पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४१८

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गुरदा-गुरव की मात्रा दी थी, दक्षिणा लेने की नहीं। परन्तु इसके | वाद यह पलिगार जातिके कड़ापाके नवाबके अधीन आ विपरीत वह सूतको एक लच्छो अपनी पगड़ी में छिपा गया । १७६६ ईमें मौरसाहब हम नगरको महाराष्ट्रीय करके ले गये। इम पर ब्रह्माने क्रुद्ध हो करके उन्हें जागिररूपमें भोग करने लगे। दो वर्षके बाद इन्होंने जातिच्युस किया था। उसी ममयसे उनको लोग गुरड़ा इसे अपने बहनोई हैदरअलीको प्रदान किया । १७७१ करने लगे। ९०में हैदरके मैन्याध्यस मयदशाहने यहाँकै दुर्गको त्राम्बक- गुरदा ( फा० पु.) १ रोड़दार जन्तुके भीतर कल जैके राव पर अर्पण कर दिया । १७७३६ में टीपूने इसे निकदका एक अङ्ग। इमका रङ्ग भूरा और कुछ कुछ पुन: हस्तगत किया। १७८१ ई में निजामन टिश- लाल भी है और यह बालक कदका होता है जिसके मैन्याध्यक्ष कमान रेडको महायतासे गुरमकोगड़को चारो घोर चरबी रहती है। माधारणत: जन्तुम दो अपन अधिकार कर लिया। १८०० इमें निजामने गुग्दे गैठके दोनों ओर लगे रहते हैं। उनका काम पेशाब समस्त कड़ापा जिल्ला तथा यह नगर अंगरेजीको प्रदान को वहिर्गत करना तथा ले हको स्वच्छ करना है। इन किया। में किसी प्रकार की गड़बड़ी होनसे ही जीव निर्वल हो गुग्मकोगडाका अर्थ 'घोड़े का पहाड़' है। इस तरह जाता है। मनुषामें बायाँ गुरदा कुछ ऊपर की ओर और क्यों नाम पड़ा इसका प राप रा पता नहीं चलता है। दाहिला कुछ नीचे रहता है। जो प्रायः ८.२. अंगुल लंब परन्तु स्थानीय प्रवाद है कि एक घोड़ा दुर्ग की रक्षाके बार दो अंगुलमे अधिक मोटे होते हैं। । लिये उम पहाड़ो पर रहा करता था। जब तक वह २. साहम, हिम्मत । ३ एक तरहको छोटी तोप । घोड़ा वहां रहता तव तक कोई शत्र ऊपर नहीं जा ४ गुड उचालनका लोहका बना एक बड़ा करछा या मकता था। पहाड़ को चाटो पर घोड़े का अस्तवल था। चमचा । अम्तमें एक दिन एक मराठा चोर पहाडोम लोहे की कौल रिनियमार (हि. पु. ) ग्तान जमीकन्द की जातिका ठोक कर उमाके सहारे ऊपर तक चला गया । ऊपर एक कान्द। यह बगान और मधा, पश्चिम तथा दक्षिण आकर उमने अम्तवलमें प्रवेश किया और उस अद्धत घोड़े भारतमें होता है। यह कंद लाल छिलकाका होता है को बाहर निकाला। घाड को माथ लेकर वह किमी पौर इसकी बहुत बड़ी लता होती है। तरह नोचेको आया। जब वह विश्राम करन के लिये गुरमकोखा--मन्द्राज प्रदेश कड़ापा जिले के अन्तर्गत जंगल में बैठा था उमी ममय राजकर्मचारियोंने उसे वालपाड तालुकका एक टुग और नगर। यह अक्षा० पकड़ा। वे उम चोरक अमोम उत्साहमे चकित हो गये १३ ४७ उ० और ७४ ३६ पू० में अवस्थित है । और हम दगडम उसके दोनों हाथ कटवा लिये । वह लोकसंख्या प्रायः १७१४ है। यह दुग कड़ापामे सर्व घोड़ा पुनः किल को पहुंचाया गया। थोड़े दिनके बाद प्रधान। कहा जाता है कि यह गोलकोण्डाकै सुन्न - वह दुर्ग नष्ट भ्रष्ट हो गया। दुर्ग के निकट टीपू सुल- तानार निर्माण किया गया था। दुर्ग एक सुन्दर पहाड़ी सानकै चचा मोर राजा अग्लो खाँको ममाधि तथा और को ५.० फुट ऊचाई पर अवस्थित है। इसके तोन ओर दूसरे दूमग भवन हैं। को बमीन ढाल है, चोथो बार अपर आने जाने के लिये | गुरमुख (हिं० वि०) दीक्षित, जिसने गुरुमे मन्त्र निया हो। ए सुगम पथ बना दिया गया है । इमके चारों ओर गुरम्पर ( हि पु० ) मोठे भामका वृक्ष । की पहाड़ियाँ चार दीवारी का काम करतो हैं । दुर्ग के | गुरव-दक्षिण देशके बीजापुर शोलापुर प्रादि जिले में नो एक प्राचीन राजभवन था, आज कल उसमें गज | रहनेवाली एक पुरोहित जाति । इनमें किसी प्रकारकी कर्मचारी आकर ठहरते हैं। उपाधि नहीं है, सिर्फ स्थानकै नामसे जातिगत पार्थक चलानी ताब्दी के प्रारम्भमें इस नगरमें कर्णाट देखने में आता है। काश्यप और ईश्वर ये दो गोत्र हो के पदराबाद बालाघाट सरकारको राजगनो थी ।। इन लोगों में प्रधान हैं।