पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४१२

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गुप्त राजवंश बङ्गाल तक फैला हुआ था। वहाँके शामनकर्ता ब्रह्मदत्त जीवितगुहा के मरनके बाद टतोय कुमारगुल राजा पौर जयदत्त थे । मारनाथको वाहमूर्तियों में उत्कोणे हए । इनका जीवन सुखसे व्यतोत न हुआ क्यों कि गौड़- सेखोसे माल म होता है कि इनका अधिकार काशीम वंशसे इन्हें अधिक कष्ट भोगना पडा था । अान्ध वश भो भो था। उम समय बहुत प्रबल हो उठा था । इनके बहु तमो __ बुधगुमक चलाये हुए सिक्के ४८५-६ ई० में प्रचलित गजारोही तथा अश्वारोही सेना थी। गङ्गाको उत्तर हुए जिनसे पता लगता है कि मम्प गर्ग भारतवर्ष पर उपत्यकामं मौग्वरीवश भी बहुत बढ़ा चढ़ा था। इनका अधिकार था। ___मौखरो अपनको उन सो लड़कोंके वंशधर बतलात ___ बुधगुहार्क बाद तथागतगुम राजसिंहासन पर बैठे। जिन्हें गजा अश्वपतिन वैवस्वत (यम) से प्रामा किया इन्होंने थाडे दिनों तक राज्य किया । बाद बाला था। इनकी दो शाखायें थी जिनमेंसे एक युक्तप्रदेशक दित्य राजगहो पर बठे, इनक समयमें मध्य भारत पर जौनपुर और बारावको जिल्नमें और दूसरी बिहार के इनराज तोरमाणन पुनः चढ़ाई की, थोड़ ममय गया जिन्ले में रहती थी। सक हो हनका अधिकार मध्य भारत पर बना रहा इम वशके हरिवर्मा, आदित्यवर्मा और ईश्वरवर्माक बाद ५२०-११ ई० में गोपराज तथा उच्चकल्पक राजा हम सिर्फ महागजा उपाधि थो । आदित्यवर्मा को स्त्री तिन्को महायतामे वालादित्यन हुनीको मार भगाया। का नाम हर्ष गुना था। ये मम्भवतः गजा हर्ष गुहा की उच्चकल्पके महाराज परिव्राजक हम्तिन तथा मक्षोभ बहिन थीं। आदित्यके बाद ईश्वरवर्मा राजा हुए । ये दोनों मध्य भारतको चार दोवाराको नाई रक्षा इनकी स्त्रीका नाम उपगुना था । ईश्वरवर्मा के पुत्र किये हुए थे । इनका अधिकार मधा भारत वर्ष स । ईशानवर्मा और उपगुमाने आन्ध को पूरी तरह पराम्त सदाके लिये जाता रहा और मिहिरकुल ५१० ५११ई में किया था। परिकिणको लड़ाईमे पराम्त हुआ तथा माग गया । इनके बाद तृतीय कुमारगुहा उत्तराधिकारी हए । वालादित्यक बाद वनगुहा वशक उत्तराधिकारी इनके ममयमें भी मोखरोन कई बार उन पर धावा किया हुए। परन्तु ये मन्दसौरकं यशोधर्म में लड़ाई में मारे परन्तु कुछ करा न सका। इनकी मृत्य प्रयाग (इलाहा मये। इनके बाद ईशानवर्मा तृतीय कुमारगुल, कृष्ण बाद ) में हुई थी। गुल, हर्षगुल और जीवितगुण कई एक राजा इस वशम कुमारगुपके बाद उनके लड़क दामोदरगुप्त राजा हुए। क्रमशः हो गये। उनसे बहुतीको महाराजाधिराज और उन्हें भी अपने जीवन भर मौखरोसे लडना पड़ा था और परम भट्टारक को उपाधि मिलि थों। इससे मावित उन्होंसे लड़ते लड़ते उन्होंने अपना प्राण भी त्याग किया । होता है कि व नाम मात्रक राजा नहीं थे। दामोदरगुपके बाद उनके लड़के महामेनगुणा राज्या- अफसड़-ले खसे माल म होता है कि कृष्णगुप्त एक भिषिक्त हुए। इन्होंने मौखरियोंको मार भगानके लिये बड़े शूरबोर राजा थे। इन्हनि कई एक शव ओंको श्रीकण्ठके पुष्पभूति शसे मित्रता की। इस समय काम परास्त किया था। यशोधर्म न इनका कट्टर दुश्मन था। रूपमें भगदत्तवश प्रबन्न प्रतापी हो उठा था। राना हर्ष के समयमें कोई विशेष घटना न हुई थो। युद्ध सुस्थितवान महासेन पर चढ़ाई को, परन्तु पूरी तरहमे विद्यामें वे अच्छी तरह निपुण थे। इन्होंने कई एक वह पराजित किया गया । इस लडाईसे राजा महा. लड़ाईयां जीती थीं। उनके वक्षस्थन्न पर कई जगह मेनको ख्याति बहुत दूग्तक फैल गई। पस्त्रोंक प्राघातके चित्र दीख पड़ते थे। इनके बाद इनके छोटे पुत्र माधवगुण मिहामन पर ., प्रथम जीवित गुम्न हष के लड़के थे। इनके ममयमें बैठे। इन्होंन गोड राजासे मित्रता कर मौखरीको राज गुलवंशको बहुत कुछ उति हुई । समस्त राज्यमें धानी पर आक्रमण किया। मान्ति विराजती थी। इनके बाद राज्यवर्धन तथा हर्ष इस वशके क्रमश: