक अपना आधिपत्य जमाये राजा समुद्रगुप्त कवि, गायक तथा संस्कृतक मञ्च हुए थे और उन्होंने पुरानो राजधानी पाटलीपुत्र प्रेमी थे। राजा दरबारके एक प्रमिड कविन एक शिन्ना- भो अपने अधिकार कर लिया था। पहले ये लोग लेखमें राजाका राज्य विवरण संस्कृतके गद्य तथा पद्यम मगधके अजातशत्रु मे पूर्ण रूपमे पराजित किये गये सुचारु रूपसे लिखा है। थे । चन्द्रगुणा नामक एक स्थानीय प्रधान हिन्दूने यद्यपि ममुद्रगुप्तको मृत्य की नियत तिथिका पूरा लिच्छविको लड़कोसे विवाह किया। अब ये पाटली. पता नहीं चलता है तथापि यह निशय है कि इन्होंन पुत्रके राज्यसिंहासन पर अभिषिक्त हुए और इन्होंने कमसे कम ५० बर्ष तक राज किया था। इनके मरनक क्रमश: यहांको आम पासको दूमरी दूमरी शक्तियां पर बाद प्रायः ३७५ ई० में इनके पुत्र वन्द्रगुहा राजगद्दी पर अपना आधिपत्य फेला दिया। इनका प्रभाव यहां तक बढ़ गया कि उसी ममय अर्थात् ३१८ ई०से उन्होंने इन्होंने विक्रमादित्यको उपाधि ग्रहण की । इनका गजा- गुग्ग नामका एक शक चलाया। इनका राज्य उत्तर कार्यके संचालन की ओर विशेष ध्यान था जिससे इनक तथा दक्षिण विहार, अवध, गङ्गाको उपत्यका और पूर्व जोंका यश लुप्त न हो। पश्चिममें समुद्रगुणका अधि- प्रयाग तक विस्त त था। कार केवल मध्य भारत तक ही था । उन्होंने भुगष्ट्र के ____थोड़े समय राज्य करनेके बाद इन्होंने अपने पुत्र शकसत्रपके प्रवन्न राजयोंको जोतनकी चेष्टा न की थी। समद्रगुप्त पर राज्यभार अर्पण किया । कहा जाता है इस लिये द्वितीय चन्द्रगुमने २८० ई में ममस्त मालवा कि समुद्र गुहा सब राजाओंसे उद्योगी, सहनशोल और तथा सुराष्ट्र (काठियावाड़)के होपोंको अपन राजामें मिला उत्साही थे। राज-सिंहासन पर बैठने के बाद ही इन्होंने लिया। अब इनका राजा पश्चिममें अरव समुद्र तक समस्त भारतवर्ष जय करनकी इच्छा को । वृन्होंने अपने फल गया। क्षत्रप श जो एक समय भारतवर्ष में एक असीम उत्साहसे विन्ध्य पहाड़के जङ्गलों और कई एक वलिष्ठ तथा प्रभावशाली वंश गिना जाता था, वह होपों पर अपना अधिकार जमाया। शीघ्रही ग्यारह राज इनके इस आक्रमणसे सदाके लिये लुम्म हो गया। इनमें अधिकारमुक्त हुए। दिल्लीके लौहस्तम्भमें इनके सांग्रामिक यशका वर्णन की ख्याति यहां तक फैल गई कि एक दिन लङ्का संस्कृत भाषा में अच्छी तरहसे किया गया है। कहा के अधिपति में धर्मान का दूतको बहुतसे अमुल्य उप. जाता किरहोंने अपने पात्मवलसे समस्त भारतवर्ष