पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४२८

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४२६ गुरुदत्त-गुरुपुत्र मील और कराचीसे ८३८ मोलकी दूरी पर है। थे खेरो जिलाम्य ईमानगरके राजा रणजिसिंह शाह सिपाही विद्रोहक समयका मिग्वाँक प्रधान बन्दाका जांगड़े को सभामें इनका आना जाना रहा। बनाया हुआ यहां एक दुर्ग है । इमने बादशाह वहादुर- गुरुदेव ( मं० पु. ) गुरुश्रामी देवश्चेति कर्मधा० । १ इष्ट- शाहको १७१२ ई०में मार डाला था। अन्तमें मोगलांन देवता । जिमके निकट दीक्षित होनक लिये जाय उसोको इसे तथा इमके अनुयायियोंको मार डाला और दुर्ग गुक देव कहते हैं। २ वोरशैवप्रदीपिका नामक संस्कृत अधिकार कर लिया था। आजकल यह सारस्वत ब्राह्मगी- ग्रन्थकार । का विहार बन गया है । शहरको आय प्रायः १८००० गुरुदैवत ( मं० पु. ) गुरुवहम्पतिर्देवतमस्य, बहुव्रो० । रुपये और व्यय १७७०० रुपये है। यहां एक ईसाई पुषमानक्षत्र । वर्नाक्य लर और एक अस्पताल है। गुरुहारा (हिं. पु. ) गुरुका स्थान, गुरुके रहनकी गुरुदत्त-१ ग्मरत्नावली नामक मंस्कृत वैद्यक ग्रन्थकार। जगह। २हिन्दीभाषाक एक कवि। १८३०ई०को उन्होंने जन्म गुरुपण्डित-एक नेयायिक पण्डित । इन्होंन भवानन्दो सिया था। वह जयसिंहपुत्र शिवसिंह सवालको सभामें टोका और गुरुपण्डितोय नामक न्यायग्रन्थ प्रणयन उपस्थित रहते थे। किये हैं। गुरुदत्त शक्ल-- एक कान्यकुल ब्राह्मण । वह कानपुर जिले- गुरुपत्री ( मं० स्त्रो० ) गुरा: पत्नो, ६ तत् । गुरुः आचार्य: के मकरन्दपुर में रहते थे । १८१३ ई०को उनका जन्म पतिय स्याः । १ गुरुको अमवा वा मवर्णा स्त्री । मनन हुआ। इनके देवकीनन्दन और शिवनाथ दो भाई थे। लिखा है कि गुरुकी मबर्णा स्त्री गुरुके मदृश पूजनीया गुरुदतशल रचित प्रधान काव्यका नाम पक्षीविलाम है। है, किन्तु गुरुको अमवर्णा स्त्रीको कंवल्न प्रत्य त्थान और वह मिन्दी भाषाके अच्छे कवि थे। अभिवादनसे हो मम्मान करना चाहिए। शिष्यको गुम गुरुदतमिह--हिन्दी-भाषाकै एक कवि । वह अवध प्रांत- पत्रीका अङ्गराग, गात्रमार्गन और केशमस्कार प्रभृति में अमेठी के रहनेवाले राजा थे। उपनाम भूपति कवि कार्य नहीं करना चाहिए। उन्हें सान भी करना उचित वा । १७२० ई. उनका अभ्य दयकाल रहा। वह कवि नहीं है। युवक शिष्य युवती गुरुपत्रोका पाद ग्रहण कर दौ महों, कवियकि पृष्ठपोषक भी थे। प्रणाम भी नहीं कर सकता। गुब्दास ( पु० ) १ किमी एक गुरुका नाम । गुरोः पितुः पत्नी, ६-तत् । २ माता । ३ विमाता । मरुदास--२ जैनग्रन्थकर्ता। इन्होंने प्रायश्चित्तममुच्चयको गुरुपत्र (सं. ली.गुरुभारयुता पत्रं पत्राकारफलक टौका लिखी है। यस्य, बहुब । धातुविशष, रांगा, शोमा । गुग्दोक्षातन्त्र- (मं० लो०) दीक्षाप्रतिपादकं तन्त्र दीक्षा- गुरुपत्रा ( मं० स्त्री०) गुरु गुरुपाकं दुजर पत्रमस्य सब गुरोग्वलम्बनीयं दीक्षातन्त्र मध्यपदलो । एक तन्त्र बहुव्रो०, टाप । तिन्तिडोवृक्ष, इमलीका वृक्ष । जिममें गुरुसे शिष्य किम तरह दीक्षित किया जा सकता गुरुपरिचर्या ( सं० स्त्रो० ) गुरोः परिचर्या ६ तत्। गुरूको है उसकी प्रणाली अत्यन्त सुन्दर रूपमें वर्णित है। सेवा, गुरुको शुश्रूषा। गुरुदीनपांडे ---एक कान्यकुञ्ज ब्राह्मण। १८३४ ई०को गुरुपाक ( मं० त्रि० ) गुरुः पाको यस्य, बहुव्री० । दुष्पाच्य, . सनका अभ्य दय हुआ। उन्हांन वाक् मनोहर पिङ्गल जो महजसे परिपक्क न हो। नामक एक आवश्यक ग्रन्थ ( १८०३ ई० ) लिखा था। गुरुपादुकागिरि-बौद्ध शास्त्रोक्त एक पवित्र पर्वत । इसका इसमें केवल छन्द ही नहीं अलङ्गार, ऋतुवर्णन, नखशिख दूमरा नाम कुक्कुटपाद भी है। यह महानदीके पूर्वमें चादि अनेक विषय वर्णित हुए हैं। स्थित है। गुग्दीमराय ( वन्दोजन ) युक्तप्रदेशस्थ मीतापुर जिलेके गुरुपुत्र ( मं० पु० ) गुरोः पुत्रः -तत् । आचार्य प्रभृति पतिय ग्रामवासी एक भाट । १८८३ ई०को वह जीवित गुरुके पत्र।