पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४१३

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गुप्तराजवंश-गुप्तिपाड़ा ४११ राजा होते गये। हर्ष ने कामरूपके गजा भास्करवर्मा के अनुमार ग्रहण किए जानेवाल मंत्रका एक मस्कार । से मिलकर गौड़ पर चड़ाई कर दी और उनको खत- ५ गुफा, कन्दरा। ६ कारागार, केंदखाना। ७ गट्टा, न्त्रता छीन ली। हर्ष को मृत्य के बाद आदित्यमेनन खन्ता। ८ अहिंमा आदि योगकै अङ्ग, यम । ८ गड़हा राजमिहामन पर आरोहण किया। ये बड़े शूरवीर राजा बनानक निये जमीन खोदना। १० नावका छेद । निकले और इम ममय यह वश कुछ उबतिशिखर पर ११ मन बचन कायका वह धम, जिमसे ममार पहुंच गया था। इनके ममय बहुतसे शिलालेख पाय परिभ्रमणक कारणांमे आत्माको रक्षा को जाती है। जाते हैं जिनमे पता चलता है कि इनका राज्य ममुद्र सुप्रमिद जैनाचाय उमास्वामी गुशिका स्वरूप एमा किनारे तक विम्त त था और उम ममय ये एक चक्र लिखत हैं- वर्ती राजामें गिने जाते थे। कहा जाता है कि इन्होंन “ममाग्यो गनियह गुनिः । ( नवार्थ म त ४, ०१) अश्वमेध यज्ञ किया था। इन्हें महाराजाधिराज और योग अर्थात् मन वचन और शगेरको क्रिया, इनके परम भट्टारक उपाधि मिली थीं । पाइपर-शिलालिपि- यथच्छ पाचरण (स्वेच्छाप्रवत्ति ) को रोकनका नाम से मानम पडता है कि ये ६७२-८३ ईमें विद्यमान थे। योगनिग्रह है और योगका निग्रह हो गुमि है । इससे देवबरणारक लेखमे पता चलता है कि आदित्यमेनके योगी हाग जो कमीका आम्रव होता वह संवत अर्थात बाद उनके लडके देवगुम हए और देवगुहाके बाद उनक रुक जाता है। माधारणतः गुलिक तीन भेद है-मनोगुणि लड़के विष्णुगुणा गुमवशक राजसिहामन पर अभिः ! वचनगुराम आर कायगुराम । षित हुए । इम वशक अतिम राजाका नाम जीवित गुमिपाड़ा इसका अमली नाम गुमपन्नो यर्थात ग.स उपाधिधारो वद्य जातिका वासस्थान है । बङ्गालमें हुगली गुहा ( २य ) था इनके ममयमें गौड़ वशन पुनः धावा किया और इस बार गुहा राजाको नष्ट भ्रष्ट कर दिया । जिलं को उत्तर मीमामें अवस्थित एक प्राचीन गगडग्राम वा नगरविशेष । कविकङ्गण म कुन्दराम चक्रवती प्रणीत एक ममय जो गुहावश एक उच्च शिग्वर पर चढ़ गया था। अब उसको श्री सदाक लिये जाती रही। चण्डीग्रन्थमं धनपति ओर थोमन्त मोदागरको ममुद्रयाताके १२ में गजवको मानिकाटेखो। प्रमङ्गम, कविवर कृष्णराम कृत शीतलामङ्गलमें कृषिकेश गुगर्व श ( म० त्रि० ) गुम: लुक्कायित: वेशोऽस्य, बहुवो। मौदागरको दक्षिणपाटनको यात्राकै प्रस्तावमें तथा १ जो मनुष्य अपना उपयुक्त वंश छिपा कर ट्रमग वश गङ्गाभक्तितरङ्गिणी ग्रन्थम भी हम गुमिपाड़ाका उल्लेख धारण करे । (पु.) गुहाथासौ व शयं ति। २ गूढ़ मिलता है । इन ग्रन्थकारीन जिम ममयमें गुमिपाडाका देश, जो दूसरे वेशम होनके कारण किमो दूसरे से पह-: उल्ल ग्व किया है, उम ममय सुरतरङ्गिणो भागोरथो चाना न जा मक। | गुहिमपाडाको उत्तर दिशाये ( अर्थात् उसे दक्षिणमैं छोड़ गुप्तसंह ( म०प०) गुणस्नहो यत्र,व हुवी०।१ अङ्गोठ-! कर ) मागरकी ओर वहती थीं। वृक्ष, अखरोटका पेड़ २ गूढस्नह। इम ग्राममं ब्राह्मण, वैद्य और कायस्थ आदि उच्च गुमा ( स स्त्री० ) गुग टाप । १ कपिकच्छ,, कौंचका वण के वहुसंख्यक हिन्दू जातियांका वाम था। यहां बहुत- वृक्ष । २ परकाया नायिका, वह नायिका जो सुरति म बङ्गाली पण्डितों और गुणियोंका आविर्भाव हुआ छिपानका उद्योग करतो है । कालकै अनुमार इमर्क है। प्रमिद्ध कवि पण्डित वाणश्वर विद्यान्नङ्कार और तोन भेद हैं.---भूतसरतिगुप्ता, वर्तमान सरतिगुना, और उनके पूर्व पुरुषों में से बहुतो का जन्म दमो ग सिपाड़ाम भविष्य सुरतिगुहा । ३ रक्षिता स्त्रो। ४ चन्द नविशेष। हुआ था। गुलाफल ( स० क्लो० ) खंत शोमका वोज, मफ दसेमका दम गु त्रिपाड़ाम निदानक टीकाकार विजयक्षित बीया। और अमरकोषर्क टीकाकार भरतमलिकका जन्म हा गुप्ति ( सं० स्त्रो० ) गुप-क्तिन् । १ छिपानको क्रिया । था। मङ्गीतविद्याविशारद सुकवि कालीमिर्जा भी यहीं २ आच्छादन। ३ रक्षण, रक्षा करने की क्रिया। ४ तंत्र विभूत हुए थे ।